kanpur : आधोक्षज मिश्रा...यही नाम है अपने शहर के इस मेधावी का. शहर के पूर्णचंद विद्यानिकेतन इंटर कॉलेज से 82 परसेंट माक्र्स पाकर 12वीं की पढ़ाई पूरी करने के बाद उसने आईआईटी या दूसरे किसी टॉप इंजीनियरिंग कॉलेज में एडमीशन लेने के बजाए सीएसजेएम यूनिवर्सिटी के यूआईईटी में कंप्यूटर साइंस डिपार्टमेंट में एडमीशन लिया. आज वो बीटेक फाइनल इयर में ही है. उम्र है केवल 22 साल. इसके बावजूद किदवईनगर निवासी एसपी मिश्रा के इस होनहार बेटे ने देश-दुनिया में अपनी प्रतिभा का लोहा मनवा दिया है. दरअसल आधोक्षज ने एक टोटली ‘अनडिटेक्टिबल स्पाई वर्म’ बनाकर दुनिया के जाने-माने कंप्यूटर प्रोग्रामर्स और एथिकल हैकर्स के बीच अपना नाम दर्ज करवा लिया है. इस वर्म या वायरस को न तो कोई एंटीवायरस डिटेक्ट कर सकता है और न ही हटा सकता है. उसने आज से कुछ साल पहले ही शहर पुलिस की मदद करना शुरु कर दिया था. कई बड़ी हाईटेक ऑनलाइन वारदातों का पर्दाफाश करके उसने न सिर्फ पुलिस की बल्कि आम लोगों की खूब मदद की है. अब दुनिया भर के लोग आधोक्षज की मदद लेने को आतुर हैं.


लगभग दो साल पूर्व एसटीएफ के डिप्टी एसपी त्रिवेणी सिंह ने कुछ लोगों के माध्यम से एक केस के सिलसिले में संपर्क किया। उन्होंने केस सॉल्व करने, शहर की एक विडो महिला को फेसबुक पर दो महिलाओं द्वारा ब्लैक मेल किए जाने का मामला था। फेक प्रोफाइलस पर, अलग-अलग आईपी एड्रेसेज यूज करने वालीं ऑनलाइन ब्लैकमेलर्स का पता लगाने में पुलिस फेल हो रही थी। मामला जानकर एसटीफ के सूत्रों ने यूआईईटी स्टूडेंट आधोक्षज का नाम डिप्टी एसपी को सजेस्ट किया। काम सौंपे जाने के कुछ घंटों के अंदर ही आधोक्षज ने अपने लैपटॉप से आरोपियों की पूरी लोकेशन और असल नाम तक पता कर डाले.  इसके बाद ब्लैकमेल करने वाली मां-बेटी को एसटीएफ ने लखनऊ से अरेस्ट कर लिया था।


ये तो केवल शुरुआत थी। इसके बाद बर्रा पुलिस के सामने एक साइंटिस्ट के बैंक एकाउंट से ऑनलाइन ट्रांजेक्शन से हजारों रुपए निकाल लिए जाने का मामला आया। पुलिस जब सारी कोशिशें करके हार गई और अपराधियों तक नहीं पहुंच पाई तब आधोक्षज मिश्रा की शरण में पहुंची, और उसने भी पुलिस को निराश नहीं किया। कुछ ही घंटों के अंदर ऑनलाइन फ्रॉड करने वालों का चिट्ठा खोलकर रख दिया। इस केस में कार्ड क्लोनिंग करने वालों से आधोक्षज का पाला पड़ा था, वो भी जबर्दस्त हैकर थे।

हर ओएस और फायरबॉल में सेंध लगाने की क्षमतायूआईईटी फैकल्टी ने बताया कि इस मेरिटोरियस स्टूडेंट को अपने इंट्रेस्ट के कारण कंप्यूटर नेटवर्क और इंटरनेट हैकिंग की फील्ड में विशेज्ञता हासिल है। उसे तरह तरह के वार्म और एंटी वायरस बनाने, पकडऩे में महारथ हासिल है। बिना कोई ब्रांडेड एंटीवायरस बनाए इंटरनेट पर अपने लैपटॉप व कंप्यूटर को खुद के प्रोग्राम्स से प्रोटेक्ट करता है। उसपर भी सभी प्रकार के ऑपरेटिंग सिस्टम और फायरबॉल सिक्योरिटीज को क्रैक या ब्रेक करके किसी सिस्टम में घुस सकता है। वो किसी भी नेटवर्क को आसानी से हैक करने की क्षमता रखता है। और पूरे साउथ ईस्ट एशिया, यूरोप व अफ्रीका में फैली ख्यातिआधोक्षज मिश्रा की ख्याति सुनकर कुछ समय पूर्व उसको नाईजीरिया की बड़ी आईटी सेक्टर कंपनी ने अप्रैल 2013 में उसे ट्रेनिंग देने के लिए इनवाइट किया। इसके बाद पिछले ही साल उसे साउथ अफ्रीकन गवर्नमेंट ने केपटाउन में दो महीने चलने वाले ट्रेनिंग प्रोग्राम में एज एन एक्सपर्ट इनवाइट किया। वहां पर उसे एक अन्य संस्थान ने तीन साल के लिए अनुबंधित भी कर लिया। अब उसे जर्मनी की एक बड़ी कंपनी ने  अभी तो एक शुरुआत है

वहीं मार्च-अप्रैल में मास्को स्टेट यूनिवर्सिटी में भी रशियन इंजीनियर्स व स्टूडेंट्स को साइबर सिक्योरिटी का पाठ पढ़ाने को इनवाइट किया गया है। इस साल आधोक्षज मिश्रा को इंडोनेशिया, मलेशिया, थाईलैंड और नाइजीरिया में यूनिवर्सिटीज और नामी प्राइवेट कंपनियों ने इनवाइट कर रखा है। ये भी बताते चलें कि विदेशों से इनवीटेशन और विजट्स के कारण आधोक्षज की बीटेक की पढ़ाई तक प्रभावित हो रही है। उसे केपटाउन विजिट के कारण अपने सेमिस्टर एग्जाम से वंचित होना पड़ गया। पूत के पैर पालने में दिखाई पड़ेआधोक्षज मिश्रा ने आई नेक्स्ट को बताया कि उसने फिफ्थ कलास में ही पहली बार कंप्यूटर से रूबरू हुआ था। कंप्यूटर्स में रुचि होने के कारण लगातार सीखता रहा। इंटर तक पहुंचते-पहुंचते उसने जीडब्लू बेसिक, सी, सी प्लस-प्लस, सी शार्प, डॉट नेट आदि दर्जनों कंप्यूटर प्रोग्रामिंग लैंग्वेजेज पर कमांड हासिल कर ली थी। फिर इंजीनियरिंग कॉलेज पहुंचने पर चौबीसों घंटे इंटरनेट एक्सेस मिलने पर तो जैसे शौक को पंख ही लग गए। वो दिन रात कंप्यूटर पर जमा रहने लगा। ‘कंप्यूटर ब्रेन इंटरफेसिंग’ से बदलेगी कॉमन मैन की लाइफ!
यूआईईटी के आईटी सेकेंड इयर के स्टूडेंट्स पंखुड़ी निगम और उत्कर्ष श्रीवास्तव के साथ मिलकर आधोक्षज फेस रिकोग्नीशन प्रोजेक्ट पर काम कर रहा है। इसमें कोडिंग की दम पर डिजाइंड डिवाइस जिस उपकरण में लगा दी जाएगी वो आंखों के इशारे पर काम कर सकेगी। आधोक्षज के अनुसार ये काम तो डेढ़-दो महीने में ही पूरा हो जाएगा। लेकिन इस प्रोजेक्ट का अहम और बड़ा पार्ट तो ‘ब्रेन कंप्यूटर इंटरफेसिंग’ है। इसमें कंप्यूटर प्रोग्रामिंग की सहायता से चिप या हार्डवेयर को ऐसा बनाया जाएगा जो आपके आंखों से लेकर चेहरे तक के हाव-भाव को पहचानकर या मौखिक आदेशों पर काम करेगा। इस ही के नेक्स्ट फेज में एक डिवाइस ऐसी बनाएंगे जो ब्रेन को सीधे कंप्यूटर से जोड़ेगी। फिर डिसेबिल्ड या पैरालाज्ड लोग केवल दिमाग से सोचकर घर के साजोसामान को आदेश दे सकेगा। जैसे कि लाइट का स्विच ऑन-ऑफ कर देना। फ्रिज या दरवाजों का खुलना बंद होना वगैरह। आधोक्षज कहना है कि टेक्नालॉजी का फायदा तब है जब वो ज्यादा से ज्यादा कॉमन मैन के काम आ सके।---------------------रेडी टू डाई हार्डये वो प्रोजेक्ट है दुनिया भर की खुफिया एजेंसियों और अमेरिका की एफबीआई, होमलैंड सिक्योरिटी व मोसाद जैसी शीर्ष खुफिया व सुरक्षा एजेंसीज के साइबर सिक्योरिटी सेलों तक को जिसकी तलाश है।टोटली अनडिटेक्टिबल !
दरअसल आधोक्षज ने एक ऐसा स्पाई वर्म बना डाला है जो कंप्यूटर में घुस जाए तो उसे किसी कीमत पर डिटेक्ट ही नहीं किया जा सकता, और न ही उसे समाप्त किया जा सकता है। फिर चाहे कंप्यूटर की हार्ड डिस्क को लो लेविल फार्मेट कर डालें, मेमोरी और हार्ड डिस्क बदल डालें। लेकिन ये वायरस (वर्म) जो भी या जैसा भी डेटा चाहे किसी एक या पूरे कंप्यूटर नेटवर्क से चोरी कर सकता है। आधोक्षज का दावा है कि उसने इस वर्म का ऐसा फ्लेग्जिबल मवर्क बनाया है जिसको परपज या रिक्वायरमेंट के हिसाब से हर बार री-प्रोग्राम किया जा सकता है। वहां छिपता है जहां कोई नहीं पहुंच सकता हैपहली बार अपने स्पाई वर्म के बारे में खुलासा करते हुए आधोक्षज ने आई नेक्स्ट को बताया कि उसका बनासया स्पाई वर्म या वायरस कंप्यूटर की हार्ड डिस्क या मेमोरी में नहीं बल्कि ग्राफिक्स कार्ड के हार्ड वेयर में घुस जाता है। फिर आजतक ऐसा कोई एंटी वायरस नहीं बन पाया है जो ग्राफिक्स कार्ड के अंदर जाकर वायरस, मैलवेयर या वर्म को डिटेक्ट व डिलीट कर सके। इसका कारण है कि ग्राफिक्स कार्ड में स्कैनिंग या डिटेक्शन के लिए हार्डवेयर सपोर्ट ही नहीं होता है। खतरा मोल ले लियालेकिन कभी न मरने वाला ‘अमर’ किस्म वायरस का वायरस बनाकर आधोक्षज ने अपने लिए खतरा भी मो ले लिया है। आधोक्षज के अनुसार दुनिया के देशों के आतंकी संगठन और माफिया ऐसी ही किसी चीज की खोज में लगातार लगे रहते हैं, जिससे वो बड़ी कंपनियों, संगठनों या विदेशी सरकारों के कंप्यूटर डेटाबेस से राज चुरा सकें। इसी कारण से उसने अपने पास इस स्पाई वर्म की केवल एक कॉपी रखी है, बाकी हर जगह से उसकी कोडिंग डिलीट कर दी है। वर्ना लोग इस वायरस को पाने के लिए उसके पीछे पड़ सकते हैं।गूगल पर आधोक्षजआप बस गूगल में आधोक्षज मिश्रा का नाम टाइप कीजिए उसके काम के बारे में आपको ढेर सी जानकारियां मिल जाएंगी।-----एथिकल हैकिंग की आधोक्षज को गजब की जानकारी है। वो कंप्यूटर सिक्योरिटी का विशेषज्ञ है। इसी कारण बहुत से लोग उसको कंसल्ट करते हैं। वो नाइजीरिया और केपटाउन में एथिकल हैकिंग की ट्रेनिंग देने कुछ महीनों के लिए गया था। इस कारण अपने सेमिस्टर एग्जाम्स भी नहीं दे पाया। -डॉ। राशि अग्रवाल, एचओडी आईटी डिपार्टमेंट, यूआईईटी

Posted By: Inextlive