GORAKHPUR : घर के चूल्हे - चौके का बढ़ता खर्च एलपीजी की किचकिच. हर महीने गैस खत्म होने की टेंशन बुकिंग न होने की टेंशन बुकिंग होने के बाद सिलेंडर के घर न पहुंचने की टेंशन यानि कि लजीज व्यंजन का आनंद लेने में टेंशन ही टेंशन. अब इस टेंशन को लेकर परेशान होने की जरूरत नहीं है. क्योंकि अमेरिका में रहने वाले कुसम्ही बाजार के इंजीनियर से ऐसी टेक्नॉलाजी ईजाद की है जिससे मामूली खर्चे में महीने भर भोजन आराम पक जाएगा. इंजीनियर का यह अग्निदूत चूल्हा महज डेढ़ से दो रुपये के खर्च में लगातार 40 मिनट तक जल सकता है.

खत्म हो गया था सिलेंडर, तब आया आइडिया
रसोई गैस के अचानक खत्म होने पर पूरी फैमिली डिस्टर्ब हो जाती है। अमेरिका में रहने वाले कुसम्ही बाजार के इंजीनियर यादवेंद्र सिंह जब कभी- कभार घर आते हैं तो उनको सिलेंडर की प्रॉब्लम झेलनी पड़ती है। एक बार वह अपने कुसम्ही बाजार स्थित मकान पर आए तो गैस खत्म हो गई। फिर उनको यह आइडिया आया। बेस्ट टेक्नॉलाजी से आइडिया निकालकर उन्होंने एक्सपेरिमेंट के लिए डिजाइन तैयार किया। डिजाइन बनाकर वह अमेरिका चले गए। उनकी गाइड लाइन में भाई रुबिंद्र सिंह और फीटर ट्रेड में आईटीआई श्यामानंद विश्वकर्मा ने डिजाइन पर वर्क किया। अप्रैल महीने चल रहा एक्सपेरिमेंट अब सफल हुआ है। उसके आधार पर भूसी वाला चूल्हा बनाया जा रहा है।
कैसे काम करता है ये भूसी वाला चूल्हा
भूसी वाले चूल्हे के बारे में जानकारी देते हुए फीटर श्यामानंद ने बताया कि बैट्री वाले इन्वर्टर और रेगुलेटर से चूल्हे को चलाया जाता है। पाइप के रियेक्टर में भूसी डाली जाती है। ऊपर कागज या थोड़ा सा तेल गिराकर आग लगाने के बाद बर्नर लगा देते हैं। फिर उस रियेक्टर वाले सिलेंडर के नीचे लगी पंखी को इन्वर्टर से स्टार्ट करते हैं। रियेक्टर में एयर का फ्लो रेगुलेट करने के लिए इनर्वटर में लगे रेगुलेटर को यूज करते हैं जिससे जलने पर भूसी पर फ्लेम सही हो जाती है। रियेक्टर के सिलेंडर में दो परत है। सिलेंडर में भूसी डाली जाती है। भीतर की ओर उसके चारों तरफ बने छेद से आने वाली हवा आग को बरकरार रखती है।  
बस एक मिनट में जलता है ये चूल्हा
चूल्हे को जलाने में सिर्फ एक मिनट का टाइम लगता है। भूसी डालकर आग लगाने के कुछ ही देर में धुआं गायब हो जाता है। एयर के फ्लो से बर्नर से नीली फ्लेम निकलती नजर आती है। उसके बाद यह चूल्हा भोजन पकाने के लिए तैयार हो जाता है। सिलेंडर में एक बार भूसी भरने के बाद 40 मिनट लगातार जलाया जा सकता है। जरूरत न होने पर इसके तुरंत बुझाकर जब चाहे दोबारा जला सकते हैं। इसमें लगा इनवर्टर एक बार चार्ज करने पर आठ घंटे तक काम करता है।
ग्लोबल वार्मिंग रोकने में हेल्पफुल
धान से निकलने वाली भूसी का यूज करके चूल्हे को जलाया जाएगा। धुंआ न निकलने की वजह से इससे पाल्यूशन का खतरा बेहद ही कम है। इसकी ब्लू फ्लेम होने खाना पकाने वाला बरतन काला नहीं होता है। बड़ी बात यह है कि इसमें किसी प्रकार की गंध नहीं निकलती है। एलपीजी की अपेक्षा इसमें ज्यादा बचत की संभावना है। फीटर ने बताया कि आठ लोगों की फैमिली में एक बार खाना पकाने में एक किलो चार सौ ग्राम भूसी की खपत होती है। सिलेंडर में कम से कम आठ सौ ग्राम भूसी डाली जाती है जिसके जलने से 1586 कैलोरी एनर्जी मिलती है।
वैकल्पिक उर्जा का है बेहतर उपाय
इंजीनियर यादेवेंद्र सिंह गिल की यह टेक्नोलाजी वैकल्पिक उर्जा के स्रोतों में बेहतर उपाय साबित हो सकती है। अमेरिका में मौजूद इंजीनियर से मोबाइल पर बात की गई तो उन्होंने बताया कि लगातार ग्लोबल वार्मिंग बढ़ रही है। महंगाई बढऩे से तेल और गैस के दामों में लगातार बढ़ोत्तरी होगी। धान की भूसी को बेकार समझकर लोग फेंक देते हैं। लेकिन यह अब काम आ सकेगी। भूसी आसानी से उपलब्ध है। भूसी का प्रयोग सफल होने पर पेड़ की टहनियों का एक्सीपेरिमेंट करेंगे।
बिना धुंआ के नीली फलेम, बैट्री से चलने में मददगार, आठ घंटे तक चलाने की सहूलियत वाला यह चूल्हा गैस की किल्लत के बीच एनवायरमेंट के लिहाज से बेहतर विकल्प है। इसके यूज से कम खर्च में भोजन पकाया जा सकेगा।
यादेवेंद्र सिंह गिल,
इंजीनियर

इस चूल्हे को बनाने के लिए लगातार एक्सपेरिमेंट किया जा रहा है। अप्रैल से लेकर अभी तक कई बार इसको बनाया गया। अब जो मॉडल तैयार हुआ है उसका एक्सपेरिमेंट सफल है। हम लोग इसका डेली यूज कर रहे हैं।  
श्यामानंद विश्वकर्मा, फीटर

 

report by : arun.kumar@inext.co.in

Posted By: Inextlive