ज्येष्ठे मासि सिते पक्षे दशमी हस्तसंयुता।

हरते दश पापानि तस्माद् दशहरा स्मृता।।

ज्येष्ठ शुक्ल दशमी को हस्त नक्षत्र में स्वर्ग से गंगा का आगमन हुआ था। यह तिथि उनके नाम पर गंगा दशहरा के नाम से प्रसिद्ध हुई। अतएव इस दिन गंगा आदि का स्नान, अन्न-वस्त्रादि का दान, जप-तप--उपासना और उपवास किया जाय तो दस प्रकार के पाप( तीन प्रकार के कायिक, चार प्रकार के वाचिक और तीन प्रकार के मानसिक) दूर होते हैं।

इस वर्ष बुधवार 12 जून को पड़ने वाली गंगा दशहरा में   दिन 1 बजे तक 'सर्वार्थसिद्धि' योग होने से अद्भुत संयोग प्राप्त बन रहा है। जो महाफलदायक  है। इस बार योग विशेष का बाहुल्य होने से इस दिन स्नान, दान, जप, तप, व्रत, और उपवास आदि करने का बहुत ही महत्व है।   दशहरा के दिन काशी दशाश्वमेध घाट में दश प्रकार स्नान करके, शिवलिंग का दस संख्या के गन्ध, पुष्प,धूप,दीप, नैवेद्य और फल आदि से पूजन करके रात्रि को जागरण करें तो अनन्त फल होता है।

"दशयोगे नरः स्नात्वा सर्वपापैः प्रमुच्यते।"

गंगा पूजन विधि-

गंगा दशहरा के दिन गंगा तटवर्ती प्रदेश में अथवा सामर्थ्य न हो तो समीप के किसी भी जलाशय या घर के  शुद्ध जल से स्नान करके सुवर्णादि के पात्र में त्रिनेत्र, चतुर्भुज, सर्वावयवभूषित, रत्नकुम्भधारिणी, श्वेत वस्त्रादि से सुशोभित तथा वर और अभयमुद्रा से युक्त श्रीगंगा जी की प्रशान्त मूर्ति अंकित करें। अथवा किसी साक्षात् मूर्ति के समीप बैठ जाय। फिर 'ऊँ नमः शिवायै नारायण्यै दशहरायै गंगायै नमः' से आवाहनादि षोडषोपचार पूजन करें तथा इन्ही नामों से 'नमः'  के स्थान में स्वाहायुक्त करके हवन करे। तत्पश्चात ' ऊँ नमो भगवति ऐं ह्रीं श्रीं( वाक्-काम-मायामयि) हिलि हिलि मिलि मिलि गंगे मां पावय पावय स्वाहा।'  इस मंत्र से पांच पुष्पाञ्जलि अर्पण करके गंगा को भूतल पर लाने वाले भगीरथ का और जहाँ से वे आयी हैं, उस हिमालय का नाम- मंत्र से पूजन करे। फिर दस फल,दस दीपक, और दस सेर तिल- इनका 'गंगायै नमः' कहकर दान करे। साथ ही घी मिले हुए सत्तू के और गुड़ के पिण्ड जल में डालें। सामर्थ्य हो तो कच्छप, मत्स्य और मण्डूकादि भी पूजन करके जल में डाल दें। इसके अतिरिक्त 10 सेर तिल, 10 सेर जौ, 10 सेर गेहूँ 10 ब्राह्मण को दें।  इतना करने से सब प्रकार के पाप समूल नष्ट हो जाते हैं और दुर्लभ- सम्पत्ति प्राप्त होती है।

श्रीमद्भागवत महापुराण मे गंगा की महिमा बताते हुए शुक्रदेव जी परीक्षित् से कहते हैं कि जब गंगाजल से शरीर की राख का स्पर्श हो जाने से सगर के पुत्रों को स्वर्ग की प्राप्ति हो गई,तब जो लोग श्रद्धा के साथ नियम लेकर श्रीगंगाजी का सेवन करते हैं उनके सम्बन्ध में तो कहना ही क्या है। क्योंकि गंगा जी भगवान के उन चरणकमलों से निकली हैं, जिनका श्रद्धा के साथ चिन्तन करके बड़े -बड़े मुनि निर्मल हो जाते हैं और तीनो गुणों के कठिन बन्धन को काटकर तुरंत भगवत्स्वरूप बन जाते हैं। फिर गंगा जी संसार का बन्धन काट दें इसमें कौन बड़ी बात है।

भारतीय संस्कृति और सभ्यता को जीवन्त बनाने में यदि किसी का सर्वाधिक योगदान है तो वह हैं गंगा नदी। यह गंगा नदी न केवल हमारे ही देश की सबसे पवित्र नदी हैं अपितु विश्व की सर्वश्रेष्ठ नदियों में अपने विशिष्ट गुणों के कारण सर्वप्रथम स्थान रखती हैं। जिस प्राचीन भारतीय सभ्यता और संस्कृति की चर्चा करते हुए आज भी हम अपने गौरवपूर्ण अतीत को स्मरण करते हैंए उस सभ्यता को सर्वलोकोपकारी बनाने में गंगा जी की लहरों ने ही मानव हृदय को मंगलमयी प्रेरणा दी थी। हमारे इस विशाल देश में गंगा की निर्मल धारा प्राचीन काल से ही अपना महत्वपूर्ण स्थान रखती है। हिन्दुओं के लिए तो यह धरती पर बहकर भी आकाशवासी देवताओं की नदी है और इस लोक की सुख समृद्धियों की विधात्री होकर भी परलोक का सम्पूर्ण लेखा जोखा सँवारने वाली हैं।

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गंगा जी केवल शारीरिक एवं भौतिक सन्तापों को ही शान्त नहीं करती अपितु आन्तरिक एवं आध्यात्मिक शान्ति को भी प्रदान करती हैं। अखिल ब्रह्माण्ड व्यापक जग के विधाता पोषक एवं संहारक ब्रह्मा एवं शंकर जी तथा विष्णु के द्रव रूप में भागीरथी हिन्दूओं के मानस पटल पर ऐसा प्रभाव डालती हैं कि कोई भी हिन्दू गंगा जी को न तो नदी के रूप में देखता है और न किसी के मुख से यह सुनना चाहता है कि गंगा जी नदी है। उसकी तो यह अन्तिम इच्छा होती है कि मृत्यु के समय उसके मुख में एक बूँद भी गंगा जल चला जाय तो उसका मानव जीवन सफल हो जायेगा। अत: इस दिन स्नान, दान, जप, तप, व्रत, और उपवास आदि करने का बहुत ही महत्व है।

ज्योतिषाचार्य पं. गणेश प्रसाद मिश्र