-इलाहाबाद यूनिवर्सिटी में 1923 में पहली बार हुआ था छात्रसंघ का चुनाव

आजादी से पहले 1942 से 1946 तक रहा लगा रहा छात्रसंघ पर प्रतिबंध

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PRAYAGRAJ: नेक्स्ट सेशन से छात्र परिषद का कांसेप्ट को एडॉप्ट हो जाने जैसा बड़ा बदलाव देखने की दहलीज पर खड़ा इलाहाबाद विश्वविद्यालय का छात्र संघ स्थापना काल से अब तक तमाम उतार-चढ़ाव देख चुका है. पांच-पांच साल के दो दौर ऐसे भी देखे जब छात्र संघ सस्पेंड रहा. एक दौर वह भी रहा जब यहां के पदाधिकारियों की धमक विधायकों जैसी हुआ करती थी. यहां से छात्र राजनीति की शुरुआत करने वाले देश के सर्वोच्च राजनीतिक पदों पर आसीन हुए. इतने गौरवशाली अतीत में होने जा रहे परिवर्तन को वर्तमान समय में छात्र राजनीति में सक्रिय लोग गले के नीचे नहीं उतार पा रहे हैं.

छात्र नेताओं ने पेश की संघर्ष की मिशाल

इलाहाबाद यूनिवर्सिटी में छात्रसंघ की जगह छात्र परिषद का मॉडल लागू करने की योजना बनाई गई है. लेकिन छात्रसंघ के स्वर्णिम अतीत का इतिहास देश की आजादी के पहले से जुड़ा हुआ है. उस दौर में भी एक बार छात्र संघ को भंग किया गया था. वह भी एक या दो नहीं बल्कि चार साल के लिए. 1923 में पहली बार छात्रसंघ का चुनाव कराया गया था. इसके पहले अध्यक्ष एसबी तिवारी हुए थे. ब्रिटिश हुकूमत द्वारा लाल पद्मधर की गोली मारकर हत्या किए जाने के बाद 1942 से लेकर 1946 तक छात्रसंघ पर बैन लगा दिया गया था. इसके बाद यह नौबत 2005 में आयी जब छात्र संघ प्रतिबंधित कर दिया गया.

तब एनडी तिवारी ने कराया था बहाल

उस दौर में तीन-तीन महीने पर चुनाव कराया जाता था. छात्रसंघ के पूर्व अध्यक्ष श्याम कृष्ण पांडेय बताते हैं कि स्वतंत्रता आंदोलन के दौर में 1942 में जब कचहरी में राष्ट्रीय ध्वज फहराने के लिए जुलूस की शक्ल में लाल पद्मधर पहुंचे तो ब्रिटिश सिपाहियों ने उन्हें गोली मार दी थी और वे शहीद हो गए थे. इस वजह से विश्वविद्यालय में छात्रसंघ बैन कर दिया गया था. इसकी बहाली के लिए एनडी तिवारी ने लम्बे समय तक आंदोलन चलाया था. तब चार साल बाद छात्रसंघ को बहाल किया गया था.

तो पहली बार गठित होगा छात्र परिषद

विश्वविद्यालय में छात्र परिषद का मॉडल लागू करने की योजना बनाई गई है. ऐसा ही एक प्रयास पांच दिसम्बर 2011 को किया गया था. जब कुलपति प्रो. एके सिंह ने एकेडमिक काउंसिल की बैठक में छात्र परिषद के गठन का निर्णय लिया था. इसके विरोध में जमकर बवाल हुआ था और मामला दिल्ली दरबार तक पहुंचा. पूर्व अध्यक्ष संजय तिवारी ने बताया कि तब यूपीए सरकार थी. कांग्रेस सांसद राहुल गांधी के हस्तक्षेप किया था. उसके बाद 27 दिसम्बर 2011 को छात्रसंघ बहाली की घोषणा की गई थी.

छात्रसंघ का अतीत बहुत ही गौरवशाली रहा है. इसके स्वरूप को बदलना ठीक नहीं है. इसके लिए विश्वविद्यालय प्रशासन को उचित निर्णय लेना चाहिए.

-श्याम कृष्ण पांडेय,

पूर्व अध्यक्ष इविवि

छात्रों की समस्याओं को सही ढंग से उठाने का सबसे सशक्त माध्यम छात्रसंघ है. केन्द्रीय विवि बनने के बाद संसाधनों का खजाना खोला गया. लेकिन छात्रहितों की सुविधाओं को लेकर समस्याएं अभी तक बनी हुई हैं.

-संजय तिवारी,

पूर्व अध्यक्ष इविवि

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छात्र संघ के स्थान पर छात्र परिषद के गठन से खत्म हो जाएगा इलाहाबाद यूनिवर्सिटी कैंपस में अराजकता का माहौल. आप इससे कितना सहमत.

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Posted By: Vijay Pandey