मकर संक्रांति पर्व पर पुण्य कामना से दान देने की परम्परा सदियों पुरानी है। लेकिन सर्व विद्या की राजधानी कहे जाने वाली अपने बनारस के कई ऐसे दानी भी है जो लगातार दान परम्परा से जुड़े हैं। आइये इस मकर संक्रांति पर्व पर आपको मिलवाते हैं ऐसे कुछ श्रेष्ठ दानियों से

इन्होंने तो दूसरों को बस देना ही जाना है

- शहर में कुछ लोग दान परम्परा की बढ़ा रहे हैं अपने बल पर आगे

- कोई शिक्षा दान कर रहा तो कोई अन्न दान तो कोई रक्त रूप में बचा रहा जिंदगी

VARANASI: खिचड़ी के पर्व पर दान देकर पुण्य कमाने की परंपरा तो अनादि काल से चली जा रही है। लोग अपने साम‌र्थ्य के अनुसार दान देकर पर्व की परंपरा निभाते हैं। पर अपने शहर में ऐसे बहुत से लोग हैं साल के बारहों महीने कुछ न कुछ दान करते हैं। जरूरी नहीं कि उनका ये दान 'दृश्य' हो पर वे जो भी दान देते हैं वह किसी के लिए महादान साबित होता है। सभी तो नहीं पर कुछ आपके सामने हैं

शिक्षादान का उठाया है बीड़ा

शिक्षा का दान करने वाला गुरु कहलाता है और गुरु को तो भगवान से भी बड़ा दर्जा दिया गया है। शिक्षा दान के इसी महान कार्य में लगे हैं अन्नपूर्णा मंदिर के महंत स्वामी रामेश्वरपुरी। अन्नपूर्णा ऋषिकुल ब्रह्माचर्य आश्रम के तहत दो संस्कृत शिक्षण संस्थानों का संचालन कर रहे हैं। खास यह कि यहां रह रहे 500 बच्चों से किसी भी तरह का कोई शुल्क नहीं लिया जाता। इसके अलावा अन्नपूर्णा अन्नक्षेत्र, अन्नपूर्णा निशुल्क हॉस्पिटल व सामूहिक विवाह जैसे सामाजिक कार्य भी कर रहे हैं। उनका कहना है कि देने वाली तो मां अन्नपूर्णा और बाबा भोलेनाथ है। व्यक्ति तो सिर्फ माध्यम बनता है।

खुद को ही कर दिया है दान

औसत कद और दुबले पतले शरीर वाले चंचल मुखर्जी जिन्हें लोग अपनेपन से 'चंचल दा' कहते हैं, के पास अपने लिए कुछ भी नहीं है। उनके पास जो कुछ भी है दूसरों के लिए है। यहां तक की उनका शरीर भी। साल में दो बार रक्तदान करना ये अपनी जिम्मेदारी मानते हैं। महात्मा गांधी के आदर्शो से गंभीरता से प्रेरित 'चंचल दा' किसी जरुरतमंद के लिए कभी श्रमदानी तो कभी अन्नदानी, कभी अर्थदानी तो शिक्षादानी बन जाते हैं। पर अपने द्वारा किये गये किसी भी कार्य को परोपकार या दान की श्रेणी में रखने से इन्हें सख्त परहेज है।

खुद भी और दूसरों से भी कराते हैं

रक्तदान को महादान मानने वाले सौरभ मौर्या को थैलेसीमिया पेशेंट्स की ब्लड की जरूरत ने कुछ ऐसी प्रेरणा दी कि उन्होंने ब्लड डोनेशन को अपने जीवन का एक अंग ही बना लिया है। एक दर्जन से अधिक बार ब्लड डोनेट कर चुके सौरभ शहर में तकरीबन दो दर्जन ब्लड डोनेशन कैंप का आयोजन कर चुके हैं। सौरभ की कोशिश रहती है कि वे अधिक से अधिक लोगों का ब्लड डोनेट करायें। ब्लड डोनेशन के प्रति उनका लगाव अब जुनून का रूप ले चुका है। उनका कहना है कि ब्लड का डोनेशन तमाम तरह के दान से बड़ा है। यह किसी की जिंदगी बचा सकता है।

यहां भी दान से मिलता है पुण्य

नेत्रदान: आईएमए का आई बैंक में सम्पर्क करें

रक्तदान: आईएमए और बीएचयू हॉस्पिटल ब्लड बैंक में सम्पर्क करें

अर्थदान: कौडि़या हॉस्पिटल, माता आनंदमयी हॉस्पिटल सहित अनाथालय में सम्पर्क करें।

अन्नदान: खिचड़ी बाबा अन्न क्षेत्र दशाश्वमेध रोड पर सम्पर्क करें

पौधदान: वन विभाग या नगर निगम में सम्पर्क करें

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यहां हर रोज मनती है खिचड़ी

- खिचड़ी बाबा अन्न क्षेत्र में हर रोज होता है खिचड़ी का वितरण, मनती है खिचड़ी

- दान के अन्न से गरीबों का पेट भरने की यह परंपरा है तकरीबन 150 साल पुरानी

VARANASI: मान्यता है कि काशी में रहने वाले हर व्यक्ति के भोजन का इंतजाम स्वयं मां अन्नपूर्णा करती हैं। मां किस रूप में लोगों के भोजन की व्यवस्था करती हैं यह तो पता नहीं लेकिन इस शहर में कोई भूखे पेट नहीं सोता यह तो तय है। दशाश्वमेध स्थित खिचड़ी बाबा काशी अन्न क्षेत्र मां अन्नपूर्णा की व्यवस्था का ऐसा ही एक दृश्य रूप है। यहां साल के फ्म्भ् दिनों अन्न का वितरण किया जाता है। गरीब, जिसका हर पर्व उसके पेट से ही शुरू होता है और पेट पर ही जाकर खत्म होता है उनके लिए यहां हर रोज खिचड़ी बनती है और ये लोग हर रोज यहां खिचड़ी मनाते भी हैं।

दान में आता है अन्न

आज के युग में जहां किसी के लिए कुछ भी करने के बाद उसके प्रचार की परंपरा शुरू हो गयी है वहीं खिचड़ी बाबा अन्न क्षेत्र की व्यवस्था अपने आप में एक मिसाल है। इस अन्नक्षेत्र की परंपरा पूरी तरह दान पर बेस्ड है। लोग चुपचाप आते हैं और यहां अपने साम‌र्थ्य के अनुसार खिचड़ी की सामग्री का दान करते हैं। चावल, दाल, तेल, मसाला हल्दी नमक, जलावन आदि सारी व्यवस्था लोगों के दान से ही चलती है। दान देने वाले को यह नहीं पता होता कि उनका दिया हुआ अन्न कौन खायेगा और अन्न क्षेत्र की व्यवस्था से जुडे़ लोग यह नहीं पूछते कि दाता कौन है?

कोई नहीं लौटता भूखा

खिचड़ी बाबा अन्न क्षेत्र से हर रोज तकरीबन हजार लोगों को खिचड़ी का वितरण किया जाता है। व्यवस्था का संचालन कर रहे संजय बताते हैं कि सुबह सात बजे से खिचड़ी बनाने के लिए भट्टी सुलगती है तो क्क् बजे तक जलती रहती है। इतने देर में चाहे जितने लोग खिचड़ी बाबा का प्रसाद ग्रहण करने आ जाये उन्हें मिलता है। भट्टी के लिए जलावन से लेकर खिचड़ी बनाने में इस्तेमाल होने वाली तमाम चीजें लोग अपनी स्वेच्छा से दान में देते हैं। लोग अर्थ दान भी करते हैं। उससे जरूरत की दूसरी चीजें एकत्र की जाती हैं।

एक संत की पंरपरा है खिचड़ी वितरण

खिचड़ी वितरण की परंपरा कब शुरू हुई इसके बारे में कुछ सटीक जानकारी नहीं है लेकिन जानकारों का कहना है कि यहां खिचड़ी का वितरण होते क्भ्0 साल से उपर हो गये। श्रीशंकर स्वामी जो अवधूत परंपरा के एक सिद्ध संत थे उन्हीं के द्वारा खिचड़ी वितरण की परंपरा शुरु की गयी। वे खुद को दान स्वरूप मिले अन्न की खिचड़ी बनाते थे और लोगों को खिलाते थे। खिचड़ी खिलाते थे इसलिए वे खिचड़ी बाबा के नाम से फेमस हुए।

Posted By: Inextlive