Kanpur: पंडित दीन दयाल उपाध्याय विद्यालय में हुआ स्कूल के पूर्व छात्रों की संस्था ‘युग भारती’ का वार्षिक अधिवेशन. विद्यालय के वर्ष 1988 बैच की समिति की तरफ से रिटायर्ड टीचर्स के कल्याण के लिए 5 लाख रुपये का चेक दिया गया


पंडित दीन दयाल उपाध्याय सनातन धर्म विद्यालय के सभागार में ‘युग भारती’ के वार्षिक अधिवेशन के अवसर पर इस संस्था के संरक्षक ओमशंकर त्रिपाठी, रजत जयंती बैच 1988 के सदस्यों और संस्था के अध्यक्ष नवीन भार्गव ने कार्यक्रम के प्रथम सत्र में विद्यालय प्रांगण में वृक्षारोपण किया। इसके बाद संरक्षक ओमशंकर त्रिपाठी, विद्यालय प्रबंध समिति के सचिव वीरेंद्र जीत सिंह, प्रधानाचार्य महेश जी, संस्था के अध्यक्ष नवीन भार्गव ने भगवान श्री हनुमान जी की मूर्ति पर पुष्प अर्पित किए। इस मौके पर वर्ष 1988 बैच के स्टूडेंट्स को सम्मानित किया गया। इस अवसर पर विद्यालय के पूर्व प्राचार्य शांतनु रघुनाथ शेंडे और प्रकाश बाजपेयी भी मौजूद रहे।रिटायर्ड टीचर्स के वेलफेयर के लिए


विद्यालय के ईयर 1988 बैच के स्टूडेंट्स की रजत जयंती के अवसर पर देश-विदेश में रह रहे लगभग 70 स्टूडेंट्स ने ‘युग भारती’ के वार्षिक अधिवेशन में शिरकत की। इस मौके पर वर्ष 1988 बैच की समिति ने संस्था को पांच लाख रुपये की चेक प्रदान की। समिति के प्रतिनिधि जयंत सोमानी ने बताया कि विद्यालय से रिटायर होने वाले अध्यापकों के कल्याण और उनके बेहतर भविष्य के लिए ये एक प्रयास है। इसी क्रम में विद्यालय प्रबंध समिति के सचिव वीरेंद्र जीत सिंह ने समिति की तरफ से पांच लाख रुपये देने की घोषणा की।


ऐसे हुआ ‘तरूण भारती’ से ‘युग भारती’ का जन्म
पंडित दीन दयाल उपाध्याय विद्यालय से वर्ष 1975 में पहला बैच पासआउट हुआ था। यहां से पासआउट होने वाले स्टूडेंट्स ने विचार किया कि किस तरह से विद्यालय के सभी स्टूडेंट्स को एक साथ जोडक़र रखा जा सकता है। इसी सोच के साथ वर्ष 1977 में स्टूडेंट्स ने ‘तरुण भारती’ नाम की संस्था की स्थापना की। वर्ष 1992-93 में विवेकानंद जी के द्वारा शिकागो में दिए गए भाषण के सौ वर्ष पूरे होने के अवसर पर तरुण भारती के ‘तरुणों’ ने देश भर में घूम-घूमकर राष्ट्र सेवा की अलख जगाई थी। उनके इस सराहनीय कार्य से समिति को राष्ट्र स्तर पर प्रसिद्धि मिली। इसी दौरान नाना जी देशमुख ने समिति के अधिकारियों को सुझाव दिया कि तरुण का अर्थ नौजवान होता है। समिति के सदस्य हमेशा नौजवान नहीं रहेंगे। इसलिए समिति का नाम ‘तरुण भारती’ से बदलकर ‘युग भारती’ रख दिया गया।क्या आपने मुझे पहचाना?

वार्षिक अधिवेशन के मौके पर विद्यालय परिसर में बैच 1988 के अलावा फस्र्ट बैच से लेकर आखिरी बैच तक के स्टूडेंट्स पहुंचे थे। कई सालों बाद सामने आए बैचमेट्स एक-दूसरे का चेहरा पहचानने की कोशिश करते दिखाई दिए। आखिर में एक फ्रेंड ने पूछ ही लिया कि क्या आपने मुझे पहचाना? बस इतना कहने के बाद दोनों गले मिल गए। तब पता चला कि पढ़ाई के दौरान भी दोनों इसी तरह से मिला करते थे।----फोन नंबर्स ढूंढते रहेवार्षिक अधिवेशन के एक दिन पहले से ही बैच 88 के स्टूडेंट्स ने एक-दूसरे के फोन नंबर्स ढूंढने शुरू कर दिया था। संयुक्त मंत्री वीरेंद्र त्रिपाठी ने बताया कि बैच के स्टूडेंट्स देश के अलग-अलग शहरों में बसे हुए हैं। इसके अलावा कुछ स्टूडेंट्स विदेश में भी हैं। सभी स्टूडेंट्स इस कार्यक्रम में शामिल होने के लिए वक्त निकाल कर आए हैं। ऐसे में सभी को एक-दूसरे से कांटेक्ट करने के लिए फोन नंबर्स की जरूरत होती है।

Posted By: Inextlive