--IIT और RDSO के परीक्षण में खतरनाक साबित हो चुके हैं भारतीय रेल के 6000 कोच

-आई नेक्स्ट की इन्वेस्टिगेशन में सामने आया है कि रोजाना 12 लाख पैसेंजर्स की जान से खेल रहा है रेलवे

KANPUR : पुखरायां रेल हादसे ने एक बार फिर भारतीय रेल से यात्रा करने वाले पैसेंजर्स की सुरक्षा पर बड़ा सवाल खड़ा कर दिया है। रोजाना लाखों पैसेंजर्स भगवान भरोसे रेल से यात्रा कर रहे हैं। ये हम नहीं कह रहे बल्कि आईआईटी और आरडीएसओ की ओर से डेवलप किया गया 'सिस्टम' बता रहा है। इन दोनों संस्थानों ने भारतीय रेलवे के हजारों ट्रेन के डिब्बों पर एक परीक्षण किया, जिसमें करीब 6 हजार खतरनाक साबित हुए। ये कोच इतने खतरनाक हैं कि इनकी वजह से कभी भी कोई दुर्घटना हो सकती है। इसका भयावह रूप पुखरायां रेल हादसे जैसा भी हो सकता है। आई नेक्स्ट ने इन्वेस्टिगेशन की तो मालूम चला कि रोजाना करीब 12 लाख पैसेंजर्स की जान से खेल रहा है रेलवे।

शताब्दी के कोचेज भी फेल

आईआईटी कानपुर और आरडीएसओ ने मिलकर 2005 में व्हील इम्पैक्ट लोड डिटेक्शन सिस्टम (वाइल्ड) डेवलप किया था। इस सिस्टम का ट्रायल अजगैन के पास किया गया था, जिसमें सैकड़ों ट्रेनों में लगे हजारों कोचेज का परीक्षण वाइल्ड के माध्यम से किया गया। इसमें शताब्दी एक्सप्रेस तक के पहिये फेल हो गए थे। इसके बाद भी शताब्दी एक्सप्रेस के वो डिब्बे बिना रुके आज तक ट्रैक पर दौड़ रहे हैं। वाइल्ड के टेस्ट रिजल्ट ने 6 हजार कोचेज को तत्काल हटाने के लिए रेलवे को कहा था। इसके बावजूद वो कोचेज नहीं हटाए गए।

कई एक्सप‌र्ट्स थे टीम में

आईआईटी मैकेनिकल इंजीनियरिंग डिपार्टमेंट के प्रो। डा। एनएस व्यास और उनकी टीम ने 'वाइल्ड' सिस्टम तैयार किया था। इस टीम में आरडीएसओ के इंजीनियर आलोक कुमार भी शामिल थे। देश के जाने-माने टेक्निकल इंजीनियर्स की टीम ने इस सिस्टम को तैयार करने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। इसके बावजूद रेलवे ने इस सिस्टम को नहीं अपनाया। अगर अपना लिया होता तो फिर इन्दौर-पटना एक्सप्रेस हादसे का शिकार नहीं होती। टीम ने वाइल्ड सिस्टम को देश में 256 स्थानों पर लगाने की सिफारिश की थी, जिससे की वहां से गुजरने वाले ट्रेन के डिब्बों की हालत से वो समय-समय पर अवगत कराता रहे। बता दें कि आईआईटी कानपुर ने आरडीएसओ लखनऊ के साथ मिलकर रेलवे के 12 प्रोजेक्ट पर काम शुरू किया था। इसमें से एक व्हील इम्पैक्ट लोड डिटेक्शन सिस्टम यानि वाइल्ड भी शामिल था।

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क्या है 'वाइल्ड'?

प्रो। व्यास ने बताया कि 'वाइल्स' एक स्पेशल डिवाइस है। जिसको की ट्रैक पर फिट करना होता है। इसके सेंसर ट्रैक पर फिट करने के बाद जब इससे ट्रेन गुजरती है तो ट्रैक के आसपास लगी डिवाइस में इसकी पूरी जानकारी आ जाती है कि किस बोगी में क्या खराबी है? या फिर इसका वेट ज्यादा तो नहीं है? इसके अलावा ट्रेन के पहिए में अगर कोई गड़बड़ी है तो भी इसकी रेड लाइट जल जाती है।

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संसद में की थी घोषणा

सिस्टम के पास ट्रेन से गुजरने के बाद ये पूरी जानकारी कंट्रोल रूम वाया कम्प्यूटर पहुंच जाती है। इसके बाद ट्रेन के पायलट को इसकी जानकारी देकर ट्रेन को रोक जा सकता है। जिससे हादसे से बचा जा सकता है। देश में करीब 256 स्थानों पर इसको लगाया जाना था। तत्कालीन रेलवे मिनिस्टर ममता बनर्जी ने इस डिवाइस को लगाने की घोषणा भी संसद में की थी इसके बाद ट्रायल के तौर पर 15 स्थानों पर लगाया गया था। फिर मामला ठंडे बस्ते में चला गया। झारखण्ड, बिहार, पश्चिम बंगाल, कर्नाटक, उड़ीसा जैसे राज्य शामिल थे। जहां पहले चरण में इसको लगाया जाना था।

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'वाइल्ड' को आईआईटी व आरडीएसओ की टीम ने मिलकर डेवलप किया था। इसका ट्रायल अजगैन में लिया गया था। परीक्षण शताब्दी समेत कई ट्रेनों पर किया गया था। शताब्दी कोच का पहिया इसमें फेल हो गया था। 'वाइल्ड' व्हील व कोच के लोड की जानकारी देता है। कौन से व्हील कोच का खराब है इसकी जानकारी मिल जाती है?

-आलोक कुमार, चीफ इंजीनियर, नार्दर्न रेलवे

Posted By: Inextlive