क्त्रन्हृष्ट॥ढ्ढ: राजधानी में नियम कानून को ताक पर रख लगातार अपार्टमेंट का निर्माण किया जा रहा है. कानून का उल्लंघन कर जहां बिल्डर करोड़ों का मुनाफा कमा रहे हैं वहीं लोगों को इससे काफी परेशानियां हो रही हैं. अपार्टमेंट में फ्लैट खरीदने वाले लोगों को कई सुविधाओं का वादा कर फ्लैट मनमानी कीमत पर बिल्डरों द्वारा बेचा जाता है लेकिन बाद में सुविधाएं नदारद रहती हैं. बिल्डर भी सारे फ्लैट बेचकर रफूचक्कर हो जाता है. न तो बिल्डरों द्वारा आक्युपेंसी सर्टिफिकेट लिया जाता है न ही नगर निगम या अन्य अथॉरिटी द्वारा इन बिना सर्टिफिकेट के फ्लैट बेचने वाले बिल्डरों पर कोई कार्रवाई ही की जाती है. इतना ही नहीं, बिल्डर द्वारा तोड़े गए नियमों का खामियाजा फ्लैट खरीदने वाले लोगों को भुगतना पड़ता है.

नगर निगम देता है सर्टिफिकेट

शहर में लास्ट 10 साल के भीतर करीब तीन हजार से अधिक बहुमंजिला भवनों का निर्माण किया गया जिनका नक्शा आरआरडीए या नगर निगम से स्वीकृत है, लेकिन इनमें से केवल 141 भवन निर्माताओं ने ही अधिनिवासी प्रमाण पत्र (ऑक्यूपेंसी सर्टिफिकेट) लिया है. आरआरडीए ने 2009 तक कुल 112 और नगर निगम ने 10 साल में मात्र 29 बिल्डिंग्स का एक्यूपेंसी सर्टिफिकेट जारी किया. आरआरडीए ने अगस्त 2009 तक कुल 1341 बहुमंजिली भवनों का नक्शा पास किया, जबकि 1600 बहुमंजिला भवनों का नक्शा नगर निगम ने पास किया.

नियमों से नक्शा पर निर्माण में मनमानी

रांची में अफसरों और बिल्डरों के गंठजोड़ से मल्टी स्टोरी बिल्डिंग में नेशनल बिल्डिंग कोड और बिल्डिंग बायलॉज के नियमों की धज्जियां उड़ाई जाती हैं. भवनों के नक्शे में सब कुछ नियम और कानून के तहत होता है, लेकिन बिल्डिंग बनाने में बिल्डरों द्वारा मनमानी की जाती है. आरआरडीए और नगर निगम के अफसर मोटी रकम वसूल कर खामोश हो जाते हैं.

हजारों भवनों की नहीं हुई जांच

बहुमंजिली बिल्डिंग बनाने वाले डेवलपर्स को नियम और शतरें के अनुसार बिल्डिंग बनाने के बाद निगम में कंप्लीशन सर्टिफिकेट देना होता है. इसके बाद टाउन प्लानिंग सेक्शन के इंजीनियर बिल्डिंग की जांच करते हैं. इसमें देखा जाता है कि नक्शा के अनुरूप बिल्डिंग बना है या नहीं, वहां सीढ़ी, लिफ्ट, बालकोनी, बिल्डिंग तक जाने वाली सड़क की चौड़ाई, पार्किंग, जेनरेटर रूम, रैंप, आपात निकास द्वार, रेन वाटर हार्वेस्टिंग, इमरजेंसी वाटर टैंक की व्यवस्था है या नहीं. अधिकतर बिल्डिंग में इन शतरें का पालन नहीं होता, इसलिए बिल्डर निगम को कंप्लीशन सर्टिफिकेट नहीं देते हैं. नगर निमग भी अपनी तरफ से 10 साल पुराने भवन कंपलीट भी हुए हैं या नहीं इसकी जांच नहीं करता है.

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बच रहे बिल्डर, आप पर मंडरा रहा खतरा

इन नियमों का यदि पालन नहीं किया जा रहा तो भवन में फ्लैट खरीदने वाले और आसपास के मोहल्ले में रहने वाले लोगों को काफी ख्रतरा हो सकता है.

--दो तरफ सीढ़ी होनी चाहिए, ताकि आग लगने या आपात स्थिति में एक से निकला जा सके.

--जी प्लस 4 से ऊपर के भवन के लिए कम से कम 30 फीट चौड़ी सड़क होनी चाहिए ताकि आपात स्थिति में सरलता से मदद पहुंच सके.

--अपार्टमेंट में आगजनी की घटना से निपटने के लिए बिल्डिंग के चारो तरफ 15 फुट चौड़ा सेटबैक छोड़ना जरूरी है, ताकि अग्निशमन वाहन घूम सके.

--अपार्टमेंट में अंडरग्राउंड और ओवरहेड वाटर टैंक अनिवार्य रूप से होना जरुरी है. आग लगने पर पानी से बुझाया जा सके.

--अपार्टमेंट के सभी फ्लैट, कॉमर्शियल बिल्डिंग की सभी दुकानों में फायर अलार्म अनिवार्य है, धुआं फैलने पर वह लोगों को अलर्ट करेगा.

-- पार्किंग, जनरेटर रूम, रैंप, आपात निकास द्वार, रेन वाटर हार्वेस्टिंग में विचलन होने से भरपायी फ्लैट ऑनर को करनी पड़ रही है.

वर्जन

आक्युपेंसी सर्टिफिकेट नहीं लेना सरासर गलत है. मामले नगर निगम के संज्ञान में है और चुनाव के बाद इनपर कार्रवाई भी की जाएगी. ऐसे बिल्डरों को भविष्य में नक्शा पास कराने के लिए पुराने पास नक्शों का आक्युपेंसी सर्टिफिकेट देना जरूरी होना चाहिए.

मनोज कुमार, कमिश्नर, रांची नगर निगम

Posted By: Prabhat Gopal Jha