RANCHI दिल्ली के चिडि़याघर में मंगलवार को हुए हादसे का बाद देश के तमाम चिडि़याघरों में सुरक्षा के इंतजाम पर सवाल खड़े हो गए हैं। जू में हर दिन हजारों लोग जानवरों की एक्टिविटीज को देखने पहुंचते हैं। कई बार लोग अपनी जान जोखिम में डालकर जानवरों के करीब जाने की भी कोशिश करते हैं। ऐसे में हादसे की आशंका पैदा हो जाती है। अगर जू में बाघ और शेर समेत अन्य जानवरों को देखने के लिए विजिटर्स उसके करीब जाने की फिराक में हैं तो उसे रोकने के लिए इंतजाम करना जू मैनेजमेंट का काम है। जहां तक रांची के बिरसा जू की बात है, यहां भी जानवरों व विजिटर्स की सिक्योरिटी में कहीं न कहीं लापरवाही बरती जा रही है। दिल्ली जू के हादसे के बाद आई नेक्स्ट ने जब बिरसा जू के टाइगर व लायन केज का जायजा लिया तो सुरक्षा को लेकर कई खामियां नजर आई।

दीवार की ऊंचाई मात्र तीन फीट

अगर बिरसा जू में आप टाइगर्स को देखने के मूड में हैं, तो थोड़ा संभलकर जाएं। यहां टाइगर्स को जिस जगह पर रखा गया है, वहां विजिटिर्स की सेफ्टी और सिक्योरिटी में कई खामियां हैं। टाइगर्स के बाड़े के लिए बनाई गई दीवार की ऊंचाई मात्र तीन फीट ही है। इसके अलावा टाइगर्स और विजिटर्स के बीच की गई बैरिकेडिंग की भी ऊंचाई मात्र तीन फीट है। यहां बनाए गए गढ्डे की भी गहराई काफी कम है। ऐसे में कोई भी दीवार को फांदकर बाघ के करीब जा सकता है। आपको बता दें कि गढ्डे में पानी भी नहीं है, जबकि टाइगर्स बाड़े से बाहर नहीं आ सकें, इसके लिए गढ्डे में पानी भरा रहना जरूरी है।

बाड़े के पास गार्ड नहीं

बिरसा जू में बाघ के बाड़ के पास गार्ड का भी पुख्ता इंतजाम नहीं है। नियम के मुताबिक, हर बाड़ के पास गार्ड की व्यवस्था होनी चाहिए, ताकि अगर कोई विजिटर बाड़ में घुसने की कोशिश करे तो उसे रोका जा सके।

अलार्म सिस्टम का अभाव

बिरसा जू में कुछ साल पहले दो भालू अपने बाड़ से बाहर आ गए थे। इस वजह से वहां भगदड़ मच गई थी। बाड़ से बाहर आने के बाद भालू पेड़ों के बीच कहां छिप गया था, यह पता नहीं चल रहा था। ऐसे में यहां आपातकाल के लिए अलार्म सिस्टम लगाने की बात हुई थी, लेकिन इस घटना के कई साल बीत जाने के बाद यहां अलार्म सिस्टम की कोई व्यवस्था नहीं है।

नहीं है ट्रांिक्वलाइजर गन

बिरसा जू में अगर कोई जानवर बेकाबू हो जाए, तो उसे काबू में करने के लिए ट्रांक्विलाइजर गन नहीं है। इसके अलावा ट्रांक्विलाइजर गन को चलाने वाले एक्सप‌र्ट्स भी यहां नहीं हैं। गौरतलब है कि देश में जितने भी जू हैं, वहां ट्रांक्विलाइजर गन की व्यवस्था रहती है।

यहां शेर को देखना है सुरक्षित

बिरसा जू में टाइगर बाड़े में भले ही सुरक्षा के व्यापक इंतजाम नहीं हैं, लेकिन शेर के बाड़े के पास सुरक्षा के व्यापक इंतजाम है। शेर का केज चारों ओर लोहे के मजबूत तारों से घिरा हुआ है। इसके साथ क्0 फीट की दूरी पर दीवार बनाई गई है, जहां से विजिटर्स शेरों को देखते हैं। कोई भी यहां से केज के अंदर नहीं घुस सकता है।

सीसीएल की हुई दुर्गा

बिरसा जू की बाघिन दुर्गा अब सीसीएल की हो गई है। सेव द टाइगर प्रोजेक्ट के तहत सीसीएल ने दुर्गा को एक साल के लिए गोद लिया है। सोमवार को बिरसा जू में एडाप्शन प्रोग्राम का आयोजन किया गया, जहां सीसीएल के सीएमडी गोपाल सिंह और बिरसा जू के डायरेक्टर एके पात्रो समेत बड़ी संख्या में फॉरेस्ट डिपार्टमेंट और सीसीएल के अधिकारी और कर्मचारी मौजूद थे। बाघिन बिरसा के केज के पास जाकर सीसीएल के सीएमडी ने औपचारिक तौर पर गोद लेने की इस प्रक्रिया को पूरा किया। अगले साल ख्भ् सितंबर तक दुर्गा का सारा खर्च सीसीएल उठाएगा।