भोपाल गैस कांड: हजारों लोगों की जान लेने वाले एंडरसन की हुई मौत
एंडरसन से संबंधित नहीं कोई अभिलेख
यूनियन कार्बाइड जहरीली गैस रिसाव न्यायिक जांच आयोग के अध्यक्ष जस्टिस एस.एल.कोचर को भारत सरकार के कैबिनेट सचिव ने बताया था कि एंडरसन की गिरफ्तारी, रिहाई एवं वापसी के लिये निर्देश से संबंधित कोई अभिलेख उनके यहां उपलब्ध नहीं है. तत्कालीन पुलिस अधीक्षक स्वराज पुरी ने एक सदस्यीय जस्टिस कोचर आयोग के सामने यह बताया था कि एंडरसन की गिरफ्तारी आदेश लिखित दिया गया था, लेकिन उसकी रिहाई मौखिक आदेश पर हुई थी. पुरी ने बताया कि सात दिसंबर को राज्य सरकार की मांग पर केंद्र सरकार ने सीबीआई को जांच के लिए सौंप दिया गया. सात दिसंबर की सुबह तत्कालीन मुख्यमंत्री स्व. अर्जुन सिंह ने बैठक बुलाई. इस बैठक में कहा गया कंपनी के मालिक वॉरेन एंडरसन, केशव महेंद्रा और विजय गोखले इंडियन एयरलाइंस से भोपाल आ रहे हैं. लिहाजा तीनों व्यक्तियों को अरेस्ट किया जाए. पुरी ने बताया कि गिरफ्तारी का आदेश लिखित में दिया गया था. मगर, वायरलेस सेट पर मिले संदेश पर एंडरसन को रिहा कर दिया गया था.
क्या था भोपाल गैस कांड
2 दिसंबर, 1984 को घटित भोपाल गैस कांड अभी तक की सबसे बड़ी त्रासदी है. दरअसल भोपाल स्थित यूनियन कार्बाइड प्लांट में 2 दिसंबर को आधी रात में मिथाइल आइसोनेट (एमआईसी) के रिसाव के कारण हजारों की तादाद में लोगों की मृत्यु हो गई. सरकारी आंकड़ों के मुताबिक इस दुर्घटना के कुछ ही घंटों के भीतर तीन हज़ार लोग मारे गए थे. लेकिन हमेशा की तरह यह सिर्फ सरकारी आंकड़ा था और मरने वाली की संख्या और भी ज्यादा थी. मिथाइल आइसोसायनाइड के रिसाव ने न सिर्फ फैक्टरी के आसपास की आबादी को अपने चपेट मे लिया था, बल्कि हवा के झोकों के साथ दूर-दूर तक निवास करने वाली आबादी तक अपना कहर फैलाया था.
नहीं थे सुरक्षा के इंतजाम
इस दुर्घटना में पर्याप्त सुरक्षा के बंदोबस्त न होने से यह और भी भयावह हो गया था. गैस रिसाव से सुरक्षा का इंतजाम तक नहीं था. दो दिन तक फैक्टरी से जहरीली गैसों का रिसाव होता रहा. फैक्टरी के अधिकारी गैस रिसाव को रोकने के इंतजाम करने की जगह खुद भाग खड़े हुए थे. गैस का रिसाव तो कई दिन पहले से ही हो रहा था. फैक्टरी के आसपास रहने वाली आबादी कई दिनों से बैचेनी महसूस कर रही थी. इतना ही नहीं, बल्कि उल्टी और जलन जैसी बीमारी भी घातक तौर पर फैल चुकी थी. उदासीन और लापरवाह कंपनी प्रबंधन ने इस तरह मिथाइल गैस आधारित बीमारी पर गौर ही नहीं किया था. मिथाइल आइसोसायनाइड गैस की चपेट में आने से करीब 15 हजार लोगों की मौत हुई थी. पांच लाख से अधिक लोग घायल हुए थे. जहरीली गैस के चपेट में आने से सैकड़ों लोगों की बाद में मौत हो गई. यही नहीं, आज भी हजारों पीड़ित ऐसे हैं, जो जहरीली गैस के प्रभाव से मुक्त नहीं हैं. भोपाल गैस कार्बाइड के आसपास की भूमि जहरीली हो गई है.