मनोज और विमल दोनों बचपन के पक्के दोस्त थे। दोनों दोस्तों को एक ही कंपनी में अच्छी नौकरी भी मिल गई। मनोज और विमल दोनों ही बहुत मेहनती थे। समय का पहिया अपनी रफ्तार से चलता गया और 5 साल बाद मनोज को कंपनी ने मैनेजर बना दिया, लेकिन विमल आज भी एक जूनियर कर्मचारी ही था। दोस्त को मैनेजर बनने की खुशी तो थी लेकिन विमल खुद को हारा हुआ महसूस कर रहा था। उसे लगा कि मैं भी मेहनत करता हूं और कंपनी का मालिक मुझे भी मैनेजर बना सकता था, लेकिन उसने ऐसा नहीं किया, आखिर क्यों?

अगले दिन विमल बेहद गुस्से में ऑफिस आया और आते ही उसने अपनी नौकरी से रिजाइन कर दिया। कंपनी के मालिक ने विमल को बुलाया तो विमल ने कहा कि आपको मेहनती लोगों की कद्र ही नहीं है। कंपनी के मालिक ने मुस्कुरा कर कहा- चलो अब तुम जा रहे हो तो जाते-जाते मेरा एक काम कर दो, जरा बाजार में देखो तो कोई तरबूज बेच रहा है क्या? विमल बाजार गया और आकर बोला- हां एक आदमी बेच रहा है। मालिक ने पूछा किस भाव में बेच रहा है? तो वह दोबारा गया और पता कर बताया कि तरबूज 40 रुपए किलो है।

अब मालिक ने मनोज को बुलाया और कहा- बाजार में देखो तो कोई तरबूज बेच रहा है क्या? मनोज बाजार गया और वापस आकर बोला- बाजार में केवल एक ही आदमी तरबूज बेच रहा है। 40 रुपए किलो। मैने थोड़ा मोल-भाव किया तो 10 किलो तरबूज 200 रुपए में देने को तैयार है। मैं उसका फोन नंबर भी लाया हूं। आप मोल-भाव कर सकते हैं।

मालिक मुस्कुराया और विमल से बोला देखो, यही फर्क है तुममें और मनोज में। बेशक तुम भी मेहनती हो, पर मनोज तुमसे ज्यादा उचित लगा मुझे। कभी हम वक्त को दोष देते हैं तो कभी हालात को लेकिन हम कभी सफल व्यक्ति में और खुद में फर्क ढूंढ़ने की कोशिश नहीं करते।

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