- 11 वर्ष से इमरजेंसी सेवा 108 को संचालित कराने का जिम्मा संभाल रहे 900 कर्मियों के भविष्य और रोजगार पर संकट

- 31 मार्च के बाद स्टाफ को लेकर नहीं हुआ अभी तक कोई निर्णय, कैंप कंपनी को संचालित करनी है इमरजेंसी सेवा

DEHRADUN: 11 वर्ष से इमरजेंसी सेवा 108 को संचालित करने का जिम्मा संभाल रहे 900 कर्मियों के भविष्य और रोजगार का संकट खड़ा हो गया है. कम्यूनिटी एक्शन मोटिवेशन प्रोग्राम (कैंपप) ने 108 एम्बुलेंस सेवा को चलाने के लिए स्टेट गवर्नमेंट से अधिकार तो ले लिए, लेकिन जो 900 कर्मी 108 एम्बुलेंस सेवा में कार्य कर रहे हैं. उनके सामने 31 मार्च के बाद रोजगार की टेंशन हो गई है. 108 और केकेएस फील्ड कर्मचारी संघ ने वित्त मंत्री से लेकर स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों के अलावा बाल आयोग से भी रोजगार को लेकर गुहार लगाई है, लेकिन अभी तक न सरकार की ओर से और न ही नई कंपनी कैंप की ओर से कर्मचारियों को कोई आश्वासन मिल पाया है. ऐसे में कर्मचारी मानसिक रूप से भी परेशान हैं.

12 मई 2008 को लॉन्च हुई थी 108 सेवा

स्टेट गवर्नमेंट के सामने आज भी पलायन सबसे बड़ी समस्या है. एक तरफ स्टेट गवर्नमेंट पहाड़ में स्वरोजगार बढ़ाने और पलायन को रोकने के दावे कर रही है, दूसरी तरफ जो युवा स्टेट की योजनाओं में संविदा या दूसरी तरह से जुड़े हैं, उनका रोजगार छीना जा रहा है. स्टेट में आपाताकालीन सेवा के लिए 108 एम्बुलेंस सेवा और खुशियों की सवारी संचालित हो रही है. जो कि 12 मई 2008 को उत्तराखंड में लॉन्च हुई थी, तब उत्तराखंड इस इमरजेंसी सेवा को देने वाला तीसरा स्टेट था. बीते 11 वर्षो से 108 इमरजेंसी सेवा को जीवीके ईएमआरआई कंपनी संचालन कर रही है, लेकिन इस बार टेंडर कम्यूनिटी एक्शन मोटिवेशन प्रोग्राम (कैंप) कंपनी को मिला है. पहले तो एम्बुलेंस सेवा को 7 मार्च को नई कंपनी को टेकओवर करना था, लेकिन कैंप को अब पूरे सिस्टम को टेकओवर करने के लिए 31 मार्च तक का समय दिया गया है. डीजी हेल्थ की ओर से जीवीके ईएमआरआई कंपनी को 31 मार्च तक सेवाओं का संचालन करने को कहा है. इस बीच नई कंपनी कैंप भी काम संभालेगी. स्टेट गवर्नमेंट की पहल पर नई कंपनी को टेकओवर करने के लिए समय तो दे दिया गया, लेकिन जो 900 कर्मी इस कंपनी में कार्यरत हैं, उनको कौन रोजगार देगा. इससे कर्मचारी परेशान हैं. 108 और केकेएस फील्ड कर्मचारी संघ उत्तराखंड के प्रदेश सचिव विपिन चन्द्र जमलोकी ने बताया कि बीते 11 वर्र्षो से स्टाफ अपनी सेवाएं दे रहा है. ऐसे में स्टेट गवर्नमेंट को इनके भविष्य को लेकर सोचना चाहिए. जिन कर्मियों का परिवार इसी रोजगार के भरोसे चल रहा है. उनका रोजगार छिन जाएगा तो वे सड़कों पर आ जाएंगे. उन्होंने कहा कि 900 कर्मियों के 3 हजार से ज्यादा बच्चों का भविष्य भी इसी नौकरी पर टिका है. ऐसे में उन्होंने बाल संरक्षण आयोग से भी गुहार लगाई है.

फरवरी का वेतन रुका

108 सेवा का संचालन भले ही 11 वर्षो से जीवीके ईएमआरआई कंपनी ने किया हो, लेकिन हमेशा कंपनी विवादों में रही है. अक्सर सेवाओं और स्टाफ के साथ वेतन के अलावा कई प्रकार के विवाद होते रहे हैं. जिसकी वजह से कई बार सेवा पर भी असर पड़ा है. कंपनी ने 31 मार्च तक संचालन में हामी तो भर दी, लेकिन अभी तक फरवरी का वेतन नहीं दिया गया है, जबकि मार्च तक का वेतन भी जीवीके कंपनी को चुकाना है.

हम सभी कर्मी 11 वर्र्षो से सेवाएं दे रहे हैं, लेकिन स्टेट गवर्नमेंट ने हमारे भविष्य को लेकर कोई निर्णय नहीं लिया है. जिससे हमारे आगे रोजगार का संकट खड़ा हो गया है.

- विपिन चन्द्र जमलोकी, प्रदेश सचिव, 108 और केकेएस फील्ड कर्मचारी संघ

एक नजर में 108 इमरजेंसी सेवा-

- 12 मई 2008 को उत्तराखंड में लॉन्च हुई थी 108 सेवा

- जीवीके ईएमआरआई कंपनी कर रही संचालन

- 31 मार्च तक जीवीके कंपनी करेगी संचालन

- नई कंपनी कम्यूनिटी एक्शन मोटिवेशन प्रोग्राम (कैंप) को मिला है संचालन का जिम्मा

- वर्तमान में 900 कर्मचारी हैं कार्यरत

- 717 फील्ड कर्मचारी जिनमें ईएमटी, पायलट कर्मचारी, डीओ, एचआर आदि अन्य स्टाफ शामिल है.

Posted By: Ravi Pal