गांधी जयंती : चार रुपये के लिए बापू हो गए थे अपनी पत्नी से नाराज
तिरुवनंतपुरम (पीटीआई)। जी हां आपको भी जानकर हैरानी होगी कि महात्मा गांधी ने पत्नी कस्तूरबा को महज चार रुपये छुपाकर रखने के लिए फटकारा था। गांधी जी हमेशा अपने आदर्श और उसूलों के प्रति जागरुक रहते थे। इन चीजों से वह कभी कोई समझौता नहीं करते थे। 1929 में साप्ताहिक सामचार पत्र नवजीवन में महात्मा गांधी का एक लेख छपा था। इस लेख का टाइटल माई सॉरो, माई शेम था। इसमें महात्मा गांधी ने जीवन से जुड़े बेहद चौकाने वाले किस्से का जिक्र किया था।
लिखने में कोई झिझक भी नहीं महसूस हो रही
खास बात तो यह है कि उन्होंने शुरू में इस लेख को लिखने के पीछे की वजह का जिक्र किया था। महात्मा गांधी ने लिखा अाखिर मैं काफी सोचने-समझने के बाद इस निष्कर्ष पर आया हूं कि अगर इसे नहीं बताया तो समझो मैंने अपने कर्तव्यों का पालन नहीं किया। उन्हें इसे लिखने में कोई झिझक भी नहीं महसूस हो रही है। कस्तूरबा बहुत ही सुलझी हुई थी। कस्तूरबा के कई गुणों का वर्णन करने में कोई हिचकिचाहट नहीं हुई लेकिन उनकी कुछ कमजोरियां भी हैं जो इनके सदगुणों पर अघात करती हैं।
इसका खुलासा एक दिन अचानक से हुआ था
महात्मा गांधी के लेख के अनुसार करीब एक या दो साल पहले कस्तूरबा को एक या दो सौ रुपये अलग-अलग मौकों पर तोहफे के रूप में हासिल हुए हैं। आश्रम के नियमों के मुताबिक उन्हें अपने पास कुछ भी नहीं रखना है। यहां तक की खुद भी कोई चीज अपने लिए भी नहीं रख सकती है। कस्तूरबा ने नियमों का पालन भी किया लेकिन संसारी इच्छा अब भी उनमें है। उन्होंने अपने पास कुछ रुपये बचाकर रख लिए। इसलिए ये रुपए रखना अवैध है। इसका खुलासा एक दिन अचानक से हुआ था।
कुछ अजनबियों ने उनको चार रुपये दिए थे
एक बार मंदिर (आश्रम) में कस्तूरबा के कमरे में चोर घुस आए। हालांकि चोरों को कस्तूरबा के कमरे से कुछ नहीं मिला लेकिन कस्तूरबा एक चूक पकड़ में आ गई। आश्रम के एक निवासी ने उनकी गलती की ओर इशारा किया। इस पर मैंने भी उन्हें फटकारा। वहीं कस्तूरबा को अपनी गलती का अहसास हुआ और उन्होंने इस पर माफी भी मांगी। कस्तूरबा ने कहा कि कुछ दिन पहले कुछ अजनबियों ने उन्हें चार रुपये दिए थे लेकिन उन्होंने अपने पास रख लिए थे जो इस आश्रम के नियमों के खिलाफ है।
भविष्य में फिर कभी ऐसी चीजें नहीं होंगी
महात्मा गांधी ने लेख में लिखा कि इसके बाद कस्तूरबा उन रुपयों को लौटा दिया और खुद से प्रतिज्ञा ली कि भविष्य में फिर कभी ऐसी चीजें नहीं होंगी। अगर वह कभी अनजाने में भी ऐसा दोबारा करती हैं तो वह आश्रम छोड़ देंगी। वहीं बता दें कि गांधी जी इस लेख में अपनी पत्नी कस्तूरबा की बुराई के साथ तारीफ भी की थीं। उन्होंने लिखा था कि मैं कस्तूरबा के जीवन को काफी पवित्र मानता हूं। उन्होंने अपने पत्नी धर्म को अच्छे से निभाने के लिए कभी भी मेरे त्याग के रास्ते में कभी भी बाधा नहीं बनी।