दीपावली से पहले धनतेरस मनाया जाता है। इस बार यह पर्व 5 नवंबर को मनाया जाएगा। धनतेरस का भगवान धन्वंतरि हर प्रकार के रोगों से मुक्ति दिलाते हैं, इसलिए कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी को भगवान धन्वंतरि की पूजा करना चाहिए। स्कन्द पुराण के अनुसार, इस दिन अपमृत्युनाश के लिए सायंकाल घर से बाहर यमराज के लिए दीपक का, औषधियों का दान करने का विधान है।  
व्रत त्योहार 
2 नवंबर को श्री गुरु हरराय जोति जोत व्रत है। 3 नवंबर को रंभा एकादशी व्रत। 4 नवंबर को गोवत्स पूजा। 5 नवंबर को सोम प्रदोष व्रत। धनतेरस। धन्वंतरि जयंती। 6 नवंबर को नरक चतुर्दशी। 

गीता सार-आत्मा के अधिपति सर्गाणामादिरंतश्च मध्यं चैवाहमर्जुन। अध्यात्मविद्या विद्यानां वाद: प्रवदतामहम्। 
हे अर्जुन, सृष्टियों का आदि, अंत और मध्य मैं ही हूं। विद्याओं में अध्यात्मविद्या मैं हूं। जो आत्मा का आधिपत्य दिला दे, वह विद्या मैं हूं। संसार में अधिकांश प्राणी माया के आधिपत्य में हैं। राग, द्वेष, काल, कर्म, स्वभाव और गुणों से प्रेरित हैं। इनके आधिपत्य से निकालकर आत्मा के आधिपत्य में ले जानेवाली विद्या मैं हूं, जिसे अध्यात्मविद्या कहते हैं। परस्पर होनेवाले विवादों में, ब्रह्मचर्चा में जो निर्णायक है, ऐसी वार्ता मैं हूं। शेष निर्णय तो अनिर्णीत होते हैं। 
अनमोल विचार 
यदि आप चाहते हैं कि लोग आपके साथ सच्चा व्यवहार करें, तो सबसे पहले आप खुद सच्चे बनें और दूसरों के साथ भी सच्चा व्यवहार करें। -महर्षि अरविंद

 

दीपावली से पहले धनतेरस मनाया जाता है। इस बार यह पर्व 5 नवंबर को मनाया जाएगा। धनतेरस का भगवान धन्वंतरि हर प्रकार के रोगों से मुक्ति दिलाते हैं, इसलिए कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी को भगवान धन्वंतरि की पूजा करना चाहिए। स्कन्द पुराण के अनुसार, इस दिन अपमृत्युनाश के लिए सायंकाल घर से बाहर यमराज के लिए दीपक का, औषधियों का दान करने का विधान है।  

व्रत त्योहार 

2 नवंबर को श्री गुरु हरराय जोति जोत व्रत है। 3 नवंबर को रंभा एकादशी व्रत। 4 नवंबर को गोवत्स पूजा। 5 नवंबर को सोम प्रदोष व्रत। धनतेरस। धन्वंतरि जयंती। 6 नवंबर को नरक चतुर्दशी। 

धनतेरस 5 नवंबर को,जानिए सप्‍ताह के व्रत त्‍योहार

गीता सार-आत्मा के अधिपति सर्गाणामादिरंतश्च मध्यं चैवाहमर्जुन। अध्यात्मविद्या विद्यानां वाद: प्रवदतामहम्। 

हे अर्जुन, सृष्टियों का आदि, अंत और मध्य मैं ही हूं। विद्याओं में अध्यात्मविद्या मैं हूं। जो आत्मा का आधिपत्य दिला दे, वह विद्या मैं हूं। संसार में अधिकांश प्राणी माया के आधिपत्य में हैं। राग, द्वेष, काल, कर्म, स्वभाव और गुणों से प्रेरित हैं। इनके आधिपत्य से निकालकर आत्मा के आधिपत्य में ले जानेवाली विद्या मैं हूं, जिसे अध्यात्मविद्या कहते हैं। परस्पर होनेवाले विवादों में, ब्रह्मचर्चा में जो निर्णायक है, ऐसी वार्ता मैं हूं। शेष निर्णय तो अनिर्णीत होते हैं। 

अनमोल विचार 

यदि आप चाहते हैं कि लोग आपके साथ सच्चा व्यवहार करें, तो सबसे पहले आप खुद सच्चे बनें और दूसरों के साथ भी सच्चा व्यवहार करें।

-महर्षि अरविंद