Varanasi:ख्वाहिशें तो हर किसी की होती हैं लेकिन कम लोग ही उन्हें हकीकत में बदल पाने में कामयाब होते हैं. आज हम आपकी मुलाकात ऐसी ही एक शख्सियत पूनम अरोड़ा से करा रहे हैं. इन्होंने एक हाउस वाइफ की जिंदगी से बाहर झांक कर देखने की कोशिश की. घर-परिवार को ही अपना संसार मानने वाली इस महिला के लिए नि:संदेह यह प्रयास कठिन था लेकिन उन्होंने हालात से हार नहीं मानी. कठिन मेहनत और लगन से अपने काम में जुटी रहीं. इसका नतीजा है कि आज वे अरोड़ा क्लासेज और अरोड़ा स्कूल जैसे इंस्टीट्यूशंस के एडमिनिस्ट्रेटिव हेड की जिम्मेदारी संभाल रही हैं. वह भी अपनी फैमिली की पूरी जिम्मेदारियां निभाते हुए.


आसान नहीं था यह सब पूनम बताती हैं कि मेरठ के एक बिजनेसमैन परिवार में मेरा जन्म हुआ। मेरठ यूनिवर्सिटी से मैंने ग्रेजुएशन किया। उसके बाद 1981 में मेरी शादी बनारस में डॉ। प्रकाश राज अरोड़ा से हो गयी। तब डॉ। अरोड़ा बैंक में जॉब करते थे। बाद में उन्होंने जॉब छोड़ कर अरोड़ा क्लासेज की शुरुआत की। बनारस शहर के लिए इंग्लिश स्पीकिंग क्लासेज एकदम नया कॉन्सेप्ट था। लेकिन धीरे धीरे स्टूडेंट्स की संख्या बढऩे लगी। तब लगा कि मुझे में भी अपने हसबैंड के साथ बाहर निकलना ही होगा। निश्चित ही यह मेरे लिए कठिन था। लेकिन मैंने ठान लिया कि मैं घर के साथ क्लासेज की जिम्मेदारी निभाने में भी डॉ। साहब का साथ दूंगी। यहीं से मेरा एक नया जीवन शुरू हुआ।  घर और बाहर दोनों मैनेज किया


शुरुआत में घर और बाहर दोनों को साथ लेकर चलने में दिक्कतें पेश आयीं। लेकिन मेरे साथ यह है कि मैंने जब कुछ सोच लिया तो उसे अंजाम तक पहुंचा कर ही दम लेती हूं। इसे  आप मेरी जिद भी कह सकते हैं। इस मामले में मुझे खुद को जिद्दी कहलाने से भी कोई गुरेज नहीं है। घर में इंग्लिश तो कोई बोलता नहीं था। मैंने क्लासेज में इंग्लिश सीखा और फिर वहां के एडमिनिस्ट्रेशन की जिम्मेदारी अपने ऊपर ले ली। धीरे धीरे क्लासेज की ब्रांच बढ़ी। फिर अरोड़ा स्कूल की शुरुआत हुई। इस समय अरोड़ा क्लॉसेज के दो व स्कूल की तीन ब्रांचेज रन कर रही हैं। इनके एडमिनिस्ट्रेटिव सेक्शन मैं और एकेडमिक सेक्शन मेरे हसबैंड देखते हैं। हम दोनों की मदद के लिए मेरा बेटा सुमेध व विवेक और बहू आकांक्षा है। इन्होंने हमारा काम बहुत हल्का कर दिया है। मेरा परिवार बहुत बढ़ गया है पहले मेरा परिवार बहुत छोटा था। लेकिन अब मेरा परिवार बहुत बड़ा हो गया है। मेरे साथ काम करने वाले मेरे परिवार के लोग ही तो हैं। क्लासेज व स्कूल मिलाकर 100 से अधिक लोगों का स्टाफ है। जिनके सुख दुख का ध्यान रखना मैं अपनी जिम्मेदारी मानती हूं। खास बात यह कि मेरा स्टाफ भी अपने जिम्मेदारियों के प्रति पूरी तरह सजग है। कभी कभी मुझे लगता है कि मैं एक छोटे परिवार से निकलकर बड़े परिवार में रहने लगी हूं। जहां मुझे छोटे से लेकर बड़े तक का प्यार व सहयोग मिलता है। मेरे स्टूडेंट्स हैं मेरा अवॉर्ड

जब कभी अरोड़ा क्लासेज के किसी स्टूडेंट को फ्लूएंटली इंग्लिश बोलते हुए देखती हूं तो मुझे बहुत संतुष्टि मिलती है। मुझे लगता है कि हमने अपने काम को बखूबी अंजाम दिया है। अक्सर मुझे ऐसे स्टूडेंट्स मिल जाते हैं जो आज किसी बड़े ओहदे पर हैं। उनको देख कर मुझे गर्व महसूस होता है। हमारे क्लासेज में सिर्फ स्कूल या कॉलेज गोइंग स्टूडेंट्स ही आते हैं ऐसा नहीं कि हमारे यहां सिर्फ टीचर्स, इंजीनियर्स, जर्नलिस्ट्स ही बल्कि डॉक्टर्स भी इंग्लिश स्पीकिंग का कोर्स करने आते हैं। जो इंग्लिश जानते हैं लेकिन बोलने से हिचकते हैं। अपनी इसी हिचक को दूर करने वे हमारे यहां आते हैं। खास यह कि हम भी उनसे दूसरी बहुत जरूरी चीजें सीख लेते हैं। अंग्रेजी सिखाते हैं लेकिन अंग्रेजियत नहीं आज के दौर में इंग्लिश जरूरी हो गया है। चाहे देश में हो या आप विदेश में हों। इंग्लिश आपको आनी चाहिए। यह आपके कॅरियर बिल्डिंग में एक बड़ा रोल प्ले करता है। लेकिन मैं इस बात को बहुत दावे के साथ कहती हूं कि हमारा इंस्टीट्यूट अंग्रेजी तो जरूर सिखाता है लेकिन अंग्रेजियत नहीं। इसका सबसे बड़ा एग्जाम्पल है हमारे यहां होने वाला सरस्वती पूजनोत्सव। हमारे इंस्टीट्यूट का सबसे बड़ा फंक्शन यही होता है।

Posted By: Inextlive