कैलास मानसरोवर पर भगवान शिव अपनी शक्ति पार्वती के साथ रहते हैं। पार्वती प्रकृति की प्रतीक हैं और प्रकृति के ही संरक्षण का संदेश देते हैं शिवजी। तभी तो दुर्गम रास्तों को पारकर जब भक्त यहां पहुंचते हैं, तो नकारात्मक विचारों से शून्य होकर जीवन-पथ पर अग्रसर होने के लिए प्रेरित होते हैं।  कैलास मानसरोवर यात्रा (8 जून से शुरू) कैलास पर्वत और मानसरोवर झील धरती का केंद्र माना जाता है। यहीं देवाधिदेव महादेव का वास भी माना जाता है। हिमालय का भी केंद्र माने जाने वाले कैलास पर ही भोले शिव योग-साधना करते हैं और मां पार्वती उनकी तपस्या में सहयोग करती हैं। शिव यदि पुरुष हैं, तो पार्वती प्रकृति। दोनों एक-दूसरे के पूरक हैं। पार्वती यदि शिव को सहयोग देती हैं, तो शिव उनका (प्रकृति) संरक्षण और प्रकृति के ही संरक्षण का संदेश वे अपने भक्तों को देते हैं।

सम और विषम जीवन का संतुलन 
कैलास मानसरोवर हिंदुओं का पवित्र धाम है। भगवान शंकर का यह धाम असीमित ऊर्जा का भंडार है। यही वजह है कि यहां पहुंचते ही श्रद्धालुओं में नकारात्मक विचारों का शमन तथा सकारात्मक विचारों का आगमन होने लगता है। कैलास क्षेत्र में दो झीलें हैं-मानसरोवर और राकस। मानस का जल जहां शांत, शीतल और पीने योग्य है, वहीं राकस ताल का पानी पीने योग्य नहीं माना जाता है। सबसे बड़ी विशेषता यह है कि राकस ताल में कैलास पर्वत से, तो मानसरोवर झील में गुरला मांधता पर्वत से पानी आता है। मान्यता है कि भगवान शिव ने जहर को अपने कंठ में उतार लिया था, वहीं से यह पानी राकस ताल में जाता है। दोनों झीलें विपरीत शक्तियों का केंद्र है, जो दो भिन्न परिस्थितियों (सुख और दुख) का प्रतीक मानी जाती हैं। इसके माध्यम से भगवान शिव यह संदेश देना चाहते हैं कि जीवन में सम और विषम दोनों परिस्थितियां आ सकती हैं, लेकिन जो मनुष्य दोनों परिस्थितियों में एकसमान बना रहे, वही ईश्वर के नजदीक है। दोनों के संतुलन से ही जीवन चलता है। 

कैलास जाने वाले श्रद्धालु मानस और राकस दोनों झीलों का पानी अपने साथ ले जाते हैं। दुर्गम राह बढ़ाते हैं उत्साह कैलास धाम तक पहुंचने का मार्ग दुर्गम है। जोखिम भरा मार्ग डराता नहीं, बल्कि उत्साह बढ़ाता है। पिथौरागढ़ जिले के अंतर्गत पड़ता है आधार शिविर धारचूला। यहां से 54 किमी आगे प्रसिद्ध आध्यात्मिक केंद्र श्रीनारायण आश्रम तक वाहन से यात्रा करने के बाद पैदल यात्रा होती है। यहीं से मार्ग भक्तों की परीक्षा लेना प्रारंभ कर देता है। मार्ग में कभी चढ़ाव वाले रास्ते, तो कभी ढलान वाले रास्ते मिलते हैं। बहते नदी-नाले, खड़े पहाड़ों की संकरी घाटियों में तीन से चार फीट चौड़ा मार्ग और गहरी खाई भक्तों को डराती तो है, लेकिन चारों तरफ नैसर्गिक सौंदर्य से बिखरे जंगल और शीतल हवाएं उनके उत्साह को कई गुणा तक बढ़ा देती हैं। पहला पैदल पड़ाव सिर्खा और दूसरा पैदल पड़ाव गाला की यात्रा उच्च हिमालय में प्रवेश के लिए श्रद्धालुओं को समर्थ बनाती हैं। इसके बाद आगे की यात्रा के लिए उच्च हिमालय वाले क्षेत्र में जाना पड़ता है, जहां पर मौसम के लिहाज से सब कुछ बदल जाता है। यहां पहुंचने से पूर्व कठिन मार्ग जल्दी आगे बढ़ते रहने के लिए भी प्रेरित करता है। इससे आगे लखनपुर से बूंदी तक का मार्ग जोखिम पूर्ण है। चट्टानें काटकर मात्र तीन फीट चौड़ा मार्ग, उसके नीचे बहने वाली काली गंगा नदी इसे अधिक जोखिमपूर्ण बना देती है, जिसे देखकर एक बार सभी का मन खौफ से भर जाता है। लेकिन कैलास जाने वाले भक्त इस जोखिम भरे मार्ग को सहजता से पूरा कर लेते हैं।

जल संरक्षण की महत्ता
जब भक्त बूंदी से तीन किमी की सीधी चढ़ाई चढ़कर दस हजार फीट से अधिक की ऊंचाई पर स्थित उच्च हिमालय के प्रवेश द्वार छियालेख में प्रवेश करते हैं, तो उनकी थकान गायब हो जाती है। छियालेख से गब्र्याग गांव की तरफ जाते ही सामने नेपाल में मां अन्नपूर्णा का विराट दर्शन यात्रियों को उत्साह से भर देता है। यात्री सहज होकर कुटी यांग्ती (नदी) और काली गंगा नदी के संगम स्थल पर पहुंचते हैं। यहां पर साढ़े दस हजार फीट की ऊंचाई पर स्थित गुंजी गांव के ग्रामीण यात्रियों, भक्तों का परंपरागत ढंग से स्वागत करते हैं। भक्त बताते हैं कि इस ऊंचाई पर जब गुंजी गांव के बच्चों से लेकर बूढ़े तक हंसते चेहरे और अपनत्व से भरा आतिथ्य देते हैं, तो लगता है कि ये भी भगवान शिव के दूत हैं, जो भक्तों को कैलास मानसरोवर जाने के लिए पे्ररित करते हैं। गुंजी का यह स्वागत उन्हें घर से दूर घर जैसा माहौल देता है। हर परदेसी और गुंजी के ग्रामीणों के बीच अल्प समय में ही आत्मीय संबंध बन जाता है, जिसे भगवान शिव की ही कृपा मानी जाती है।

गुंजी से नौ किमी दूर है काली गंगा नदी का उद्गम स्थल कालापानी, जहां पर मां काली का मंदिर भक्तों की श्रद्धा को बढ़ाता है। यहां काली गंगा नदी का उद्गम प्रकृति में जल के महत्व को दर्शाता है। मां पार्वती का नाभि स्थल माना जाता है नाभिढांग। कैलास मानसरोवर यात्रा में लगभग साढ़े चौदह हजार फीट की ऊंचाई पर स्थित अंतिम भारतीय पड़ाव नाभिढांग हैं। यहां से सीधे 'ऊं पर्वत' का दर्शन होता है, जो दुर्लभ है। माना जाता है कि यहां से ही कैलास की पवित्र भूमि शुरू हो जाती है। इसके बाद भारत-चीन सीमा लिपूलेख दर्रा पार कर भक्त तिब्बत चीन में प्रवेश करते हैं। 

प्रमुख पैदल पड़ाव आधार शिविर - धारचूला, प्रथम पड़ाव - सिर्खा, दूसरा पड़ाव - गाला, तीसरा पड़ाव - बूंदी, चौथा पड़ाव - गुंजी, पांचवां पड़ाव - नावीढांग

अपरिमित है शिव के धाम का सौंदर्य 
कैलास मानसरोवर पहुंचते ही मन के सारे विकार स्वत: समाप्त हो जाते हैं। भगवान शिव के धाम के सौंदर्य को शब्दों में वर्णित करना संभव नहीं है। एपीएस निंबाडिया, डीआइजी आइटीबीपी, बरेली क्षेत्र 

नकारात्मक विचारों की समाप्ति कैलास एंटी ऑक्सीडेंट (ऑक्साइडेशन से होने वाले नुकसान को डिएक्टीवेट करने में मदद करता है) क्षेत्र माना जाता है। यहां पहुंचते ही नकारात्मक सोच खत्म हो जाती है। डॉ. महेंद्र कौशिक कैलासी, आध्यात्मिक यात्री (कैलास जाने वाले यात्रियों का प्रतिवर्ष सम्मान करते हैं।) 

38 वर्षो से लगातार यात्रा कैलास मानसरोवर यात्रा विगत 38 वर्षों से लगातार संचालित हो रही है। इसकेसंचालक कुमाऊं मंडल विकास निगम यात्रा में मिलने वाली सुविधाओं का पूरा ध्यान रखते हैं। यात्रियों की संख्या में भी प्रतिवर्ष बढ़ोत्तरी हो रही है। दीवान सिंह बिष्ट, प्रबंधक, पर्यटक आवास गृह केएमवीएन, धारचूला 

रिपोर्ट: ओपी अवस्थी, पिथौरागढ़ हल्द्वानी इनपुट : गोविंद सनवाल

 

कैलास मानसरोवर पर भगवान शिव अपनी शक्ति पार्वती के साथ रहते हैं। पार्वती प्रकृति की प्रतीक हैं और प्रकृति के ही संरक्षण का संदेश देते हैं शिवजी। तभी तो दुर्गम रास्तों को पारकर जब भक्त यहां पहुंचते हैं, तो नकारात्मक विचारों से शून्य होकर जीवन-पथ पर अग्रसर होने के लिए प्रेरित होते हैं।  कैलास मानसरोवर यात्रा (8 जून से शुरू) कैलास पर्वत और मानसरोवर झील धरती का केंद्र माना जाता है। यहीं देवाधिदेव महादेव का वास भी माना जाता है। हिमालय का भी केंद्र माने जाने वाले कैलास पर ही भोले शिव योग-साधना करते हैं और मां पार्वती उनकी तपस्या में सहयोग करती हैं। शिव यदि पुरुष हैं, तो पार्वती प्रकृति। दोनों एक-दूसरे के पूरक हैं। पार्वती यदि शिव को सहयोग देती हैं, तो शिव उनका (प्रकृति) संरक्षण और प्रकृति के ही संरक्षण का संदेश वे अपने भक्तों को देते हैं।

सम और विषम जीवन का संतुलन 

कैलास मानसरोवर हिंदुओं का पवित्र धाम है। भगवान शंकर का यह धाम असीमित ऊर्जा का भंडार है। यही वजह है कि यहां पहुंचते ही श्रद्धालुओं में नकारात्मक विचारों का शमन तथा सकारात्मक विचारों का आगमन होने लगता है। कैलास क्षेत्र में दो झीलें हैं-मानसरोवर और राकस। मानस का जल जहां शांत, शीतल और पीने योग्य है, वहीं राकस ताल का पानी पीने योग्य नहीं माना जाता है। सबसे बड़ी विशेषता यह है कि राकस ताल में कैलास पर्वत से, तो मानसरोवर झील में गुरला मांधता पर्वत से पानी आता है। मान्यता है कि भगवान शिव ने जहर को अपने कंठ में उतार लिया था, वहीं से यह पानी राकस ताल में जाता है। दोनों झीलें विपरीत शक्तियों का केंद्र है, जो दो भिन्न परिस्थितियों (सुख और दुख) का प्रतीक मानी जाती हैं। इसके माध्यम से भगवान शिव यह संदेश देना चाहते हैं कि जीवन में सम और विषम दोनों परिस्थितियां आ सकती हैं, लेकिन जो मनुष्य दोनों परिस्थितियों में एकसमान बना रहे, वही ईश्वर के नजदीक है। दोनों के संतुलन से ही जीवन चलता है। 

कैलास जाने वाले श्रद्धालु मानस और राकस दोनों झीलों का पानी अपने साथ ले जाते हैं। दुर्गम राह बढ़ाते हैं उत्साह कैलास धाम तक पहुंचने का मार्ग दुर्गम है। जोखिम भरा मार्ग डराता नहीं, बल्कि उत्साह बढ़ाता है। पिथौरागढ़ जिले के अंतर्गत पड़ता है आधार शिविर धारचूला। यहां से 54 किमी आगे प्रसिद्ध आध्यात्मिक केंद्र श्रीनारायण आश्रम तक वाहन से यात्रा करने के बाद पैदल यात्रा होती है। यहीं से मार्ग भक्तों की परीक्षा लेना प्रारंभ कर देता है। मार्ग में कभी चढ़ाव वाले रास्ते, तो कभी ढलान वाले रास्ते मिलते हैं। बहते नदी-नाले, खड़े पहाड़ों की संकरी घाटियों में तीन से चार फीट चौड़ा मार्ग और गहरी खाई भक्तों को डराती तो है, लेकिन चारों तरफ नैसर्गिक सौंदर्य से बिखरे जंगल और शीतल हवाएं उनके उत्साह को कई गुणा तक बढ़ा देती हैं। पहला पैदल पड़ाव सिर्खा और दूसरा पैदल पड़ाव गाला की यात्रा उच्च हिमालय में प्रवेश के लिए श्रद्धालुओं को समर्थ बनाती हैं। इसके बाद आगे की यात्रा के लिए उच्च हिमालय वाले क्षेत्र में जाना पड़ता है, जहां पर मौसम के लिहाज से सब कुछ बदल जाता है। यहां पहुंचने से पूर्व कठिन मार्ग जल्दी आगे बढ़ते रहने के लिए भी प्रेरित करता है। इससे आगे लखनपुर से बूंदी तक का मार्ग जोखिम पूर्ण है। चट्टानें काटकर मात्र तीन फीट चौड़ा मार्ग, उसके नीचे बहने वाली काली गंगा नदी इसे अधिक जोखिमपूर्ण बना देती है, जिसे देखकर एक बार सभी का मन खौफ से भर जाता है। लेकिन कैलास जाने वाले भक्त इस जोखिम भरे मार्ग को सहजता से पूरा कर लेते हैं।

जल संरक्षण की महत्ता

जब भक्त बूंदी से तीन किमी की सीधी चढ़ाई चढ़कर दस हजार फीट से अधिक की ऊंचाई पर स्थित उच्च हिमालय के प्रवेश द्वार छियालेख में प्रवेश करते हैं, तो उनकी थकान गायब हो जाती है। छियालेख से गब्र्याग गांव की तरफ जाते ही सामने नेपाल में मां अन्नपूर्णा का विराट दर्शन यात्रियों को उत्साह से भर देता है। यात्री सहज होकर कुटी यांग्ती (नदी) और काली गंगा नदी के संगम स्थल पर पहुंचते हैं। यहां पर साढ़े दस हजार फीट की ऊंचाई पर स्थित गुंजी गांव के ग्रामीण यात्रियों, भक्तों का परंपरागत ढंग से स्वागत करते हैं। भक्त बताते हैं कि इस ऊंचाई पर जब गुंजी गांव के बच्चों से लेकर बूढ़े तक हंसते चेहरे और अपनत्व से भरा आतिथ्य देते हैं, तो लगता है कि ये भी भगवान शिव के दूत हैं, जो भक्तों को कैलास मानसरोवर जाने के लिए पे्ररित करते हैं। गुंजी का यह स्वागत उन्हें घर से दूर घर जैसा माहौल देता है। हर परदेसी और गुंजी के ग्रामीणों के बीच अल्प समय में ही आत्मीय संबंध बन जाता है, जिसे भगवान शिव की ही कृपा मानी जाती है।

गुंजी से नौ किमी दूर है काली गंगा नदी का उद्गम स्थल कालापानी, जहां पर मां काली का मंदिर भक्तों की श्रद्धा को बढ़ाता है। यहां काली गंगा नदी का उद्गम प्रकृति में जल के महत्व को दर्शाता है। मां पार्वती का नाभि स्थल माना जाता है नाभिढांग। कैलास मानसरोवर यात्रा में लगभग साढ़े चौदह हजार फीट की ऊंचाई पर स्थित अंतिम भारतीय पड़ाव नाभिढांग हैं। यहां से सीधे 'ऊं पर्वत' का दर्शन होता है, जो दुर्लभ है। माना जाता है कि यहां से ही कैलास की पवित्र भूमि शुरू हो जाती है। इसके बाद भारत-चीन सीमा लिपूलेख दर्रा पार कर भक्त तिब्बत चीन में प्रवेश करते हैं। 

प्रमुख पैदल पड़ाव

आधार शिविर - धारचूला, प्रथम पड़ाव - सिर्खा, दूसरा पड़ाव - गाला, तीसरा पड़ाव - बूंदी, चौथा पड़ाव - गुंजी, पांचवां पड़ाव - नावीढांग

अपरिमित है शिव के धाम का सौंदर्य 

कैलास मानसरोवर पहुंचते ही मन के सारे विकार स्वत: समाप्त हो जाते हैं। भगवान शिव के धाम के सौंदर्य को शब्दों में वर्णित करना संभव नहीं है। एपीएस निंबाडिया, डीआइजी आइटीबीपी, बरेली क्षेत्र 

नकारात्मक विचारों की समाप्ति कैलास एंटी ऑक्सीडेंट (ऑक्साइडेशन से होने वाले नुकसान को डिएक्टीवेट करने में मदद करता है) क्षेत्र माना जाता है। यहां पहुंचते ही नकारात्मक सोच खत्म हो जाती है। डॉ. महेंद्र कौशिक कैलासी, आध्यात्मिक यात्री (कैलास जाने वाले यात्रियों का प्रतिवर्ष सम्मान करते हैं।) 

38 वर्षो से लगातार यात्रा कैलास मानसरोवर यात्रा विगत 38 वर्षों से लगातार संचालित हो रही है। इसकेसंचालक कुमाऊं मंडल विकास निगम यात्रा में मिलने वाली सुविधाओं का पूरा ध्यान रखते हैं। यात्रियों की संख्या में भी प्रतिवर्ष बढ़ोत्तरी हो रही है। दीवान सिंह बिष्ट, प्रबंधक, पर्यटक आवास गृह केएमवीएन, धारचूला 

रिपोर्ट: ओपी अवस्थी, पिथौरागढ़ हल्द्वानी इनपुट : गोविंद सनवाल

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