Jamshedpur : ट्रैफिक डिपार्टमेंट के आंकड़ों के मुताबिक 2006 से 2012 तक सिटी में तीन हजार से ज्यादा रोड एक्सीडेंट हुए जिनमें ग्यारह सौ से अधिक लोगों की डेथ हुई. डिफरेंट रिसर्च से पता चलता है कि एक्सीडेंट की स्थिति में इमीडिएट मेडिकल केयर मिलने से करीब 50 परसेंट रोड डेथ्स कम किए जा सकते हैं.

Severity में 7वां number
एक्सीडेंट सीवियरिटी (रोड एक्सीडेंट डेथ्स पर 100 एक्सीडेंट्स) के मामले में सिटी की हालत बेहद चिंताजनक है। दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, चेन्नई सहित देश के पचास शहरों में एक्सीडेंट सीवियरिटी के मामले में सिटी का स्थान सातवां है। मिनिस्ट्री ऑफ रोड ट्रांसपोर्ट के आंकड़ों के मुताबिक 2012 में सिटी में एक्सीडेंट सीवियरिटी 44.6 थी। इस दौरान अमृतसर, लुधियाना, कानपुर, आगरा जैसे कुछ शहरों में ही एक्सीडेंट सीवियरिटी इससे ज्यादा थी।
Fatal accidents की संख्या ह ै ज्यादा
सिटी में हर साल होने वाले एक्सीडेंट्स में फैटल एक्सीडेंट्स की संख्या काफी ज्यादा है। मिनिस्ट्री ऑफ रोड ट्रांसपोर्ट के आंकड़ों के अकॉर्डिंग 2012 में यहां 424 रोड एक्सीडेंट हुए जिनमें 173 फैटल एक्सीडेंट थे। इन एक्सीडेंट्स में 189 लोगों की डेथ हुई। वहीं 2011 में सिटी में 189 फैटल एक्सीडेंट हुए, जिनमें 207 लोगों को जान गंवानी पड़ी। एक्सीडेंट्स में होने वाली इन डेथ्स की एक बड़ी वजह घायल को सही समय पर मेडिकल केयर ना मिलना होता है।

 

नहीं start हुआ trauma center
एक्सीडेंट के स्थिति में घायलों को मेडिकल केयर उपलब्ध कराने के लिए ट्रॉमा केयर सेंटर बनाए जाते हैं। इन सेंटर्स में ट्रॉमेटिक इंजूरी से जूझ रहे पेशेंट्स के ट्रीटमेंट के लिए डॉक्टर और मॉडर्न इक्वीपमेंट सहित सभी सुविधाएं मौजूद हैं। इस्ट सिंहभूम के बहरागोड़ा में एनएच 33 पर भी एक करोड़ 35 लाख रुपए की लागत से ट्रॉमा सेंटर की बिल्डिंग बनाई गई है। ट्रॉमा सेंटर के लिए जेनरल सर्जन, ऑर्थोपेडिक सहित कुल 23 पद हैं, लेकिन सारी प्लानिंग के बावजूद इस ट्रॉमा सेंटर को अभी तक स्टार्ट नहीं किया जा सका है। सिविल सर्जन डॉ जगत भूषण ने बताया कि उन्हें अभी तक ट्रॉमा सेंटर का हैैंडओवर नहीं मिला है। उन्होंने कहा कि सेंटर के लिए कुछ मशीनें भी खरीदी गई हैं, लेकिन हैैंडओवर न मिलने की वजह से इसे स्टार्ट नहीं किया जा सका है। उन्होंने कहा कि इस संबंध में लेटर लिखा गया है।

तो बच सकती है जान
एक्सीडेंट की सूरत में इमीडिएट मेडिकल हेल्प से कई की जान बचाई जा सकती है। डब्ल्यूएचओ के एक रिसर्च के मुताबिक डेवलपिंग कंट्रीज में होने वाले करीब 50 परसेंट रोड डेथ्स को इमीडिएट केयर से रोका जा सकता है। डॉक्टर बताते हैं कि ट्रॉमा के बाद पहला घंटा जिसे गोल्डन आवर भी कहते हैं बेहद इंपोर्टेंट होता है। इस दौरान इंस्टैैंट और प्रॉपर फस्र्ट एड मिलने से सर्वाइवल के चांसेज काफी बढ़ जाते हैं।

Oxygen supply की कमी हो सकती है खतरनाक
डॉक्टर्स की मानें तो रोड एक्सीडेंट में होने वाली डेथ्स की सबसे कॉमन वजह ऑक्सीजन सप्लाई की कमी का होना है। ज्यादातर मामलों में ग्र्रेट इंपैक्ट और बॉडी को लगे शॉक की वजह से एयरवे बंद हो जाता है। इस स्थिति
में घायल की चार मिनट के अंदर मौत हो
जाती है।

काफी important हैं 4 minute
एक्सीडेंट के बाद शुरुआती चार मिनट घायल की जिंदगी के लिए बेहद इंपोर्टेंट होते हैं। उस दौरान आपकी थोड़ी सी मदद किसी की जान बचा सकता है। एबीसी रूल को अपनाकर इमरजेंसी के दौरान घायलों की मदद की जा सकती है

Airway- Clear the airway
-विक्टिम को सावधानी से जमीन पर लिटाकर उसे एक तरफ टर्न करें
-नेक, चेस्ट और वेस्ट के पास से कपड़ों को लूज करें
-हेड को थोड़ा सा डाउन कर ब्लड और वोमिट को बाहर निकाल दें। मुंह से डर्ट, ब्लड, वोमिट और लूज टूथ को साफ कर दें।
-Breathing- Help restore it by mouth to mouth resuscitation
-Circulation- Stop any bleeding
ट्रॉमा सेंटर का हैैंडओवर अभी हमें नहीं मिला है। इस संबंध में लेटर लिखा गया है। हैैंडओवर मिलने पर ट्रॉमा सेंटर को स्टार्ट कर दिया जाएगा।
-डॉ जगत भूषण, सिविल सर्जन, इस्ट सिंहभूम

Report by :abhijit.pandey@inext.co.in

Posted By: Inextlive