जो मनुष्य आमलकी एकादशी का व्रत करते हैं वे प्रत्येक कार्य में सफल होते हैं और अंत में विष्णुलोक को प्राप्त होते हैं।

आमलकी एकादशी इस वर्ष 17 मार्च दिन रविवार को है। यह व्रत फाल्गुन मास में शुक्ल पक्ष के एकादशी को पड़ता है। इस दिन आंवले के पेड़ और भगवान विष्णु की पूजा की जाती है। इस व्रत की अत्यधिक महिमा है, विधि—विधान से व्रत करने वाले लोगों की मनोकामनाएं पूरी होती हैं, सभी पाप नष्ट हो जाते हैं।

आइए जानते हैं कि आमलकी एकादशी की कथा क्या है?

ब्रह्माण्ड पुराण में कथा है— वैदेशिक नगर में चैत्ररथ नाम का चंद्रवंशी राजा रहता था, वह धर्म—कर्म में विश्वास रखने वाला और प्रजा की सेवा करने वाला था। उसके राज्य में ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र आनंद सहित रहते थे। सभी भगवान विष्णु की भक्ति करते थे और एकादशी का व्रत भी रखते थे। जब फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की आमलकी एकादशी आई, तो राजा और उनकी प्रजा ने व्रत रखा।

राजा चैत्ररथ ने मंदिर में पूर्ण कुंभ स्थापित करके अपनी प्रजा के साथ आंवले के पेड़ का विधिवत पूजन किया। राजा ने प्रार्थना में कहा— हे धात्री! तुम ब्रह्मस्वरूप हो, समस्त पापों का नाश करने वाले हो, तुमको नमस्कार है। हमारा अर्घ्य स्वीकार करो। तुम श्रीराम चन्द्रजी द्वारा सम्मानित हो, मैं आपकी प्रार्थना करता हूं, अत: हमारे सभी पापों का नाश करें। पूजा के बाद रात्रि में राजा और उनकी प्रजा ने जागरण किया।

इस दौरान वहां एक बहेलिया आया, जो अत्यंत पापी और दुराचारी था। परिवार के भरण—पोषण के लिए वह जीवों की हत्या करता था। भूख और प्यास से व्याकुल बहेलिया मंदिर एक कोने में बैठ गया और श्री हरि विष्णु तथा आमलकी एकादशी की महत्ता को सुनने लगा। प्रात:काल सभी लोग अपने अपने घर चले गए ऐसे में बहेलिया भी अपने घर चला गया। कुछ समय बीतने के बाद ब​हेलिया की मृत्यु हो गई।

आमलकी एकादशी के व्रत तथा जागरण से उसका जन्म राजा विदूरथ के घर हुआ, उसका नाम वसुरथ रखा गया। उस में सूर्य के समान तेज, चंद्रमा के समान कांति, पृथ्वी जैसी क्षमाशीलता और भगवान विष्णु जैसी वीरता थी। उसके पास चतुरंगिनी सेना थी और वह 10 हजार गांवों का पालन करता था। उसके दरवाजे से कोई खाली हाथ नहीं लौटता था।   

एक दिन राजा शिकार खेलने गया, लेकिन बीच रास्ते में मार्ग भूल गया। थकान के कारण वह उसी जंगल में एक वृक्ष के नीचे सो गया। कुछ देर बाद वहां कुछ लोग आ गए और उसे मारने की बातें करने लगे। उनका कहना था कि इस दुष्ट राजा ने उनके परिजनों को मारा है और देश से निकाला है, इसलिए इसे मार देना चाहिए। उन लोगों ने राजा पर अस्त्र—शस्त्र से हमला कर दिया लेकिन भगवान विष्णु की कृपा से उसका बाल भी बांका नहीं हुआ। उसी समय राजा के शरीर से एक दिव्य स्त्री उत्पन्न हुई। वह उन हमलावरों के लिए साक्षात् काल थी, उसने उन सब को मार डाला।

जब राजा सोकर उठा तो उसने कई लोगों को मरा हुआ देखकर कहा कि इन शत्रुओं को किसने मारा है? इस वन में मेरा कौन हितैषी है? वह ऐसा विचार कर ही रहा था कि एक आकाशवाणी हुई- 'हे राजा! इस संसार में भगवान श्रीहरि के अलावा कौन तेरी सहायता कर सकता है।' इस आकाशवाणी को सुनकर राजा अपने राज्य में आ गया और सुखपूर्वक राज्य करने लगा।

यह आमलकी एकादशी के व्रत का प्रभाव था। जो मनुष्य आमलकी एकादशी का व्रत करते हैं, वे प्रत्येक कार्य में सफल होते हैं और अंत में विष्णुलोक को प्राप्त होते हैं।

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Posted By: Kartikeya Tiwari