AGRA: एक करोड़ की बात करें तो सुनकर ही लगता है कि रकम बड़ी है. लेकिन बात हम यहां एक-दो करोड़ की नहीं बल्कि दो हजार करोड़ की कर रहे हैं. यहां बात किसी कंपनी के टर्न ओवर की नहीं बल्कि आगराइट्स के पीने के पानी के खर्च की है. आपको जानकर हैरत होगी कि पांच साल में आगराइट्स दो हजार करोड़ का पानी खरीदकर पी गए. आगरा की सबसे बड़ी प्रॉब्लम पानी है. इसका आज तक कोई हल नहीं निकल पाया है. हर बार इलेक्शन में शहर में पानी के लिए नई परियोजनाएं लाने के वायदे होते हैं. लेकिन इलेक्शन के बाद होता ये कोरे वायदे ही साबित होते हैं. आगराइट्स के पास भी ऑप्शन नहीं बचते हैं. इसीलिए या तो वे सप्लाई में आने वाला काला बदबूदार पानी पीएं या फिर शहर में चल रहे पानी के प्लांट से पानी खरीदकर अपनी प्यास बुझाएं. आपको बता दें कि जितना रुपया आगराइट्स का पानी खरीदने में जाता है उतना रुपया यदि पानी की किसी परियोजना में लगा दिया जाए तो शहर से पीने के पानी की दिक्कत ही खत्म हो जाए.


150 एमएलडी की कैपिसिटी सिकंदरा वाटर वक्र्स की 150 एमएलडी की क्षमता है। लेकिन यमुना में पानी की कमी के चलते यहां 100 या 120 एमएलडी पानी स्टोर हो पाता है। पिछले पांच सालों से इस वाटर वक्र्स की हालत खस्ता है। सालों पुराने पंप से पानी की सफाई नहीं हो पाती है। यहां से मात्र 100 एमएलडी की सप्लाई ही पब्लिक को दी जाती है। इसके अलावा जगह-जगह पाइप लाइन टूटी हैं, जिनकी वजह से पानी लीकेज रहता है। क्या हैं मानक सिटी में दो वाटर वक्र्स हैं। रूल के हिसाब से दोनों वाटर वक्र्स की कैपिसिटी 150 एमएलडी की है। एरिया में जनसंख्या के हिसाब से हर व्यक्ति के लिए 125 लीटर पानी रोजाना देने का नियम है। 410 एमएलडी की है जरूरत


शहर की जनसंख्या बीस लाख के करीब है। इसको देखते हुए पूरे शहर में पानी की सप्लाई की जरूरत 410 एमएलडी की है। जो दोनों वाटर वक्र्स से भी पूरी नहीं होती है। इस लिहाज से शहर में 240 एमएलडी पानी की सप्लाई दी जाती है। लोगों को उनकी जरूरत के हिसाब से पानी ही नहीं मिल पाता है। इतने में पांच वाटर वर्क्स

जितने का आगराइट्स पांच साल में पानी खरीदते हैं, उतने में 150 एमएलडी की कैपिसिटी वाले करीब पांच प्लांट बनाए जा सकते हैं.  इनसे आगराइट्स को साफ पानी मुहैया कराया जा सकता है.  अधर में अटका है प्रोजेक्ट जेनएनएनयूआरएम में एक वाटर वक्र्स का भी प्रोजेक्ट है। ये पिछले कई सालों से अधर में लटका हुआ है। इसको बनाने में करीब 750 करोड़ की लागत आनी है। ये भी तय हो चुका है कि इसे कहां बनाया जाना है। इसके बावजूद अभी तक इसकी नींव भी नहीं रखी गई है.   लीकेज में बह जाता है पानी जलसंस्थान का दावा है कि  250 एमएलडी पानी की सप्लाई दी जाती है। लेकिन इनका इस बात की ओर ध्यान नहीं है कि लीकेज में कितना पानी बेकार जाता है। इस बारे में जब बात की गई तो जल संस्थान के ऑफिसर्स से कोई संतोषजनक जवाब नहीं मिल सका। वर्जन पानी की सप्लाई व्यवस्था को सुधारने का काम निरंतर जारी है। आबादी को देखते हुए एक वाटर वक्र्स होना चाहिए। जवाहरलाल नेहरू नेशनल अरबन रिनुअल मिशन प्रोजेक्ट के तहत वाटर वक्र्स का एक प्रोजेक्ट पास है, जो जल्दी बनना शुरू हो जाएगा। जवाहर राम, जीएम, जलसंस्थान  पानी का हिसाब -20 लाख सिटी की आबादी -5 लाख लोग रोजाना खरीदते हैं 20 रुपए का पानी

-8000 रुपए का एक आदमी का सालाना पानी का खर्चा - 8000 गुणा 5 लाख यानि 400 करोड़ -पांच साल में पानी पर खर्च हुए कुल 2000 करोड़ रुपए गंदे पानी से बीमार होने वाले लोग 3600 लोग साल भर में आते हैं डायरिया के 1600 लोग पीलिया के आते हैं 1200 पानी से होने वाली दूसरी बीमारियों जैसे स्किन प्रॉब्लम, टाइफाइड के आते हैं।-6000 लोग साल भर में कुल आते हैं एसएन मेडिकल कॉलेज में। -100 रुपए रोजाना 15 दिनों तक खर्च होने पर एक आदमी के 1500 होते हैं दवाई व खान पान पर खर्च। -90 लाख तकरीबन हो जाता है दवाइयों व खान पान पर खर्चा। नोट- दवाइयों व खान-पान पर खर्च की लागत हॉस्पिटल में आने वाले लोगों की संख्या के हिसाब से अनुमानित लगाई गई है। इसके अलावा प्राइवेट डॉक्टर्स के यहां भी लोग गंदा पानी पीने से हुई बीमारी के चलते पहुंचते हैं. 

Posted By: Inextlive