इलेक्शन को नौ दिन बचे हैं. सुबह-शाम लोक दरबार में हाजिरी लगाने के बाद नेता जी को इस बार सीए की चौखट के भी चक्कर काटने पड़ रहे हैं. इलेक्शन कमिशन ने इस बार खर्चे पर जो डंडा चलाया है उससे बचने के लिए लगभग सारे कैंडीडेट्स सीए की शरण में हैं.

चल निकली सीए की 'दुकान'
इलेक्शन कमिशन के डंडे ने कैंडीडेट्स की हालत पतली कर दी है। इलेक्शन टाइम आते ही झंडे-बैनर-पोस्टर का जो 'कारोबार' कई गुना बढ़ जाता था, उसके कारीगर हाथ पर हाथ धरे बैठे हैं। इस बार सीए ऑन डिमांड हैं। इलेक्शन कमिशन के डंडे से बचाने के लिए उन्हें सीए की उंगलियों के जादू पर भरोसा है। सीए ऑलरेडी बिजी रहते हैं, मगर इस इलेक्शन ने उनकी दुकान और चल निकली है। एक सीए कई असेंबलीज के कैंडिडेट्स का 'हिसाब-किताब' संभाल रहे हैं।

खर्चा दिखाएं या जनसंपर्क करें
सिटी में इलेक्शन 11 फरवरी को है। प्रचार के कुछ ही दिन बचे हैं। सिटी से एक नेशनल पॉलिटिकल पार्टी से चुनाव लड़े रहे नेता जी ने कहा कि इस बार इलेक्शन कमिशन ने हालत खराब कर दी है। विधानसभा क्षेत्र में जनसंपर्क करें या फिर निर्वाचन ऑफिस जाकर खर्चे का हिसाब दें। अगर हिसाब ही देते रहेंगे तो पब्लिक से कब मिलेंगे। पब्लिक से नहीं मिलेंगे तो फिर वोट कैसे मिलेगा और हमारी मेहनत तो ऐसे ही बेकार चली जाएगी.  हिसाब की जिम्मेदारी सीए को दे दी है और हम अपना असली काम पब्लिक से मिलना कर रहे हैं. 

खर्चे का हिसाब देना या कम करना
कैंडिडेट्स ने वैसे तो सीए को प्रचार के खर्चे का हिसाब देने के लिए अप्वाइंट किया है, मगर चुनाव के जानकारों की माने तो सीए को यह जिम्मेदारी देने के पीछे एक बड़ा रीजन है। इलेक्शन में पैसा खर्च होने की कोई लिमिट नहीं होती, मगर इलेक्शन कमिशन के सख्त निर्देश के चलते ऐसा मुमकिन नहीं है। कुछ कैंडिडेट्स का कहना है कि सीए खर्च को लिमिट में दिखाने में मास्टर होते हैं, इसलिए जन दरबार के बाद उनके यहां हाजिरी बजानी भी जरूरी है।

नहीं दिखाया खर्चा तो कैंसिल होगी प्रत्याशिता
जानकारों के मुताबिक कैंडिडेट्स को प्रचार के खर्चे का हिसाब देना जरूरी है। निर्वाचन ऑफिस में चार डेट पर कैंडिडेट्स को अपने खर्चे का हिसाब देना है। खर्चे की डिटेल न देने पर कैंडिडेट्स के खिलाफ इलेक्शन कमीशन कार्रवाई कर सकता है। जुर्माना लगाने के साथ कमिशन अगले तीन बार तक प्रत्याशिता पर रोक लगा सकता है।

Posted By: Inextlive