हाल ही में जोधपुर सेंट्रल जेल की कोर्ट में दुष्कर्म मामले में आसाराम को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई है। आसाराम के नाम को लेकर कहा जाता है क‍ि यह नाम उनके गुरु लीलाशाह ने द‍िया था। ऐसे में कल जब आसाराम दोषी करार हुए तो गुजरात के कच्छ निवासी सुबोध मुनि ने एक बड़ा खुलासा क‍िया है। उनका कहना है क‍ि लीलाशाह ने आसाराम का रसिक मिजाज पहले ही भांप ल‍िया था तभी उन्‍होंने आसाराम को दीक्षा देने से इंकार भी क‍िया था। यहां पढ़ें पूरी खबर

स्वामी ने उन्हें आश्रम से बाहर निकलवा दिया था
नैनीताल (जेएनएन)।  जोधपुर कोर्ट से दुष्कर्म मामले में आजीवन कारावास की सजा पा चुके आसाराम को स्वामी लीला शाह ने दीक्षा देने से इन्कार कर दिया था। स्वामी ने आसाराम को नैनीताल के हनुमानगढ़ी के पास स्थित आश्रम से निकाल दिया था। नैनीताल से तीन किमी दूर स्थित हनुमानगढ़ी के पास ही लीला शाह आश्रम है। 1992 से लीला शाह आश्रम में रह रहे गुजरात के कच्छ निवासी सुबोध मुनि बताते हैं कि 1964 में आसाराम पत्नी के साथ आश्रम आए थे। आश्रम के बाहर पत्नी को बैठाकर वह गुरुजी (लीला शाह) के पास आए और शिष्य बनाने की फरियाद की। मगर स्वामी ने उन्हें आश्रम से बाहर निकलवा दिया।

स्वामी जी आसाराम की रसिक मिजाजी भांप गए थे

सुबोध बताते हैं कि इसके बाद आसाराम हरिद्वार, मुंबई, गुजरात के सीतपुर, दीशा व माउंट आबू में स्वामी जी से मिलने के लिए गए मगर स्वामी जी ने उसकी हरकतों को देखते हुए शिष्य बनाने और दीक्षा देने से इन्कार कर दिया। सुबोध बताते हैं कि स्वामी जी आसाराम की रसिक मिजाजी भांप गए थे। जूनागढ़ गुजरात से आश्रम पहुंचे स्वामी लीला शाह के भक्त दुंदराज आत्माराम आडवाणी बताते हैं कि वह भी 60 के दशक में आश्रम आए थे। बताया कि स्वामी जी पर दैवीय कृपा थी, जिससे वह आसाराम के चरित्र को पहचान गए थे। 1973 में लीला शाह का देहांत हो गया था।

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Posted By: Shweta Mishra