बांग्‍लादेश की एक विशेष अदालत ने कट्टरपंथी मुस्लिम संगठन जमात-ए-इस्‍लामी के शीर्ष नेता और मीडिया टायकून मीर कासिम अली को युद्ध अपराधों के लिए मौत की सजा सुनाई है. मीर कासिम अली ने वर्ष 1971 में बांग्‍लादेश की पाकिस्‍तान से आजादी की लड़ाई में पाकिस्‍तान का साथ दिया था. इसके साथ ही 62 वर्षीय अली बांग्‍लादेश की आजादी के खिलाफ था.


बांग्लादेशी मीडिया टायकून को फांसीबांग्लादेश की एक विशेष अदालत ने मीडिया टायकून और कट्टरपंथी नेता मीर कासिम अली को वर्ष 1971 में युद्ध अपराधों में संलिप्त रहने के लिए मौत की सजा सुनाई है. कट्टरपंथी नेता की सजा मुकर्रर करते वक्त तीन सदस्यीय बेंच के चीफ जज ने कहा "उसे (अली को) अंतिम सांस तक फांसी पर लटकाया जाएगा." इसके साथ ही कोर्ट ने मीर कासिम अली को कई अन्य आरोपों के तहत 72 वर्ष का कारावास भी सुनाया. गौरतलब है कि जमात-ए-इस्लामी के र्शीष नेता पर 14 आरोपों के तहत सुनवाई चल रही थी. लेकिन कोर्ट ने अली को सिर्फ 10 आरोपों में दोषी पाया गया है. दरअसल मीर कासिम अली को दो किशोरों को यातना देकर मारने एवं उनके शवों को चटगांव में फैंकने को लेकर मौत की सजा सुनाई गई है. आखिर कौन है मीर कासिम अली
कट्टरपंथी मुस्लिम नेता मीर कासिम अली बांग्लादेशी मीडिया से लेकर कई कारोबारों में अच्छा-खासा रसूख रखता है. यह नेता बांग्लादेश के प्रभावशाली मीडिया हाउस दिंगत मीडिया कारपोरेशन का मालिक है जो एक टीवी चैनल के साथ-साथ अखबार भी चलाता है. गौरतलब है कि इस मीडिया हाउस के मुस्लिम कट्टरवादी संगठन जमात-ए-इस्लामी से करीबी संबंध हैं. वर्ष 1971 में मीर कासिम अली बांग्लादेशी स्टूडेंट विंग का सदस्य था. इस दौर में अली पर एक होटल में यातना शिविर चलाने का आरोप है. इस शिविर में सैकड़ो फ्रीडम फाइटर्स और उनके समर्थकों को कथित रूप सक जान से मारने का आरोप है. अली के दोस्तों को भी मिली सजाबांग्लादेशी कोर्ट ने युद्ध अपराधों में शामिल लोगों में अब तक 9 लोंगों को मौत की सजा सुनाई है. इसके साथ ही दो लोगों को आजीवन कैद की सजा मिली है. गौरतलब है कि जमात के सयुंक्त सचिव जनरल अब्दुल कादिर मुल्ला को फांसी मिली है. इसके अलावा युद्ध अपराधों में शामिल दो आरोपी इस समय अमेरिका में रह रहे हैं.

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Posted By: Prabha Punj Mishra