भैसों की चोरी आम बात है. पुलिस जानवरों की चोरियों का शायद ही कभी संज्ञान लेती हो. लेकिन रामपुर पुलिस ने उत्तर प्रदेश सरकार के वरिष्ठ मंत्री मोहम्मद आज़म ख़ान की सात भैंसे 24 घंटों के अंदर ढूंढ निकालीं.


आज़म ख़ान रामपुर से हैं और समाजवादी पार्टी के काफ़ी ताक़तवर मंत्री हैं. भैंसें उनके फ़ार्महाउस से एक फ़रवरी को चोरी हो गई थीं. रामपुर की पुलिस अधीक्षक साधना गोस्वामी ने दो थानों के पुलिसकर्मियों की मदद से 24 घंटों के अंदर वो भैंसे ढूंढ निकालीं.लेकिन गाज गिरी तीन पुलिस वालों पर जिन्हें लाइन हाज़िर कर दिया गया. वो भी यह पूछे जाने पर कि क्या पुलिस वालों को कार और दोपहिया वाहनों के साथ मवेशियों की भी चेकिंग करनी चाहिए. लेकिन गोस्वामी ने कहा कि 'नहीं, वे तीन पुलिसकर्मी अपनी गश्ती ड्यूटी पर ग़ैर हाज़िर थे इसलिए उनको यह सज़ा दी गई है.'


यह पूछने पर कि उन भैंसों की शिनाख़्त कैसे हुई, गोस्वामी बोलीं कि जो आदमी उनकी देखभाल करता था, उसने उन्हें पहचाना. गोस्वामी एक  आईपीएस अफ़सर हैं. उनसे जब पूछा गया कि भैंसें ढूंढने का अनुभव उनको कैसा लगा, तो वे बोलीं कि 'यह तो हमारे काम का हिस्सा है.'पहला मौक़ा नहींमंत्रीजी के मीडिया इंचार्ज कहते हैं कि इस पूरे प्रकरण में आज़म साहब ने किसी भी प्रकार से कोई हस्तक्षेप नहीं किया और पुलिस ने वही किया जो उसको काम है.यह पहला मौक़ा नहीं है, जब आज़म ख़ान ने  समाजवादी पार्टी सरकार को हास्यास्पद स्थिति में डाला है.

अगस्त 2013 में जब रामपुर के एक दलित लेखक कँवल भारती ने अपने फ़ेसबुक पेज पर आईएएस अधिकारी दुर्गा शक्ति नागपाल के निलंबन पर अखिलेश यादव, मुलायम सिंह यादव, शिवपाल यादव और आज़म ख़ान की आलोचना की तो उन्हें गिरफ़्तार कर लिया गया.भारती ने आरोप लगाया की उन्हें आज़म के मीडिया इंचार्ज के कहने पर गिरफ़्तार किया गया. बाद में भारती की ज़मानत हो गई लेकिन उससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने लेखक की गिरफ़्तारी पर उत्तर प्रदेश सरकार को नोटिस जारी कर दिया.फिर दिसंबर 2013 में आज़म ने शहरी विकास मंत्री की हैसियत से 1774 में बने रामपुर के क़िले को गिराने का आदेश पारित करवा दिया.आज़म का कहना था की क़िला रामपुर के सौन्दर्यीकरण में बाधक बन रहा है. कांग्रेस के विधायक काज़िम अली के पूर्वजों ने वो क़िला बनवाया था, उन्होंने अदालत की शरण ली और उस आदेश पर रोक लगी.'षडयंत्र'इसके बाद आज़म इस बात पर नाराज़ होकर सितम्बर 2013 में आगरा में हुई पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में नहीं पहुंचे कि प्रदेश सरकार ने मुज़फ़्फ़रनगर के दंगों को ठीक से नहीं संभाला.

आज़म को मुलायम सिंह यादव का अयोध्या में परिक्रमा को लेकर  विश्व हिन्दू परिषद् के नेताओं से बात करना भी नागवार लगा था.यह बात और है कि समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव रामगोपाल यादव ने आज़म की अनुपस्थिति को यह कर नज़रअंदाज़ कर दिया कि मुसलमानों के बीच जो क़द मुलायम सिंह का है वह किसी और नेता का नहीं है.लेकिन इसके बाद आज़म पर आरोप लगा कि वो मुज़फ़्फ़रनगर के दंगों के पीड़ितों को छोड़ विधायकों के एक समूह का नेतृत्व करते हुए विदेश यात्रा पर चले गए. जब इस बात पर उनकी हर तरफ़ बुराई हुई तो उन्होंने कहा कि यह सब इसलिए हो रहा है क्योंकि वे मुसलमान हैं और ग़रीब हैं.आज़म ख़ान के ख़िलाफ़ अक्तूबर 2013 में उनके निजी स्टाफ़ ने बदसलूकी और गंदी भाषा इस्तेमाल किए जाने के विरोध में मुख्य सचिव को पत्र लिखकर अपने तबादले की मांग की. सचिवालय के कर्मचारियों ने उनकी मांग को अपना पूरा समर्थन दिया.वहीं समाजवादी पार्टी के प्रदेश प्रवक्ता राजेंद्र चौधरी भैसों की चोरी से लेकर अन्य सभी घटनाओं को आज़म के ख़िलाफ़ षड्यंत्र बताते हैं. वे कहते हैं कि हो सकता है इसमें मीडिया का भी हाथ हो सकता है.

Posted By: Subhesh Sharma