बरगद ने संजो रखी हैं स्वतंत्रा संग्राम की यादें
स्वतंत्रा संग्राम के दौरान पेड़ के नीचे चलता था मीटिंग्स का दौर
एमरजेंसी के वक्त पुलिस से लोगों को छिपाने में मददगार भी था पेड़ यूनिवर्सिटी के लिए एक प्रोफेसर के रूप में जिंदा है पेड़ Meerut. सीसीएसयू में तपोवन के पास स्थित बरगद का पेड़ 100 साल से ज्यादा पुराना है. पेड़ के बारे में क्षेत्रवासियों का ये कहना है कि ये स्वतंत्रा संग्राम से लेकर इमरजेंसी तक की कहानियों को खुद में संजोए हुए है. यूनिवर्सिटी बनते समय पेड़ के बारे में जब ये बातें सामने आईं तो इस पेड़ काटने की बजाए अपनी जगह पर ही रहने दिया गया. ये पेड़ यूनिवर्सिटी के तीन सबसे पुराने पेड़ों में से एक है. बनती थी प्लानिंगआसपास के लोगों का कहना है कि यूनिवर्सिटी में लगा 100 साल पुराना बरगद का पेड़ स्वतंत्रा संग्राम के दौरान लोगों की प्लानिंग का ठिकाना भी था. यहां दिन-रात मीटिंग्स का दौर चलता था. साथ ही 1975 में लगी इमरजेंसी के वक्त भी लोग पुलिस से छिपने के इसी पेड़ की शरण लेते थे.
प्रोफेसर की यादें बसी हैंइसके अलावा यूनिवर्सिटी के एक प्रोफेसर की यादें भी इस बरगद के पेड़ से जुड़ी हुई हैं. जानकारी के मुताबिक यूनिवर्सिटी के हार्टीकल्चर विभाग के प्रो. चेतन जो अब इस दुनिया में नहीं है, उन्होंने मरने से पहले तक हमेशा इस पेड़ की देख-रेख एक बच्चे की तरह की. उनके अन्य प्रोफेसर दोस्तों के मुताबिक वे इस पेड़ के रूप में आज भी उनके लिए जिंदा हैं.
इनका है कहना.. जब भी हम इस पेड़ को देखते हैं तो प्रो. चेतन की यादें ताजा हो जाती है. इस पेड़ से हमारी और उनकी बहुत सी यादें जुड़ी हैं. हमारे लिए ये पेड़ प्रो. साहब की आखिरी निशानी है. डॉ. वीरपाल, चीफ प्रॉक्टर, सीसीएसयू मुझे आज भी याद है कि प्रो. चेतन ने इस पेड़ को अपने परिवार के सदस्य की तरह पाल-पोसकर बड़ा किया. इस पेड़ के रूप में हमारे लिए वो हमेशा जिंदा रहेंगे. डॉ. यशवेंद्र वर्मा, असिस्टेंट प्रोफेसर, टॉक्सिलॉजी विभाग, सीसीएसयू