अपनी राख से पल्लवित होता है अक्षयवट
PRAYAGRAJ: संगम तट पर अकबर के किले में स्थित अक्षयवट अपने नाम की ही तरह अक्षय है. बताते हैं कि अतीत में इसे नष्ट किए जाने के अनेक प्रयास हुए लेकिन यह आज भी हरा-भरा है. इतिहासकार प्रो. योगेश्वर तिवारी ने बताया कि मुगल काल में अकबर के शासनकाल के दौरान मूल अक्षयवट को बंद कर दिया गया था. प्रो. तिवारी ने बताया कि प्रयाग महात्म्य व स्कंद पुराण में अक्षयवट के दर्शन को मोक्ष का माध्यम बताया गया है. यह भगवान विष्णु का साक्षात विग्रह माना जाता है. इसलिए सनातन धर्म में इसे सबसे पवित्र व पूज्यनीय वृक्ष माना गया है. जानकारों के मुताबिक जहांगीर के शासनकाल में कई अक्षयवट को जलाकर पूरी तरह से नष्ट करने का प्रयास किया गया था. लेकिन हर बार राख से अक्षयवट की शाखाएं फूट पड़ती थी, जिसने वृक्ष का रूप धारण कर लिया था.
मोक्ष की कामना को लगाते थे छलांगअकबर के किले में कैद अक्षयवट कभी यमुना नदी के किनारे हुआ करता था. कहा जाता है कि इस पर चढ़कर लोग मोक्ष की कामना से नदी में छलांग लगा देते थे. इस अंधविश्वास ने अनगिनत लोगों की जान ले ली थी. मान्यता है कि जिस समय अकबर यहां पर किला बनवा रहा था तब उसकी परिधि में कई मंदिर आ गए थे. अकबर ने उन मंदिरों की मूर्तियों को एक जगह एकत्र करवा दिया था. बाद में जब इस स्थान को लोगों के लिए खोला गया तो उसे पातालपुरी नाम दिया गया. जिस जगह पर अक्षयवट था वहां पर रानीमहल बन गया था.
पीएम के प्रयास से खुला द्वार यह ऐतिहासिक वृक्ष किले के जिस हिस्से में आज भी स्थित है वहां आमजन कुंभ मेला के आयोजन के पहले तक नहीं जा सकते थे. जहां अकबर के शासनकाल में अक्षयवट को बंद कर दिया गया था. वहीं आजादी के बाद इसे सेना ने अपने कब्जे में ले लिया था. प्रयागराज में इस वर्ष त्रिवेणी तट पर आयोजित कुंभ मेला के दौरान मूल अक्षयवट का जनमानस द्वारा पूजन-अर्चन करने के लिए उसे खोला गया. इसकी रूपरेखा पिछले साल दिसम्बर महीने में प्रयागराज में पीएम की मौजूदगी में तय की गई थी. उस समय कई परियोजनाओं का शिलान्यास करने पहुंचे पीएम श्री मोदी ने सभा में स्पष्ट कहा था कि कुंभ मेला की अवधि में किले में स्थित मूल अक्षयवट का द्वार खोला जाएगा. वर्जनअनादि काल से अक्षयवट तीर्थराज प्रयाग का सबसे महत्वपूर्ण धार्मिक स्थल है. पुराण कथाओं के अनुसार यह सृष्टि और प्रलय का साक्ष्य है. प्रयाग महात्म्य व स्कंद पुराण में अक्षयवट के दर्शन को मोक्ष का माध्यम बताया गया है. यह भगवान विष्णु का साक्षात विग्रह माना जाता है. इसलिए सनातन धर्म में इसे सबसे पवित्र व पूज्यनीय वृक्ष माना गया है.
-प्रो. योगेश्वर तिवारी इतिहासकार