- कार्तिक पूर्णिमा के दिन हर घाट पर चल रहा था भूत भगाने का अंध विश्वास

- शराब से लेकर सिगरेट और भांग तक पीने और पिलाने का चल रहा था खेल

- कई एरिया से आए लोग ओझा को दान देकर जुटे थे भूत भगाने में

PATNA : बक्सर के राम प्यारे अपनी पत्नी को लेकर आया था। कलेक्ट्रेट कैंपस में बैठे ओझा के पास आकर उसने अपनी सारी कहानी बयां की, उसके सर पर कुछ सवार है। पगलाती, मारती है, चिल्लाती है, खाती नहीं है, घूमते रहती है अजीब तरह की आवाज निकालती है। राम प्यारे अपनी परेशानी बता रहा है, तो बैठा भगत आसमान में हवा चला रहा है। वो हवाओं को मुट्ठी में भर रहा है। वो कह रहा है कि मैं सब देख रहा हूं, कौन कहां पर सवार है। इस दौरान महिला बेहोश सी दिख रही थी कि तभी उसके चेहरे पर सिगरेट का बड़ा सा गुबार छोड़ा गया। इसके बाद धुआं और उसके चेहरे के पास जलती आग को दिखाया गया। महिला हड़बड़ा कर चिल्लाने लगी। फिर ओझा ने कहा कि तुम भाग क्यों नहीं रहे हो। खैर, ओझा और भूत-पिशाच का यह खेल कई सालों से गंगा के किनारे चल रहा है। इस बार भी कलेक्ट्रेट घाट सहित गंगा के उस पार दियारा में यह खेल चल रहा था। कार्तिक पूर्णिमा में एक तरफ आस्था की डुबकी लगायी जा रही थी तो दूसरी ओर आस्था के नाम पर अंधविश्वास फैलाया जा रहा था, लेकिन इससे भी चौकाने वाली बात है कि इस अंधविश्वास को देखने वालों की तादाद भी कम नहीं है। और न ही ऐसे लोगों की जो इन चीजों में आज भी विश्वास करते हैं।

गलत बताते हैं ज्योतिष और पंडित

झाड़-फूंक और भूत भगाने जैसे मसले आज भी बिहार के सुदूर गांवों से लेकर शहरों की गलियों में पसरा हुआ है। ऐसे मसले कार्तिक पूर्णिमा के दिन डीएम ऑफिस कैंपस से लेकर गंगा के घाटों पर दिख जाता है। वहीं, कई गांवों के लोग भी यहां भूत झड़वाने के लिए आते हैं, जबकि शहर के ज्योतिष व पंडित भी इसे गलत मानते हैं। पंडित शंभूनाथ झा बताते हैं कि यह परंपरा और इसकी शिक्षा ही पूरी तरह से गलत है। अगर यह सही होता है तो फिर हर कोई इसे खुलेआम ग्रहण कर लेता। यूं ही चुपचाप इसे नहीं किया जाता, जानकारी हो कि इस प्रथा के खिलाफ काम करने वाली संस्था इसे ओझा व गुणी के हाथों ऐसे लोगों के साथ होने वाली शारीरिक अत्याचार मानती हैं। कई बार उसके सीने और पेट पर जोरदार वार भी किया जाता है। थक हारकर जब ऐसे पेशेंट सो जाते हैं तो उसे ठीक होना मान लिया जाता है।

दवाओं से ठीक किया जा सकता

साइक्रियाट्रिस्ट डॉ। राकेश कुमार बताते हैं कि मानसिक बीमारी को लेकर अब भी लोगों में काफी भ्रम फैला हुआ है। कोई झाड़-फूंक करवाता है तो कोई कहीं लाने और ले जाने से बचता है, लेकिन इसका असल इलाज मेडिसिन ही है। गंगा के किनारे आने वाले जितने भी लोग होते हैं। वो अमूमन सीजोफ्रेनिया के शिकार होते हैं। इसके अलावे डिप्रेशन सहित कई मानसिक बीमारी की चपेट में लोग फंसे रहते हैं। अगर सही मेडिकल ट्रीटमेंट करवाया जाए तो एक से दो वीक में पूरी बीमारी कंट्रोल में आ जाती है और रिजल्ट पॉजिटिव आ सकता है।

Posted By: Inextlive