कोर्ट ने सरकार से पूछा, 2012 की स्कीम को प्रदेश में क्यों नहीं किया गया लागू

देवरिया सेल्टरहोम मामले की सुनवाई 28 नवम्बर को

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जो एनजीओ सुधार गृह आदि चला रहे हैं, क्या वे कर्तव्यों का निर्वाह कर रहे हैं? सरकार बताये कि वह एनजीओ को क्यों प्रमोट कर रही है। ऐसी संस्थाओं को सरकारी अनुदान क्यों दिया जा रहा है? एनजीओ यदि समाज सेवा व बाल कल्याण करना चाहते हैं तो वे स्वयं का पैसा न लगाकर सरकारी अनुदान के भरोसे क्यों रहते है? क्या सरकार देखती है कि सेल्टर होम चला रहे एनजीओ दायित्व निर्वाह करने योग्य हैं भी या नहीं? सचल पालना योजना, वृद्धाश्रम योजना के कार्य कर रहे एनजीओ को सरकार क्यों पैसा दे रहे हैं। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने ये सवाल देवरिया सेल्टर होम मामले की सुनवाई के दौरान उठाये और राज्य सरकार से हलफनामा मांगा। पूछा है कि 2012 की स्कीम को प्रदेश में क्यों लागू नहीं किया जा रहा है। कोर्ट ने याचिका को सुनवाई हेतु 28 नवम्बर को पेश करने का आदेश दिया है।

अनुदान रोकने की वैधता को चुनौती खारिज

यह आदेश एक्टिंग चीफ जस्टिस गोविन्द माथुर और जस्टिस सीटी सिंह की खण्डपीठ ने स्त्री अधिकार संगठन सहित कई जनहित याचिकाओं की सुनवाई करते हुए दिया है। ऐसी ही एक संस्था के खिलाफ श्किायत की जांच के चलते दो साल से प्रमुख सचिव द्वारा सरकारी अनुदान रोकने की वैधता के खिलाफ याचिका खारिज कर दी है। प्रमुख सचिव ने गबन के आरोप में कई संस्थाओं की ग्रान्ट रोक दी है। कोर्ट ने पूछा कि सरकारी ग्रान्ट लेने का वैधानिक अधिकार क्या है। कोर्ट ने कहा कि ग्रान्ट रोकने से याची संस्था को कोई क्षति नहीं हुई है। मां विन्ध्यवासिनी महिला प्रशिक्षण एवं समाज सेवा संस्थान देवरिया द्वारा संचालित सेल्टर होम में लड़कियों के यौन शोषण के मामले की जांच एसआईटी कर रही है। कई थानों के पुलिस अधिकारियों को निलंबित भी किया गया है। पुलिस पर घोर लापरवाही बरतने का आरोप है।

आईजी गोरखपुर को प्रत्यावेदन दें

कोर्ट ने ऐसे ही मामले में निलंबित देवरिया कोतवाली इंचार्ज की याचिका पर हस्तक्षेप से इंकार कर दिया और याचिका खारिज कर दी। याची का कहना था कि उसकी तैनाती घटना के बाद हुई है। इसलिए उसे दोषी नहीं माना जा सकता। इस पर कोर्ट ने याची को 15 दिन में आईजी गोरखपुर को प्रत्यावेदन देने की छूट दी है और कहा है कि आईजी प्रत्यावेदन पर आदेश पारित करे।

Posted By: Inextlive