-रंगभरी एकादशी पर भक्तों ने बाबा के रजत प्रतिमा पर अर्पित की गुलाल रूपी श्रद्धा

-पर्व की परंपरा के अनुसार बाबा से मांगी होली खेलने की अनुमति, माता गौरा को भी किया रंगों से सराबोर

1ड्डह्मड्डठ्ठड्डह्यद्ब@द्बठ्ठद्ग3ह्ल.ष्श्र.द्बठ्ठ

ङ्कन्क्त्रन्हृन्स्ढ्ढ

रंग और गुलाल की खासियत हर किसी को अपने जैसा बना लेने की. पर यहां रंग अपनी रंगत को पीछे छोड़ किसी और की रंगत में डूब जाने को आतुर. तीनों लोकों के नाथ बाबा विश्वनाथ के भाल पर सजने की चाहत कुछ ऐसी कि हथेलियों में सिमट कर रहना इन्हें गवारा नहीं. फिर वह समय आ ही गया. बाबा विश्वनाथ अपने धर्म पत्नी गौरा के साथ पालकी पर सवार होकर आते दिखायी दिये और रंग-गुलाल भक्तों की मुठ्ठियों से निकल कर उनके मस्तक पर सज गयीं. अवसर था रंगभरी एकादशी पर रविवार को भक्त और भगवान के बीच होली का. उत्साह से लबरेज भक्तों ने बाबा भोले नाथ व माता गौरा के भाल पर रंग व गुलाल सजा कर उनसे होली खेलने की अनुमति मांगी. मान्यता व परंपरा के अनुसार काशी में इसी अनुमति के साथ ही होलिकोत्सव की शुरुआत हो जाती है.

भगवान ने खेली भक्तों संग होली

िजधर भी नजर गयी लाल, पीला, हरा, गुलाबी ही नजर आया. आसमान रंगीन तो जमीन भी रंग-बिरंगी. गुलाब गेंदा के फूलों की बरस रही पंखुडि़यां और इनसे टपक रहा अनंत श्रद्धा का भाव. काशी के आराध्य भगवान शंकर गये थे अपनी धर्मपत्‍‌नी माता पार्वती का गौना कराने तो उन्हें उनके भक्तों ने रंग बिरंगे गुलाल से सराबोर कर दिया. फिर अड़भंगी बाबा कहां पीछे रहने वाले थे. उन्होंने भी भक्तों के साथ पूरे उल्लास के साथ रंग खेला. श्री काशी विश्वनाथ मंदिर के महंत डॉ. कुलपति तिवारी के आवास से शाम पांच बजे बाबा विश्वनाथ के चलायमान रजत विग्रह की पालकी यात्रा निकली. गली के मकानों में हर झंरोखे से बाबा के दर्शन को लालायित भक्तों की आंखें. रह-रह कर उठ रहे हर हर महादेव का उद्घोष स्वर्ग लोक में बैठे देवताओं को भी इस बात का भान करा रहा था कि आज काशी वासियों से बड़ा सौभाग्यशाली कोई नहीं है. उन्होंने तीनों लोकों के स्वामी के साथ होली खेली है.

बाबा ने पहनी खादी

साल में एक बार निकलने वाले बाबा के रजत विग्रह को मंदिर के गर्भगृह तक ले जाया गया. इसके पूर्व बाबा को सुबह भोर में पंचामृत स्नान कराया गया. उसके बाद षोडशोपचार पूजन हुआ. बाबा को कामदार खादी का वस्त्र सुशोभित कराया गया. मां गौरा का भी विशेष श्रृंगार किया गया. उसके बाद दुग्धाभिषेक फिर सिंदूर दान व शिवांजलि का कार्यक्रम हुआ. दोपहर में 12 बजे भोग आरती के बाद एक बजे रजत प्रतिमा के दर्शन का क्रम शुरू हुआ. पालकी यात्रा विश्वनाथ मंदिर पहुंची और यहां पर भक्त रात तक अपनी श्रद्धा समर्पित करने पहुंचते रहे.

Posted By: Vivek Srivastava