आज के आधुनिक समाज में जहां पति-पत्नी दोनों काम करने वाले हों छोटे बच्चों की देखरेख एक जटिल चुनौती बन गई है.

खासतौर पर उस समय जबकि वो किसी महानगर में रहते हों और उनके साथ कोई बुजुर्ग व्यक्ति न हो और वो सूचना तकनीक जैसे क्षेत्र की किसी निजी कंपनी में काम करते हों जहां काम की कोई समय सीमा निर्धारित नहीं होती। लेकिन अब ऐसे माता-पिता के लिए उम्मीद की एक नई किरण दिखाई दे रही है।

अब बड़े नगरों में ऐसे केंद्र या प्री-स्कूल खुलने लगे हैं, जहां केवल दिन में ही नहीं बल्कि चौबीसों घंटे बच्चों की देखभाल की जाती है। यूं भी कहा जा सकता है कि उन्हें घर से बाहर एक और घर मिल जाता है।

बढ़ रहा है चलन

हैदराबाद में स्प्रन्ज़ा, बैंगलोर में किड्स स्पेस अकादमी और दिल्ली में केयर प्लस वर्ल्ड जैसी संस्थाएं बच्चों की चौबीसों घंटे देखभाल की सुविधा प्रदान कर रही हैं। इस तरह के केंद्र सबसे ज्यादा उन नगरों में लोकप्रिय हो रहे हैं जहां आईटी कंपनियां और बीपीओ केंद्र स्थित हैं। वासिरेड्डी चंद्रशेखर भारत में इस तरह के केंद्रों की कल्पना करने वाले पहले व्यक्ति थे।

डबलिन से शिक्षा पाकर लौटे चंद्रशेखर का कहना है कि 24 घंटे बच्चों की देखभाल करने वाला केंद्र खोलने का विचार उन्हें इसलिए आया क्योंकि देश में अब केवल मां-बाप और बच्चों पर आधारित छोटे-छोटे परिवार आम होते जा रहे है।

वे कहते हैं कि इन परिवारों में कामकाजी माता-पिता अपने बच्चों को ज्यादा समय नहीं दे पा रहे हैं, साथ ही बच्चों को मां की ममता और प्यार नहीं मिल रहा है। वे कहते हैं, "हमने इसी कमी को दूर करने की कोशिश की है। हमारा उद्देश्य ये है कि हम बच्चों की देखभाल के लिए हर समय मौजूद रहें." हालांकि भारत में ये एक बिल्कुल नई कल्पना है लेकिन इसका बड़ी तेजी से प्रसार हो रहा है।

कामकाजी दम्पतियों के लिए वरदानहैदराबाद में स्प्रन्ज़ा के छह केंद्र खुल चुके हैं, पुणे और बैंगलोर में भी उसके फ़्रेंचाइज़ी केंद्र काम कर रहे हैं, जहां छह महीने से लेकर छह वर्ष तक के बच्चे 12 घंटों तक बिल्कुल घरेलू माहौल में रहते हैं। कभी जरूरत पड़ने पर बच्चों की देखभाल 24 घंटे भी की जाती है।

हैदराबाद के बंजारा हिल्स स्प्रन्ज़ा केंद्र में जिनके बच्चों की देखभाल हो रही हैं, उनमें एक फ़रजाना मुल्ला भी हैं, जो एक न्यूरो-सायकोलॉजिस्ट हैं और जिनके पति एक बैंक में काम करते हैं।

फ़रजाना का कहना था, "ये खासकर एकल परिवारों के लिए एक बड़ी सुविधा है। मेरे परिवार में मेरे अलावा मेरे पति और बच्चा हैं। पति भी काम करते हैं और चौबीस घंटे देखभाल की यह सुविधा हमारे लिए काफी फायदेमंद है। हम अपने बच्चे को नौकरों के साथ अकेले घर में नहीं छोड़ सकते क्योंकि सुरक्षा एक बड़ी समस्या है.''

वे कहती हैं, ''दूसरी बात यह है कि हमारा कोई निर्धारित समय नहीं है कि हमारा काम कब खत्म होगा और हम कब आएंगे। अगर किसी दिन हमें दो घंटे की देर भी हो जाए, तब भी हमें इत्मीनान रहता है कि इस केंद्र में हमारे बच्चे की देखभाल हो रही है."

बच्चों की चौबीसों घंटे देखभाल की सुविधा आईटी कंपनियों में काम करने वालों के लिए खासतौर पर एक बड़ा वरदान साबित हुई है। चंद्रशेखर वासिरेड्डी का कहना है कि जितने लोगों के बच्चे उनके केंद्रों में आते हैं, उनमें से 90 से 95 प्रतिशत लोग आईटी उद्योग में काम करते हैं और अधिकतर लोग 12 से 14 घंटे दफ्तर में रहते हैं।

माता-पिता का भरोसा

स्प्रन्ज़ा की प्रबंधक कविता कहती हैं कि इस तरह के केंद्रों की सफलता और लोकप्रियता में माता-पिता का भरोसा बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि छह महीने के बच्चों को दूसरों के हाथों में देना माता-पिता के लिए आसान नहीं होता। माता-पिता में ऐसे केंद्रों के सुरक्षित और अच्छे होने का भरोसा पैदा करने में आधुनिक तकनीक भी अहम भूमिका अदा कर रही है।

उदाहरण के तौर पर एस्प्रन्ज़ा का हर केंद्र, ऑफिस ऑटोमेशन तकनीक से सुसज्जित है। हर कमरे में सीसी टीवी कैमरे लगे हैं और उन्हें इंटरनेट से जोड़ दिया गया है, जिसके जरिए मां- बाप अपने स्मार्ट फोन या कंप्यूटर की स्क्रीन पर किसी भी समय अपने बच्चे को देख सकते हैं।

चंद्रशेखर कहते हैं, "अगर आप अपने लैपटॉप के साथ अमेजन के जंगल में हों या कहीं अपनी पत्नी के साथ छुट्टी मना रहे हों, वहां से भी आप इंटरनेट पर कैमरे के जरिए अपने बच्चे को देख सकते हैं कि वो हैदराबाद के केंद्र में क्या कर रहा है, वो अपने बच्चे की हर गतिविधि के बारे में जानकारी ले सकते हैं"।

रोहा एक सॉफ्टवेयर इंजीनियर हैं जिनका 10 महीने का बच्चा मोहित इसी केंद्र में हर दिन बारह घंटे गुजारता है और वो वहां काम करने वाले सभी लोगों की आंख का तारा है।

वो कहती हैं, "कैमरे से मुझे बहुत मदद मिलती है। मैं रोजाना शाम को चार-पांच बजे अपने कंप्यूटर की स्क्रीन पर सीसी टीवी कैमरे के जरिए अपने बच्चे को देखती हूं कि वो कहां है और क्या कर रहा है। मैं ये भी जानकारी लेती हूं कि उसने खाना खाया या नहीं। यह सारा रिकॉर्ड वेबसाइट पर ही उपलब्ध होता हैं। इससे मुझे बड़ा सुकून मिलता है.''

संभावनाएंस्प्रन्ज़ा में एक ऐसा बच्चा भी है, जो चौबीसों घंटे वहीं रहता है और उसकी मां ब्रिटेन से उसे कैमरे के जरिए देखती है क्योंकि उसकी नौकरी वहीं पर है, वो अपने बच्चे को कहीं और नहीं रख सकती।

बच्चों की अच्छी तरह से देखरेख और उसकी पारदर्शिता ही शायद वो वजह है कि आईटी और आईटीईएस कंपनियों के संगठन नैसकॉम ने स्प्रन्ज़ा को बढ़ावा देने का फैसला किया है।

स्प्रन्ज़ा और नैसकॉम के बीच एक समझौता हुआ है जिसके अंतर्गत नैसकॉम अपनी सदस्य कंपनियों के कर्मचारियों को सलाह देता है कि वो अपने बच्चों को स्प्रन्ज़ा केंद्रों में रखें। वहीं, स्प्रन्ज़ा दूसरे लोगों की तुलना में नैसकॉम के सदस्यों को अपनी फीस में 40 प्रतिशत तक की छूट देता है।

वैसे हैदराबाद में 12 घंटे के लिए एक बच्चे की देखभाल की फीस 66,000 रूपए प्रति वर्ष होती है और ये बारह घंटे कभी भी शुरू होकर कभी भी ख़त्म हो सकते हैं। यानी चौबीस घंटे में कभी भी माता-पिता अपने बच्चे को बारह घंटे के लिए वहां छोड़ सकते हैं।

कुछ माता-पिता तो रात में दस-ग्यारह बजे भी बच्चों को ले जाते हैं। एक कंपनी के मार्केट सर्वे के अनुसार देश में प्री-स्कूल और बच्चों की देखभाल के क्षेत्र में 26 अरब डॉलर के अवसर मौजूद हैं और इसी को मद्देनजर रखते हुए स्प्रन्ज़ा और दूसरी कंपनियां पूरे देश में अपने केंद्र स्थापित करने की योजना बना रही हैं।

Posted By: Inextlive