PATNA: अगर आप मछलियां खाने के शौकीन हैं तो जरा संभल कर खाएं। क्योंकि बाहर से आने वाले मछलियों को सुरक्षित रखने के लिए बड़े पैमाने पर फर्मलीन का उपयोग हो रहा है। जो न सिर्फ कैंसर को बढ़ावा दे रहा है बल्कि लीवर और किडनी को भी डैमेज कर रहा है। पटना में 70 से 80 क्विंटल मछली का कारोबार प्रतिदिन होता है। जिसमें से 10 से 15 क्विंटल मछली लोकल रहती है जो फर्मलीन से मुक्त है। फर्मलीन की शिकायत के बाद स्वास्थ्य विभाग ने मछली मंडियों से 10 सैंपल लेकर जांच के लिए कोलकाता भेजा था। रिर्पोट में 10 में से 7 सैंपल में फर्मलीन की पुष्टि हुई है। इसके बावजूद राजधानी में खुलेआम बाहरी मछली बेची जा रही है।

आंध्र से आती हैं ज्यादा मछली

राजधानी के मछली करोबारियों की मानें तो लोकल व थोक बाजार में 70 से 80 क्विंटल रोज कारोबार होता है। लोकल मछलियां मनेर, हाजीपुर, वैशाली व मुजफ्फरपुर से मंगाई जाती है। फर्मलीन वाली मछलियां आंध्र प्रदेश, नेपाल, पश्चिम बंगाल और उत्तर प्रदेश से मंगाई जाती है। एक्सपर्ट की मानें तो फर्मलीन लगाने के बाद 5 से 6 महीने तक मछलियों को सुरक्षित रखा जा सकता है। मगर इन मछलियों को खाने से कैंसर की संभावना होती है। फर्मलीन वाली मछलियों की पहचान करने के लिए मेडिसिन की दुकान से मिलने वाले लिक्विड फर्मलीन व पाउडर मिलाकर पेपर की सहायता से बर्फ वाली मछलियों पर लगाने से मछलियों का कलर बदल जाता है।

क्या है फर्मलीन

एक्सपर्ट की मानें तो फर्मलीन फर्मलीडाइड का 40 प्रतिशत जलीय घोल है। जिसका प्रयोग विभिन्न प्रकार के मृत पशु, मानव शरीर और मछली के सुरक्षित रखने के लिए प्रयोगशाला में किया जाता है। खाद्य पदार्थ पर इस्तेमाल करने और उस पदार्थ को खाने से कैंसर और किडनी खराब होने का खतरा बढ़ जाता है। कई देशों में फर्मलीन का प्रयोग दूध को फटने से बचाने के लिए किया जाता है। अपने देश में इसे बर्फ डालकर रखी जोने वाली मछलियों को अधिक समय तक यूज में लाए जाने के लिए डाला जाता है।

आंध प्रदेश और दूसरे प्रदेश से आने वाली मछलियां फर्मलीन युक्त होती है। इसके लिए विभाग कार्रवाई कर रही है। इस तरह के मछलियों को खाने से बचना चाहिए।

-विपिन, जिला मत्सय पदाधिकारी पटना

Posted By: Inextlive