जब किसी व्यक्ति का जन्म होता है तो साथ ही उसके योग और दोष भी पैदा हो जाते हैं। इसलिए जन्म समय के आधार पर कुंडली बनवाई जाती है।

जब किसी व्यक्ति का जन्म होता है तो साथ ही उसके योग और दोष भी पैदा हो जाते हैं। इसलिए जन्म समय के आधार पर कुंडली बनवाई जाती है। जिसे देखकर व्यक्ति के भविष्य के बारे में बताया जा सकता है। कई बार जन्म पत्री में कुछ दोष पाए जाते हैं, इन्हीं दोषों में से एक होता है 'कालसर्प दोष'। यह दोष कुछ विशेष जातकों की कुंडली में होता है। कई बार लोग इसका नाम सुनते ही घबरा जाते हैं। लेकिन घबराना नहीं चाहिए। आज आपको बताएंगे कि कालसर्प दोष क्यों होता है।

कालसर्प दोष


व्यक्ति की कुंडली में राहु और केतु ग्रहों के बीच अन्य सभी ग्रह आ जाते हैं तो कालसर्प दोष का निर्माण होता है और यह जातक के लिए एक समस्या बन जाती है। इस दोष के कारण काम में बाधा, नौकरी में रूकावट, शादी में देरी और धन संबंधित परेशानियां और संतान संबंधी कष्ट उत्पन्न होने लगते हैं।

समुद्र मंथन की घटना से जुड़ी है कालसर्प दोष योग की बात


इस दोष के पीछे का कारण यह माना जाता है कि जब समुद्र मंथन के समय अमृत निकला तो देवताओं को अमृत पिलाने के लिए भगवान विष्णु ने मोहिनी का रूप धारण कर दानवों को जल और देवताओं को अमृत पान कराया था। उसी समय स्वरभानु दैत्य ने मोहिनी को ऐसा करते देख लिया तो वह भी चुपके से देवताओं का रूप बनाकर देवताओं की मंडली में जा बैठा लेकिन सूर्य और चंद्र देव ने दैत्य को पहचान लिया और भगवान को बताया कि यह देवता नहीं दैत्य है। उसी समय भगवान अपने विष्णु रुप में प्रकट हुए और सुदर्शन चक्र से स्वरभानु का गला काट दिया किंतु अमृत पान करने की वजह से उसकी मृत्यु नहीं हुई और उसका शरीर दो भागों में बंट गया। तब श्री हरि ने उसे कहा कि अमृत पान के कारण तुम अमर रहोगे लेकिन तुम्हारा धड़ केतु और सिर राहु के नाम से जाना जाएगा। उस दैत्य की यह स्थिति सूर्य और चन्द्रमा की वजह से हुई थी इसलिए जब भी सूर्य एंव चंद्र साथ आते है तब राहु—केतु इन्हें निगल लेता है, जिससे सूर्य और चन्द्र ग्रहण कहा जाता है।

इस वजह से होता है सूर्य और चंद्र ग्रहण

अमावस्या के दिन सूर्य और चन्द्र दोनों आमने सामने होते हैं उस समय राहु अपना काम करता है, जिस कारण सूर्य ग्रहण होता है। उसी तरह पूर्णिमा को केतु अपना काम करता है और चन्द्रग्रहण लगता है। राहु-केतु दो सम्पात बिन्दु हैं जो इस दीर्घवृत्त को दो भागों में बांटते हैं। इन दो बिन्दुओं के बीच ग्रहों की उपस्थिति होने से ही 'कालसर्प योग बनता है, जो व्यक्ति से संघर्ष कराता है।

-ज्योतिषाचार्य पंडित श्रीपति त्रिपाठी

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Posted By: Kartikeya Tiwari