भीख मांगना अब मजबूरी नहीं रहा धंधा बन गया है. पॉश इलाकों मॉल्स और धार्मिक स्थलों के बाहर अपर मिडिल और अपर क्लास इन भिखारियों के निशाने पर हैं. राजधानी से सटे सीतापुर से बच्चों को भीख मांगने के लिए लखनऊ में लाया जाता है. इसके सरगना एक organised gang की तरह में operate कर रहे हैं. छोटे-छोटे लड़के-लड़कियां और दुधमुंहे बच्चों के साथ कटोरा लेकर घूमती महिलाएं लोगों का पीछा तब तक नहीं छोड़ती जब तक लोग परेशान होकर उन्हें पैसे नहीं दे दें. इमोशनल अत्याचार करने वाले ऐसे बेगर्स city में दिनोंदिन बढ़ते जा रहे हैं.


Lucknow: दिन शनिवार, शनिदेव मंदिर के पास लाइन से बैठे भिखारियों के बीच हम भी पहुंचते हैं। पहले उन्हें लगता है कि कोई दान देने वाले आए हैं। फिर हम सवाल करते हैंयहां क्या कोई पैसे जमा करता है? हमें कोई जवाब नहीं मिलता, लेकिन  लाइन से उठ कर एक भिखारी हमसे सवाल करता हैक्या तुम हमारा पहचानपत्र बनवा दोगी? खाते के लिए पहचानपत्र मांगते हैं और हमारा पहचानपत्र कोई बनाता ही नहीं है.
अब तक लाइन के सारे भिखारी अपने साथी के इस सवाल को सुनकर सबकुछ छोड़ कर हमारे सामने खड़े हो गये और हर किसी का यही सवाल था कि हमारे पहचानपत्र कहा बनेंगे? जैसे ही उन्हें यह अंदाजा होता है कि हम मीडिया से हैं वो फौरन अपनी लाइन में वापस बैठ जाते हैं और फिर वही शनिदेव के नाम पर कुछ दे दो.
आज काम नहीं था
यहां बैठे सभी मांगने वाले देखने में हट्टे कट्टे थे। हों भी क्यों ना आइये बताते हैं कैसे? जब तक मंदिर में आने वालों का तातां कम था तभी एक भिखारी का कैसरोल खुलता है, चम्मच निकलता है वो बिना किसी की परवा किये अपनी डिश इंज्वाय करता नजर आता है। साथ में स्वीट डिश भी थी जिसे उसने अलग निकाल कर रख दिया क्योंकि वो तो खाने के बाद ही खाएगा.
पास में बैठा एक बंदा जो दिखने में कहीं से मांगने वाला नहीं लग रहा था। जब हमने पूछा तो उसने अपना नाम राम सिचावन बताया और  वो घरों में पेंटिग का काम करता है। आज उसे काम नहीं मिला तो वह यहां आकर बैठ गया क्योंकि शनिवार को यहां अच्छी कमाई हो जाती है। यहां पर गाडिय़ों की पार्किंग कराने वाले एक ठेकेदार के अनुसार शनिवार को यहां सैकड़ों भिखारी आते हैं और हजारों दर्शन करने वाले ऐसे में इनकी कमाई अच्छी होती है.
यहां सुबह या शाम को एक गाड़ी आती है जिसके बारे में पक्की जानकारी नहीं, लेकिन वो इन भिखारियों से पैसे इक्कट्ठा करके ले जाती है। यह नहीं पता कि वो गाड़ी किसकी है और कहां से आती है?
अपने हुनर में पूरी तरह हैं माहिर
यहां से जब हम शहर के पॉश इलाके हजरतगंज में पहुंचे वहां की तस्वीर पर एक नजर
कुछ विदेशियों के पीछे एक अधेड़ महिला गोद में एक बच्चे को लेकर उनके पीछे, हेलो सर हेलो सर आखिरकार फॉरनर्स ने पर्स से कुछ पैसे निकाल कर दे ही दिए, तब जाकर उसने पीछा छोड़ा। यह नजारा हजरतगंज में आमतौर पर देखा जा सकता है.
भले ही शहर का दिल कहा जाने वाला हजरतगंज न्यू लुक में आ चुका हो, लेकिन पूरी तरह से सड़कों पर बिखरे रहने वाले पुराने भिखारी आज भी लोगों की परेशानी का सबब बने हुए हैं। इन भिखारियों में दुधमुहे बच्चे से लेकर अस्सी साल के भिखारी अपने अपने स्टाइल में भीख मांगते नजर आएंगे। इनसे बचने वाले तमाम कोशिशें कर लें, लेकिन यह पीछा नहीं छोड़ते। अहम बात यह है एंटी बेगिंग एक्ट के बावजूद इनकी मात्रा शहर में दिन ब दिन बढ़ती ही जा रही है.
गंज में नये लैम्प पोस्ट, नई बेंचेज और नये रंगीन फौव्वारों को देखने के लिए लोग यहां पैदल चलना ही पसंद कर रहे हैं और ऐसे में भिखारियों ने लोगों की परेशानी और बढ़ा दी है। यही नहीं फूड या जूस कार्नर पर इनकी डिमांड भी बदल जाती है। कभी यह चाट की फरमाइश कर देते हैं तो कभी जूस की.
इन भिखारियों की खास बात यह है कि बुजुर्ग से लेकर बच्चा-बच्चा भी अपने हुनर में माहिर है। छोटी सी लड़की एक कपल को देखते ही चिल्लाने लगती है कि ऊपर वाला तुम्हारा जोड़ा बनाए रखे, किताब हाथ में लिये हुए जब कोई गुजरा तो फौरन तुम पास हो जाओ तुम्हारी नौकरी लग जाए,
बच्चे भी कम नहीं
चारबाग स्टेशन पर अचानक एक टूरिस्ट बस आकर रुकती है। अचानक कुछ आवाजें कई लोगों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करती हैं। अरे जल्दी चलो अंग्रेज आ गये डालर मिलेगा यह कोई और नहीं थे, बल्कि चारबाग स्टेशन पर गुट में निकलने वाले वह बच्चे थे जो भीख मांगने के लिए रोज सुबह घर से निकल स्टेशन पर मुस्तैद हो जाते हैं। चारबाग स्टोशन पर टहलने वाली नीता पूरे ग्रुप में सबसे ज्यादा उम्र की थी.
उसकी गोद में थी उसकी एक महीने की बहन जिसे देखकर लगता था कि अभी दस दिन पहले इसका जन्म हुआ हो, अविकसित सी यह बच्ची जिसे इलाज की जरूरत थी, इस मौसम में उसके तन पर कपड़े भी नहीं थे। लेकिन सोनिया को पता था कि भीख के लिए उसकी गोद में बहन नहीं बल्कि वह ट्रम्प कार्ड है जिसे दिखाने पर किसी का भी दिल पिघल जाएगा। वह उसी बच्ची को हाथों में ऊंचा कर कर के विदेशी पर्यटकों से पैसे मांग रही थी। उसके चारों तरफ उसके छोटे-छोटे साथी थे, जो आने जाने वाले दूसरे लोगों पर नजर रखे थे। उन्हें पुलिस का डर भी नहीं था क्योंकि उन्हें पता था कि दरोगा के आते ही उन्हें किधर से भागना है।
विरासत में मिली भीख
विरासत में कभी किसी को जायदाद मिलती है तो कभी किसी को व्यापार। पीढिय़ों से मिली हुई इस विरासत को लोग हर कीमत पर जिन्दा रखना चाहते हैं क्योंकि यही उनके पुरखों की निशानी होती है। ऐसे तो आपने कई विरासती कामों के बारे में सुना होगा, लेकिन यह  एक अनोखी विरासत और यह है भीख की विरासत.
शहर में कई ऐसे मांगने वाले मौजूद हैं जो सिर्फ अपनी कमाई के लिए ही नहीं अपने पुरखों के इस पेशे को आगे बढ़ाने के लिए उन्हीं प्लेसेस पर बैठ कर भीख मांगते हैं जहां कभी उनके दादा परदादा मांगा करते थे। 75 साल की बिट्टो अपने पूरे परिवार के साथ शामीना की दरगाह में रहती हैं। उनके बेटे हैं, बहुएं हैं और नाती पोतों के साथ उनका पूरा दिन गुजरता है, लेकिन गुरुवार को जब मजार पर जायरीनों का तांता लगता है वो अपने पुराने ठिकाने पर ही नजर आती हैं.
वो कहती हैं कि मेरे दादा परदादा सभी इस मजार के नौकर थे। यहीं जायरीनों से मांगकर उन्होंने भी अपना पेट पला। 85 साल की सावित्री पिछले 65 साल से हनुमान मंदिर पर बैठ कर, आने वाले श्रद्धालुओं से मांग कर ही अपना पेट भरती हैं। ऐसा क्यों इस बात पर वो हंस कर कहती हैं कि बस यहां पर बैठना ही अब अच्छा लगता है। जब तक जिन्दा हैं अपने काम को ही करना है। चारबाग रेलवे स्टेशन पर खम्मनपीर बाबा की मजार पर फजले आलम। करीब 85 साल की उम्र में रोज सुबह मजार पर आ जाते हैं।
बेगर्स होम या हॉन्टेड हाउस
समाज कल्याण का राजकीय प्रमाणित संस्थान यानी लखनऊ का बेगर्स होम खाली पड़ा है। सूत्रों के अनुसार यह जिम्मेदारी पुलिस डिपार्टमेंट की ही है। जब रेड पड़ती है, जब कोर्ट उन्हें यहां भेजता है। उन्हें सजा के तौर पर रिमांड पर रखा जाता है। सूत्र बताते हैं कि यहां उन्हें पुनर्वासित करने के लिए यहां कई तरह के काम सिखाए जाते हैं, लेकिन यहां न बाबू नजर आए और न कोई काम सिखाने वाला.
जब हम वहां पहुंचे तो खण्डहर में तब्दील हो चुके बेगर होम में एक भिखारी मौजूद था जो खुद कहता है कि वो स्टेशन पर सिर्फ बैठा हुआ था और उसे पकड़ लिया गया। सवाल यह है कि दिनभर हजारों भिखारी शहर में लोगों की परेशानी का सबब बने हुए हैं वो क्यों नहीं नजर आते। यहां के बाबू रिजवाइन मुईन जो यहां मौजूद नहीं थे पूछने पर पता चला कि वो छुट्टी पर हैं.
यहां मौजूद फोर्थक्लास इम्प्लाई ने बताया अगर किसी को यहां रखने के लिए लाया भी जाए तो वो रहेगा कहां हम खुद यहां खतरे में बैठते हैं पूरी बिल्डिंग खण्डहर हो चुकी है। आधे पर मुकदमा चल रहा है और न यहां काम सीखने वाले हैं और न सिखाने वाले। 2006-07 में एक सर्वे के अनुसार शहर में पांच सौ भिखारियों की शिनाख्त की गई थी, लेकिन वह संख्या अब हजारों में हो चुकी है
कैलेंडर सबसे तेज
आने वाले महीने में चार बड़े मंगल पड़ेंगे। कौन से दिन कृष्ण जी के मंदिर पर भक्तों का जमावड़ा होगा, कौन से महीने में किस मजार पर उर्स होना है। साल में आने वाले यह खास दिन भले ही कोई भूल जाए, लेकिन भिखारियों की गणना किसी भी कैलेंडर को मात दे सकती है। यही वजह है कि शनिवार को देवराघाट, मंगलवार को हनुमान सेतु या फिर अलीगंज का मंदिर, गुरुवार को शामीना या खम्मनपीर और सोमवार को मनकामेश्वर मंदिर में कई चेहरे जाने पहचाने नजर आ ही जाते हैं।
छोटे मजदूर
 हजरतगंज, जहां की एक तस्वीर में लोग वीकेंड इंज्वाय करते नजर आ रहे थे। दूसरी तस्वीर में बेंच पर 12 साल का शिवम न जाने किस सोच में बैठा था। उसके हाथ में स्टील की लुटिया थी उसमें शनीचर के नाम पर मांगे हुए सिक्के बस वो उन्हें देख रहा था। जब हमने उससे जाकर बात की तो उसने बताया कि यह तिल और पैसे दोनों सनीचर (शनि देव) के हैं.
इनका क्या करोगे, इस सवाल पर उसने कहा कि तेल को शनि देवता के मंदिर में चढ़ा दूंगा और पैसे निकाल लूंगा। शिवम ने बताया कि उसके चाचा ने उससे कहा है यह काम करने के लिए। दिन भर में जितना भी पैसा मिलता है शिवम उसका आधा पैसा चाचा को दे देता है। भीड़ से खचाखच भरे इलाके में जैसे ही कोई टेम्पो आकर रुकी पांच साल का राकेश उधर ही दौड़ पड़ता है.
शनिदेव के नाम पर दान मांगना वह अपना काम समझता है दान मिल रहा है या नहीं यह उसके लिए कोई खास फिक्र की बात नहीं दिखती। वो टेम्पो के जाने के बाद वापस रेलिंग पर खड़ा हो जाता है। कभी खेलने का मन करता है तो डोलची सिर पर रखकर टहलने लगता है। अंजली, उम्र में 10 साल की ही होगी कहती है कि यह पैसा तो हम महादेव के मंदिर पर चढ़ाएंगे। पण्डित जी ने हमसे मांगने के लिए कहा है। कौन पण्डित? इस सवाल पर सभी ने एक दूसरे को देखा और कहा कि वो तो बहुत दूर रहते हैं.
लेबर डिपार्टमेंट के डिप्टी डायरेक्टर आरबी लाल ने बताया कि भीख मांगने वाले बच्चे चाइल्ड लेबर में नहीं आते इसलिए कभी कोई कार्रवाई नहीं हुई। इनके पेरेंट्स होते हैं और वो उनके साथ ही रहते हैं। वहीं डीपीओ विजय विक्रम सिंह ने भी यही कहा कि ऐसे बच्चों के लिए कोई कानून नहीं है। लेकिन इनकी काउंसिलिंग करके इन्हें भी सही राह पर लाया जा सकता है।
भीख मांगने के फंडे
बच्चे के दूध के लिए
बीमार बच्चे को दिखाकर
विकलांग की मजबूरी दिखाकर
दवा के पर्चे दिखाकर
बॉक्स
जहां फैला है जाल
शहर के मेन चौराहे
रेलवे और बस स्टेशन
शहर के मंदिर
मॉल्स के बाहर
मान्यूमेंट्स के बाहर

Posted By: Inextlive