- जू की हसीन वादियों में बटरफ्लाई की 110 से अधिक प्रजातियां हैं

- सौ किलोमीटर से अधिक उड़कर जू पहुंची है बटरफ्लाई

- जू एडमिनिस्ट्रेशन का दावा, इंडिया के अन्य जू की तुलना में धनी है पटना जू

- बच्चों को इससे रिलेटेड जानकारी देने की चल रही है योजना

- बटरफ्लाई जोन के अलावा पूरे जू में डिस्प्ले की जाएगी जानकारी

PATNA : पटना जू जाने से पहले उसकी एक और खासियत जान लें। यहां देश के अन्य जू की तुलना में सबसे अधिक बटरफ्लाई है। इतना ही नहीं कई ऐसी बटरफ्लाई भी यहां हैं जो दुर्लभ प्रजाति की हैं। वहीं कुछ ऐसी बटरफ्लाई भी हैं जिन्हें खून पीना पसंद है। लेकिन घबराने की जरूरत नहीं है। ये खून पीने वाले बटरफ्लाई आदमियों के खून नहीं पीती हैं। इन सारे बटरफ्लाई का डॉक्यूमेंटेशन जारी है जल्द ही इसके ऊपर जू एडमिनिस्ट्रेशन बुक रिलीज करेगा।

बन रहा है बटरफ्लाई जोन

देश के कई जू में बटरफ्लाई पर काम किया गया है। आंकड़े बताते हैं कि नंदन कानन में भ्8, मैसूर जू में 70 और नेचुरल बटरफ्लाई पार्क बैंगलोर में बटरफ्लाई की 8भ् प्रजातियां पाई गई हैं। लेकिन पटना जू में बटरफ्लाई की एक सौ दस से अधिक प्रजातियां पाई गई हैं। यह संख्या अधिक हो सकती है। बटरफ्लाई पर काम कर रहे अंकित बताते हैं कि ढेर सारी बटरफ्लाई ऐसी हैं जिनकी पहचान नहीं हो सकी है। इन्हें देहरादून स्थित वाइल्ड लाइफ ट्रस्ट ऑफ इंडिया को आइडेंटिफिकेशन के लिए भेजा गया है। बटरफ्लाई की बढ़ती संख्या को देखते हुए पटना जू के डायरेक्टर एस चंद्रशेखर ने डिसाइड किया है कि यहां बटरफ्लाई जोन बनाया जाएगा। अंकित ने बताया कि इसी तरह का बटरफ्लाई जोन पटना के किलकारी में भी बनाया जाएगा। सारी योजनाएं तैयार हैं और इस दिशा में काम आगे बढ़ चुका है।

दुर्लभ प्रजाति की बटरफ्लाई

पटना जू में कुछ ऐसी बटरफ्लाई को भी आइडेंटीफाई किया गया है जो अब विलुप्त होने के कगार पर हैं। ऐसी दुर्लभ प्रजातियों के संरक्षण का काम भी जू में किया जाना है। ड्रेगेन एग फ्लाई, ग्रेट एग फ्लाई और ब्लौक राजा बटरफ्लाई की ये प्रजातियां दुर्लभ प्रजाति की श्रेणी में आती हैं।

पीती है गीली मिट्टी का रस

आमतौर पर यह धारना है कि बटरफ्लाई फूलों का रस ही पीती हैं। लेकिन ऐसा नहीं है। पटना जू में कुछ बटरफ्लाई ऐसी भी हैं जिन्हें खून पीना पसंद हैं। ब्राउंस प्रजाति की बटरफ्लाई को खून पीना बहुत पसंद है। वहीं सैलो टेल्स फैमली की बटरफ्लाई को भी खून बहुत अट्रैक्ट करता है। आपको जानकार हैरत होगी कि बटरफ्लाई पसीने की ओर भी अट्रैक्ट होती हैं। फूलों के रस के अलावा इन्हें फल और सब्जियों का रस भी बेहद पसंद है। मड पडलिंग एक खास विधि है जो हर बटरफ्लाई की हॉबी होती है। बटरफ्लाई अपने डायजेशन को ठीक रखने के लिए मड पडलिंग करती हैं। इस प्रक्रिया में बटरफ्लाई गीली मिट्टी का रस पीती हैं।

यह है माइग्रेशन का महीना

अप्रैल के सेकेंड वीक में बटरफ्लाई माइग्रेट करती हैं। ये अपने नेचुरल हैबिटेट को छोड़कर दूसरी जगहों पर जाती हैं। देखा गया है कि अप्रैल से मई के महीने में जू में बटरफ्लाई की संख्या बढ़ जाती है। पटना और आसपास के जिले से बटरफ्लाई इस महीने पटना जू को ही अपना पसंदीदा जगह समझ आते हैं। जू में भी बटरफ्लाई के लिए खास ख्याल रखा जा रहा है। बटरफ्लाई के पसंद के पौधे जैसे होस्ट प्लांट और नेचुरल प्लांट बड़ी संख्या में लगाये गये हैं।

क्यों उड़ती रहती है बटरफ्लाई

बच्चे और बड़े सभी में ये जिज्ञासा बनी रहती है कि बटरफ्लाई इतना अधिक उड़ती क्यों हैं। मालूम हो कि बटरफ्लाई अपने बॉडी टेम्परेचर को मेंटेन करने के लिए ऐसा करती हैं। बटरफ्लाई सबसे अधिक 90 मील प्रति घंटे की रफ्तार से उड़ सकती है। वहीं सबसे कम फ्0 मील प्रति घंटे की रफ्तार से उड़ सकती है।

Posted By: Inextlive