Allahabad: पुस्कार कभी किसी जख्म को भर नहीं सकते. अलबत्ता ये व्यक्ति को हिम्मत जरूर देते हैं. अफसोस सूबे के हुक्मरान इस बात से इत्तेफाक नहीं रखते. लोगों की रक्षा की खातिर अपनी जान गंवाने वाले शहीद बेनीमाधव सिंह को आज तक गैलेंट्री एवार्ड से सम्मानित नहीं किया जा सका.


मनहूस था वो दिन17 जून 2009. ये दिन शहीद बेनीमाधव की फैमिली के लिए सबसे मनहूस दिन साबित हुआ। आपॅरेशन घनश्याम केवट के साथ हुए इनकाउंटर में पांच अन्य पुलिसकर्मियों के साथ बेनीमाधव को भी अपनी जान गंवानी पड़ी। गोलियां बरसा रहे डकैत घनश्याम से लोहा लेने वे अपनी टीम के साथ चित्रकूट पहुंचे थे। नैनी में रहते थे
बेनीमाधव पीएसी की 42वीं बटालियन में पोस्टेड थे। नैनी में वह अपने तीन बेटों और पत्नी के साथ रहते थे। सबसे बड़ा बेटा ओमनारायण उस समय खुद इलाहाबाद एसओजी की सर्विलांस सेल में तैनात थे। ओम बताते हैं कि उस दिन वे ड्यूटी पर थे। दोपहर में उनके पिता घनश्याम डकैत की गोली का शिकार बन गए थे। हालांकि इसका ओम को पता नहीं चल सका था। शाम को साथियों ने उनसे चित्रकूट चलने के लिए कहा। तब तक उन्हें पिता की मौत के बारे में नहीं बताया गया था। चित्रकूट पहुंचने पर पता चला कि अब उनके सिर से पिता का साया हमेशा के लिए उठ चुका है.  ये उनका सपना था


ओमनारायण बताते हैं कि उनके पिता सच्चे देशभक्त थे। देश की सेवा करने का जज्बा उनमें हमेशा से ही था। ऑपरेशन घनश्याम से पहले भी वह कई डकैतों के साथ हुए इनकाउंटर में शामिल रहे थे। एक बार इसी तरह के एक ऑपरेशन में उनके पैर में गोली भी लगी थी। बकौल ओम, पापा का हमेशा सपना था कि मरते दम तक वो देश की सेवा करते रहें। आखिरकार उन्होंने इसे सच कर दिखाया। देश की रक्षा करते हुए ही उन्होंने अपने प्राण न्यौछावर कर दिए। हिल गया था प्रशासनिक अमलाऑपरेशन डकैत घनश्याम, ने सूबे के प्रशासनिक अमले को हिलाकर रख दिया था। करीब 50 घंटे तक चली कार्रवाई के बाद पुलिसकर्मी दस्यु घनश्याम को मार गिराने में कामयाब हो पाए थे। चित्रकूट ही नहीं बल्कि आसपास के कई जिलों की फोर्स भी मौके पर बुलाई गई थी। हजारों की फोर्स को शातिर घनश्याम घंटों छकाता रहा। खास बात ये है कि अत्याधुनिक हथियारों से लैस जवानों से वह महज एक पुरानी बंदूक से लोहा लेता रहा। 50 हजार के इस इनामी को मार गिराने में पुलिस को अपने छह जवान गंवाने पड़े थे। आज भी भरे नहीं हैं जख्म

इस ऑपरेशन में इलाहाबाद एसटीएफ प्रभारी नवेन्दु सिंह को भी जिंदगी भर का जख्म मिला। मौत उन्हें छूकर निकली थी। इनकाउंट के दौरान डकैत घनश्याम के घर की आड़ से पुलिसफोर्स भी अंधाधुंध गोलियां बरसा रहा था। फोर्स में शामिल नवेंदु आगे बढ़े तो घनश्याम ने उन्हें टारगेट करके भी फायर दाग दिया। ये किस्मत ही थी गोली नवेंदु की गर्दन को छूकर निकल गई। इससे पहले गोली उनकी हथेली को छेद चुकी थी। तब से अब तक नवेंदु की हथेली का 10 से ज्यादा बार ऑपरेशन हो चुका है। करीब आठ महीने तक लगातार उनका ट्रीटमेंट चलता रहा। समय-समय पर आज भी नवेंदु को इलाज के लिए हॉस्पिटल जाना पड़ता है। Report By: Piyush kumar

Posted By: Inextlive