-राजकीय आयुर्वेद हॉस्पिटल में 40 साल पुराने एंबुलेंस से पेशेंट को पहुंचाया जाता है दूसरे हॉस्पिटल

-एंबुलेंस में बैठने से डरते हैं मरीज, प्राइवेट एंबुलेंस से चल रहा है काम

बाहर से चकाचक दिखने वाली सफेद एंबुलेंस में बीमार पेशेंट्स को अंदर जाने से भी डर लगता है, अगर बैठ भी गए तो सांस इस बात को लेकर अटकी रहती है कि कहीं अस्पताल पहुंच भी पायेंगे या नहीं। जी हां हम बात कर रहे हैं डिस्ट्रिक्ट आयुर्वेद हॉस्पिटल के एंबुलेंस की। करोड़ों रुपये खर्च कर तैयार यह हॉस्पिटल एक अदद एंबुलेंस को तरस रहा है। यहां आज भी मरीजों को जुगाड़ से दशकों पुराने मेटाडोर एंबुलेंस से हॉस्पिटल पहुंचाया जाता है। बता दें कि तत्कालिन प्रिंसिपल प्रो। एसएन सिंह ने नयी एंबुलेंस के लिए कई बार प्रपोजल भेजा था, लेकिन अब तक कुछ नहीं हो सका है।

मेंटिनेंस में होता है खर्च

इस एंबुलेंस के खटारा होने का अंदाजा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि जितना खर्च नयी एंबुलेंस खरीदने में लगता, उससे कहीं ज्यादा मेंटिनेंस में लग रहा है। सीधे तौर पर यह कहा जाए कि गंभीर पेशेंट्स को इमर्जेसी सर्विस देने वाली एंबुलेंस खुद बीमार है। यहां डेली 500 से ज्यादा लोग ओपीडी में एडवाइस लेने पहुंचते हैं। ठंड के दिनों में 400 से 500 लोगों की संख्या ओपीडी में रहती है। ऐसे में आएदिन किसी न किसी पेशेंट को सिटी के अन्य हॉस्पिटल में शिफ्ट करना पड़ता है। लेकिन प्रॉपर एंबुलेंस का इंतजाम न होने पर अटेंडेंट प्राइवेट एंबुलेंस सर्विस का सहारा लेते हैं। जिसमें उनको अधिक पैसे देने पड़ते हैं।

बिना एंबुलेंस के कैंप

गाइडलाइन के मुताबिक हर महीने में दो से तीन मेडिकल कैंप लगना जरुरी है। जो कि दूर दराज एरिया में लगते हैं। हालांकि डॉक्टर्स व टीम के लोग तो किसी तरह उस स्थान पर पहुंच जाते हैं, लेकिन एंबुलेंस नहीं पहुंच पाती। इसके चलते कई बार कैंप में पेशेंट्स को चेक करने वाले जरूरी इक्वीपमेंट मौके पर ले जाना संभव नहीं होता है। ऐसा इसलिए कि एंबुलेंस दूर दराज एरिया में ले जाने लायक ही नहीं है। यही हाल साल में दो से तीन बार लगने वाले एनएसएस कैंप का भी है।

तो कैसे मिलता है फिटनेस सर्टिफिकेट

ऊपर से इस एम्बुलेंस को देखकर ऐसा लगता है कि यह फिट है, लेकिन यह अंदर से बेहद कमजोर है। ऐसे में सवाल उठता है कि जब आरटीओ 15 साल पुराने वाहनों को परमिट नहीं देता है तो इस एंबुलेंस को कैसे फिटनेस सर्टिफिकेट मिल रहा है। खास बात यह कि कंपनी जिस मेटाडोर को बंद कर चुकी है उस वाहन में एंबुलेंस है। सोर्सेस की मानें तो हॉस्पिटल का एंबुलेंस सन् 1980 में खरीदा गया था।

एक नजर

-02 से 03 एनएसएस कैंप प्रत्येक साल में

-02 से 03 मेडिकल कैंप प्रत्येक महीने में

-14 डिपार्टमेंट हॉस्पिटल में

-08 क्लीनिकल डिपार्टमेंट

-110 बेड

एम्बुलेंस चालक कहता है एम्बुलेंस रनिंग कंडीशन में है। अब आरटीओ इसे कंडम घोषित करे तो अगला प्रपोजल भेजा जाए।

डॉ। पीसी सक्सेना, प्राचार्य, राजकीय स्नाकोत्तर महाविद्यालय

Posted By: Inextlive