10वीं और 12 वीं में मनमाफिक सफलता न मिलने पर न हो निराश

सफल होने के लिए कहीं से भी शुरु किया जा सकता है सफर

Meerut . सफल होने के लिए कहीं से भी सफर शुरु किया जा सकता है. जरूरी नहीं, जो आज टॉपर नहीं हैं वह आगे भी टॉपर नहीं होगा. बोर्ड एग्जाम के रिजल्ट्स आने लगे हैं. अच्छे और खराब नंबर्स पर मंथन करते हुए आगे की दौड़ शुरु हो चुकी है. ऐसे में जान लें कि दसवीं, बारहवीं के नंबर्स या प्रोफेशनल कोर्सेज की डिग्री ही सफलता की गारंटी नहीं हैं. हमारे आसपास ऐसे तमाम उदाहरण बिखरे हैं जो बोर्ड एग्जाम में बेहतर मा‌र्क्स हासिल नहीं कर पाए. सिलेसिलेवार आगे नहीं बढ़े, मेडिकल व इंजीनियरिंग जैसे प्रोफेशनल फील्ड में कॅरियर नहीं बनाया, लेकिन ये लोग आज अलग-अलग क्षेत्रों में टॉप पोजिशन पर काबिज हैं.

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इंजिनियरिंग छोड़ा, सिविल सर्विसेज में

कौन- अनुज गोयल

क्या- यूपीपीसीएस

हाईस्कूल- 72 प्रतिशत, 2002

इंटर - 80 प्रतिशत, 2004

स्कूल- बालेराम ब्रजभूषण सरस्वती शिशु मंदिर

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इंफोसिस और टीसीएस जैसी आईटी कंपनियों में सॉफ्टवेयर इंजीनियरिंग छोड़कर मेरठ के अनुज गोयल ने सिविल सर्विसेज की राह पकड़ी. कई साल आईटी सेक्टर में काम करने के बाद भी वह खुद को इस फील्ड के लिए कंविंस नहीं कर पाए और सिविल सर्विसेज की तैयारी शुरु कर दी. अनुज बताते हैं कि जॉब में रहते हुए कहीं न कहीं सोशल सेक्टर में काम करने की इच्छा मिसिंग थी. इंजीनियरिंग जैसा फील्ड भी उन्हें अपना सपना पूरा करने से रोक नहीं पाया. उन्होंने स्टेट सिविल सर्विसेज एग्जाम क्लीयर किया और आज बतौर कमर्शियल टैक्स ऑफिसर काम कर रहे हैं.

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यह दिया मैसेज

सफलता पाने का सफर कभी भी शुरु किया जा सकता है. अपनी खुद की इच्छा शक्ति और आत्मविश्वास का होना ही सफलता को हासिल करने का मूलमंत्र हैं. अगर बच्चे को उसकी प्रतिभा के हिसाब से आगे बढ़ाया जाए तो वह निश्चित मुकाम हासिल करेगा. पेरेंट्स बच्चों का माइक्रो ऑब्जर्वेशन करें ताकि वह समझ सके कि उनका बच्चा किस चीज में बेहतर है.

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जिंदगी थमती नहीं हैं

कौन - निशांत जैन

क्या - आईएएस

हाईस्कूल- 78 प्रतिशत 2002, सरस्वती शिशु मंदिर, यूपी बोर्ड

इंटर - 81.4 प्रतिशत, 2004, कनोहर लाल इंटर कॉलेज, मेरठ.

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एक तय परिपाटी पर चलकर ही कोई मुकाम हासिल हो ये कतई जरूरी नहीं हैं.आईएएस निशांत जैन इसका सटीक उदाहरण हैं. कॉमर्स स्ट्रीम से 12वीं, आ‌र्ट्स स्ट्रीम में बैचलर्स, मास्टर्स, नेटजेआरएफ, एमफिल के बाद सिविल सर्विसेज में सफलता हासिल करके निशांत ने मिसाल कायम कर दी. बकौल निशांत डीयू से एमफिल करने के बाद भी मुझे इस फील्ड में इंटरेस्ट नहीं आ रहा था. रिसोर्सेज का अभाव था. साथ-साथ सिविल सर्विस की तैयारी करता रहा. एग्जाम क्लीयर करने के बाद फ‌र्स्ट पोस्टिंग एसडीएम माउंट आबू मिली. फिलहाल अजमेर विकास प्राधिकरण में आयुक्त के तौर पर तैनात हैं.

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जिसमें बच्चा अच्छा करें वहीं चुने

सफलता का फार्मूला एकदम क्लीयर हैं जिसमें बच्चा अच्छा कर रहा है, उसे वहीं चुनने की आजादी दें . मेडिकल, इंजीनियरिंग करके ही शानदार कॅरियर नहीं बनता हैं. अपनी पसंद थोपने पर बच्चे में साइक्लोजिकल प्रेशर आता है जिसकी वजह से वह अपनी बेहतर परफार्मेस नहीं दे पाता हैं. मनमाफिक फील्ड मिलेगा तो जरूर सफलता मिलेगी.

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कोई भी सफर आखिरी नहीं होता हैं. 10वीं और 12वीं में अगर बेहतर नंबर नहीं आएं हैं तो कतई निराश होने की जरूरत नहीं हैं. अपनी उदासी की चादर उतार फेकें और हार का रिव्यू करें. उसके बाद एक्शन प्लान तैयार करें और उसके हिसाब से काम करें. पेरेंट्स भी ध्यान रखें की कॅरियर के सलेक्शन को लेकर बच्चों में प्रेशर न बनाएं. उनकी मन के कॅरियर को चुनने की पूरी आजादी दें .

डा. पूनम देवदत्त, सीनियर काउंसलर

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अगर नंबर कम आएं हैं तो निराश होने जैसा कुछ नहीं हैं. 10वीं के स्टूडेंट्स आगे की क्लासेज में मेहनत करें. 12वीं के स्टूडेंट्स भी घबराएं नहीं, अपना आंकलन करें . मेडिकल और इंजीनियरिंग स्ट्रीम्स के अलावा तमाम ऐसे क्षेत्र हैं जहां स्टूडेंट्स शानदार सफलता हासिल कर सकते हैं.

गिरजेश कुमार चौधरी, डीआईओएस, मेरठ.

Posted By: Lekhchand Singh