बर्मा के अधिकारियों ने विपक्षी पार्टी की नेता आंग सान सू ची से कहा है कि वे देश को संबोधित करने के लिए उसके आधिकारिक नाम ‘म्यांमार’ का इस्तेमाल करें.

1989 में सैन्य शासन के दौरान बर्मा का नाम म्यांमार रख दिया गया था, जिसके बाद विश्व भर में इस नए नाम को अपनाया गया। लेकिन विरोधी पार्टियां, कुछ पश्चिमी देश और मीडिया अब भी देश के पुराने नाम ‘बर्मा’ का इस्तेमाल करना पसंद करते हैं। इसे विरोधी पार्टियों द्वारा सैन्य सरकार के विरोध के रूप में देखा जाता है।

लंबे समय तक नज़रबंद रखे जाने के बाद सू ची को 2010 में रिहा किया गया था जिसके बाद 2012 में राजनीतिक बदलाव के बीच वे संसद का हिस्सा बनी। सू ची इस समय यूरोप के दौरे पर हैं और इस दौरे के दौरान उन्होंने म्यांमार को बर्मा कह कर ही बुलाया।

प्रभुत्व

गत एक जून को विश्व आर्थिक मंच की बैठक में भी उन्होंने अपने देश के बारे में बात करते हुए ‘बर्मा’ शब्द का ही इस्तेमाल किया था, जिस पर म्यांमार की सरकार ने कथित तौर पर रोष व्यक्त किया था।

संवाददाताओं का कहना है कि बर्मा के सेना-समर्थित अधिकारी अपने प्रभुत्व को दर्शाने की होड़ में हैं क्योंकि नैश्नल लीग फॉर डेमोक्रेसी की नेता आंग सान सू ची को उनके यूरोपीय दौरे पर काफी सराहा गया है।

‘द न्यू लाइट ऑफ म्यांमार’ अखबार में एक वक्तव्य जारी कर चुनाव आयोग ने कहा, “चूंकि संविधान में लिखा है कि देश को अब रिपब्लिक यूनियन ऑफ म्यांमार के नाम से संबोधित किया जाएगा, तो ऐसे में किसी को ये अधिकार नहीं है कि वो देश को बर्मा के नाम से पुकारे। आयोग ने एनएलडी पार्टी से कहा है कि वे संवैधानिक प्रावधानों का पालन करें.”

एनएलडी पार्टी के प्रवक्त न्यान विन ने इस पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि देश को बर्मा के नाम से पुकारना संविधान का तिरस्कार नहीं है। 1989 में सैन्य शासकों ने देश का नाम ये कह कर बदला था कि बर्मा का नाम उपनिवेशिता की याद दिलाता है और केवल बर्मा के प्रजातीय समुदाय का प्रतीक लगता है। अमरीकी और ब्रितानी सरकारें भी ‘बर्मा’ शब्द का इस्तेमाल करती हैं और साथ ही कुछ मीडिया संस्थान भी, जिनमें बीबीसी भी एक है।

Posted By: Inextlive