Allahabad: पहले कहावत थी कि 'मां का दूध पीया है तो सामने आओÓ बट जल्द ही ये जुमला भी चेंज हो जाएगा. आने वाले दिनों में लोग इस डायलाग में मां की जगह डिब्बे शब्द का यूज करने लगें तो आश्चर्य नहीं होगा. मार्केट में बेबी मिल्क पावडर की तेजी से बढ़ती डिमांड इस ओर इशारा करने के लिए काफी है. ब्रेस्ट फीडिंग के प्रति मदर्स का चेंज होता नजरिया ही इसका मेन रीजन है. हालांकि डॉक्टर्स मानते हैं कि आर्टिफिशियल मिल्क का अधिक यूज बच्चे की सेहत को नुकसान पहुंचा सकता है.

Breastfeeding के दुश्मन हैं तीन 

केवल इंडिया हीं नहीं बल्कि पूरे विश्व में ब्रेस्ट फीडिंग के प्रमोशन के लिए एक से सात अगस्त के बीच अवेयरनेस कैंपेन चलाया जा रहा है। बावजूद इसके ब्रेस्ट फीडिंग का प्रतिशत कम होता जा रहा है। वर्तमान में चालीस फीसदी बच्चों को आर्टिफिशियल मिल्क के भरोसे रहना पड़ रहा है। बच्चों को ब्रेस्ट फीडिंग न करा पाने के पीछे तीन बड़े रीजन हैं। पहला यह कि सर्विस पेशा महिलाएं ब्रेस्ट फीडिंग से बचती हैं। दूसरा, कुछ महिलाएं अपनी फिगर को लेकर इतनी कांशस होती हैं कि वह इससे डरने लगती हैं। फाइनली थर्ड रीजन यह है कि सही न्यूट्रिशन नहीं मिलने से महिलाओं के शरीर का दूध समय से पहले सूख जाता है। इन्हीं कारणों के चलते महिलाओं की निर्भरता आर्टिफिशियल मिल्क की तरफ बढ़ती जा रही है।

Hype पर है market

डिमांड बढ़ जाने से पिछले पांच सालों में बेबी मिल्क पावडर से जुड़े दर्जनों प्रोडक्ट्स की मार्केट में जबरदस्त ग्रोथ हुआ है। आंकड़ों पर जाएं तो पर ईयर 25 से 30 परसेंट डिमांड बढ़ी है और इसके चलते प्रोडक्ट्स की प्राइज में 10 से 30 रुपए तक हर साल बढ़ोतरी हो रही है। कारण साफ है कि कहीं न कहीं पैरेंट्स से लेकर डॉक्टर्स की डिपेंडेंसी ऐसे प्रोडक्ट्स को प्रमोट कर रही है। अर्बन एरियाज में तो नामी-गिरामी कंपनीज के प्रोडक्ट डिमांड में हैं तो रूरल एरियाज में डोमेस्टिक यूज के मिल्क प्रोडक्ट बच्चों को दिए जा रहे हैं। जिनका यूज चाय या काफी बनाने में ही किया जा सकता है। इनमें किसी भी तरह का न्यूट्रिशन नहीं पाया जाता है. 

केवल पेट भर जाने से proper nutrition नहीं मिलता

डॉक्टर्स मानते हैं कि कंटीन्यू बेबी मिल्क पावडर का यूज करने से बच्चे को प्रॉपर न्यूट्रिशन नहीं मिल पाता है। इससे शुरुआती महीनों में न तो बच्चे की प्रॉपर बॉडी फंक्शनिंग हो पाती है और न ही उसमें इम्युनिटी पॉवर डेवलप होती है। बेबी मिल्क पावडर बनाने वाली कंपनियां प्रोडक्ट को टेस्टी और फ्लेवर्ड बनाने के लिए उसमें कहीं न कहीं केमिकल का यूज करती हैं, जो कि बच्चे की आंतों को नुकसान पहुंचाने के लिए काफी है। जबकि, इसके उलट मां का दूध टेस्टलेस होता है लेकिन उसमें प्रॉपर न्यूट्रिशन मौजूद होता है. 

विज्ञापनों पर भी लगाई पाबंदी

ब्रेस्ट फीडिंग को प्रमोट करने के परपज से गवर्नमेंट ने कुछ साल पहले बेबी मिल्क पावडर प्रोडक्ट्स के विज्ञापनों पर रोक लगा दी थी। इसके अलावा प्रोडक्ट्स पर वार्निंग भी लिखने के ऑर्डर जारी किए गए। गवर्नमेंट की मंशा थी कि महिलाएं ऑप्शन ढूंढने के बजाय बच्चे को अपना दूध पिलाएं। फिलहाल ये उददेश्य पूरा होते नहीं दिख रहा है। नूडल्स, चाकलेट, कॉफी जैसे प्रोडक्ट बनाने वाली एक लीडिंग कंपनी के बेबी मिल्क प्रोडक्ट का इलाहाबाद में मंथली टर्नओवर डेढ़ करोड़ रुपए से अधिक है। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि केवल विज्ञापनों पर रोक लगा देने से इस समस्या का हल नहीं निकल सकता है।

Facts

- यूनीसेफ सहित दूसरे संगठनों की ओर से हर साल एक से सात अगस्त के बीच ब्रेस्ट फीडिंग वीक मनाया जाता है।

- इस बार वीक की थीम 'काउंसिलिंग के जरिए महिलाओं को ब्रेस्ट फीडिंग के लिए प्रेरित करेंÓ रखी गई है।

- यह वीक एक साथ 170 देशों में मनाया जाता है।

- महिलाओं की बॉडी में मिल्क जनरेट करने वाले हार्मोंस काफी सेंसेटिव होते हैं, लंबे गैप में ब्रेस्ट फीडिंग कराने से ये हार्मोंस खत्म होने लगते हैं।

- मार्केट में अलग-अलग कंपनियों के बेबी मिल्क प्रोडक्ट्स की कीमत 150 से 400 रुपए के बीच है।

- पिछले पांच सालों से इन प्रोडक्ट्स के दाम पर ईयर 10 से 30 की दर से बढ़ रहे हैं।

महिलाओं को होना होगा जागरुक

ब्रेस्ट फीडिंग वीक के तहत एसआरएन हॉस्पिटल में ऑर्गनाइज एक सेमिनार के दौरान चीफ गेस्ट एडी हेल्थ डॉ। रमेश श्रीवास्तव ने कहा कि पहले छह महीनों में मां का दूध बच्चे के लिए सर्वोत्तम होता है। इस दिशा में महिलाओं को आगे आना होगा। अदर गेस्ट्स एमएलएन मेडिकल कॉलेज के प्रिंसिपल डॉ। एसपी सिंह, एसआईसी डॉ.श्रद्धा द्विवेदी, डॉ। मीना दयाल, डॉ। अमृता चौरसिया, डॉ। रुचि राय, जेडी डॉ। सुधाकर पांडेय, डॉ। शांति चौधरी सहित कई लोग मौजूद थे।

आर्टिफिशियल मिल्क पर बढ़ती डिपेंडेंसी के कई रीजन हैं। नौकरी-पेशा वाली महिलाएं बच्चों को अपने दूध की आदत नहीं डालतीं तो बचपन से सही न्यूट्रिशन नहीं मिलने से कुछ महिलाएं कमजोरी के चलते ब्रेस्ट फीडिंग नहीं करा पाती हैं। यही कारण है कि बच्चों को ऊपर के दूध की आदत पड़ जाती है। जबकि, डॉक्टर्स स्ट्रिक्टली ब्रेस्ट फीडिंग की एडवाइज मदर्स को देते हैं। महिलाओं को अब सोच बदलनी होगी। बेे्रस्ट फीडिंग से फिगर खराब नहीं बल्कि बेटर होता है।

डॉ। सबिता अग्रवाल, गायनेकोलॉजिस्ट

बिना किसी जेनुइन रीजन के डॉक्टर्स कभी भी बच्चों केा आर्टिफिशियल मिल्क की एडवाइज नहीं देते हैं। ये बात अलग है कि कंटीन्यू इनके यूज से बच्चों की फंक्शनिंग डिस्टर्ब हो सकती है। हम पैरेंट्स को ऐसा नहीं करने की सलाह भी देते हैं। बच्चों के ग्रोथ के लिए मां का दूध ही हर तरह से परफेक्ट माना गया है।

डॉ। मनीष चौरसिया, पीडियाट्रिशन

Posted By: Inextlive