पांच अस्पतालों में लगी हैं अल्ट्रासाउंड मशीनें पर कहीं नहीं हो रही जांच

कई साल से नहीं हैं रेडियोलाजिस्ट, प्राइवेट केंद्रों पर हो रही मनमाना वसूली

अधिकांश निजी केंद्रों पर फार्म 'एफ' के मानक की उड़ाई जा रही हैं धज्जियां

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PRATAPGARH: जिले के सरकारी अस्पतालों में अल्ट्रासाउंड की व्यवस्था दम तोड़ चुकी है। गर्भवती महिलाओं को अल्ट्रासाउंड के लिए प्राइवेट केंद्रों पर जाना पड़ रहा है। प्राइवेट अल्ट्रासाउंड केंद्र शासन के नियमों की धज्जियां उड़ा रहे हैं। केंद्र संचालकों के जरिए फार्म 'एफ' का मानक नहीं पूजा किया जा रहा है। इससे जिले में लिंग परीक्षण की संभावनाएं बढ़ गई हैं। विभागीय अधिकारियों के द्वारा केन्द्रों का जांच न किए जाने से संचालकों के हौसले और भी बुलंद हैं।

चल रहें 50 अल्ट्रा साउंड केंद्र

बेल्हा में करीब 50 प्राइवेट अल्ट्रासाउंड केंद्र मौजूदा समय में संचालित हैं। सूत्र बताते हैं कि इनमें आइ नियम यह है कि इन केन्द्रों गर्भवती महिलाओं की होने वाली जांच का व्योरा फार्म 'एफ' पर दर्ज किया जाय। मगर जिले में ऐसा नहीं हो रहा है। अधिकांश अल्ट्रासाउंड केन्द्रों पर फार्म 'एफ' नहीं भरा जा रहा है। जिससे सरकार को यह पता नहीं चल पा रहा है कि कितनी गर्भवती महिलाओं का उन केंद्रों पर जांच हुई और क्या स्थिति है। फार्म एफ न भरने वालों के खिलाफ सरकारी कोरम में कार्रवाई का प्राविधान है। मगर अधिकारी उन केन्द्रों की जांच न कर मनमानी करने की खुली छूट दे रखे हैं। इन केन्द्रों पर जांच के लिए पहुंची महिलाओं व उनके तीमारदारों से मनमाना पैसा वसूला जा रहा है। स्वास्थ्य विभाग की अनदेखी के कारण केन्द्र संचालक जांच कराने वालों की जेब खुलेआम काट रहे हैं।

पांच अस्पतालों में लगी है मशीन

सपा सरकार ने सरकारी अस्पतालों में सारी जांच मुफ्त कर दिया है। मगर विकलांग हो चुकी व्यवस्था पर जिम्मेदार तनिक भी नजर नहीं डाल रहे। हालात यह हैं कि जिले की जिन अस्पतालों में अल्ट्रासाउंड की व्यवस्था है वहां पर जांच नहीं हो पा रही। मजबूरन मरीजों को प्राइवेट अल्ट्रासाउंड कराना पड़ रहा है। जिले की पांच अस्पतालों जिला महिला अस्पताल, जिला अस्पताल, पट्टी, कुंडा और लालगंज में अल्ट्रासाउंड मशीनें लगाई गई हैं। मगर रेडियोलाजिस्ट की तैनाती न होने के कारण इन अस्पतालों की मशीनें कई साल से ठप हैं। यहां अल्ट्रासाउंड मशीन होने के बाद भी मनीजों को लाभ नहीं मिल पा रहा। हालात को जानते हुए भी स्वास्थ्य विभाग के जिम्मेदार इस ओर ध्यान नहीं दे रहे हैं। जिससे सरकारी अस्पतालों में अल्ट्रासाउंड जांच की व्यवस्था दम तोड़ चुकी है। इस बाबत जानकारी के लिए सीएमओ डॉ। वीके पांडेय को फोन लगाया गया तो कोई दूसरा व्यक्ति उठाया। उसने बताया कि वह मीटिंग में हैं।

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क्या है फार्म 'एफ'

प्राइवेट अल्ट्रासाउंड केन्द्रों पर गर्भवती महिलाओं की जांच का डिटेल रखने के लिए सरकार ने फार्म 'एफ' की व्यवस्था दी है। नियम यह है कि उन केंद्रों पर जिस भी महिला की जांच हो उसका पूरा डिटेल कालमवार दर्ज किया है। गर्भवती महिला की जांच पहली, दूसरी व तीसरी बार में, उस महिला का पूरा पता, जांच का कारण, रिकमेंड करने वाले डॉक्टर का नाम भी उस फार्म पर लिखने का प्राविधान है। इतना ही नहीं उस फार्म पर कितने माह का गर्भ है और परीक्षण की तारीख भी भी लिखा जाता है। मगर अधिकांश अल्ट्रासाउंड केंद्र पर फार्म 'एफ' की प्रक्रिया पूर्ण नहीं की जा रही है। जिससे जिले में प्राइवेट अस्पतालों पर लिंग परीक्षण की संभावनाएं बढ़ गई हैं।

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कार्रवाई के नाम पर विभाग खामोश

जानकार बताते हैं कि प्राइवेट अल्ट्रासाउंड केंद्रों के संचालकों के जरिए प्रति माह किए गए जांच को फार्म 'एफ' पर दर्ज कर पूरा डिटेल स्वास्थ्य विभाग में जमा करने का प्राविधान है। मगर जिले में संचालित केन्द्रों के जरिए ऐसा नहीं किया जा रहा है। फार्म एफ न जमा करने के बावजूद स्वास्थ्य विभाग उन केंद्रों के संचालकों पर कोई कार्रवाई नहीं कर रहा। कार्रवाई न होने के पीछे क्या वजह है यह बात खुल कर कोई कुछ नहीं बता रहा। सवाल यह उठता है कि आखिर स्वास्थ्य विभाग केंद्रों पर शिकंजा क्यों नहीं कस रहा।

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पीएनडीटी के तहत कार्रवाई

पीएनडी यानी प्रशव निदान तकनीक अधिनियम के तहत केंद्रों पर कार्रवाई का नियम है। कार्रवाई के लिए पीएनडीटी के तहत जिला स्तर पर जिला सलाहकार समिति का गठन होता है, जिसके अध्यक्ष डीएम खुद होते हैं, तहसील स्तर पर तहसील सलाहकार समिति के गठन का प्रॉविजन है। इस समिति के नोडल अधिकारी क्षेत्र के एसडीएम को बनाए जाने का विधान है। विभागीय सूत्र यह भी बताते हैं कि जिले में तहसील स्तर पर पीएनडीटी सलाहकार समिति का गठन नहीं है।

Posted By: Inextlive