चार-पांच दिनों के बाद हवा में छठ के पावन गीत गूंजने लगेंगे. 'मारबो रे सुगवा धनुष से' और ना जाने कौन-कौन से पारम्परिक गीत. लेकिन जहां यह पर्व मनाया जाएगा उन घाटों की स्थिति आज भी नहीं बदली है.


छठ के पहले गवर्नमेंट, एडमिनिस्ट्रेशन से लेकर तमाम एनजीओ तक एक्टिव रहते हैं, लेकिन रिजल्ट हमेशा ढाक के तीन पात ही रहता है। कहने को तो छठ पर्व के दो सप्ताह रह गए हैं। प्रशासन की नजरों में घाटों की स्थिति सुधारने के लिए उनके पास पर्याप्त समय है, लेकिन हर कोई यह जानता है कि फिर वही होगा यानी 'भोज के समय कोहड़ा' रोपा जाएगा। इस बाबत आई नेक्स्ट टीम ने स्थिति की जानकारी लेने के लिए मैक्सिमम घाटों का निरीक्षण किया। जो हकीकत है। वो काफी डरावनी है। बेहद भयावह। उतरने लगा गंगा का पानी
ना तो पटना कभी बनारस था और ना ही कभी बनारस हो सकता है। पटना के घाट पटना जैसे ही हैं। ना तो घाटों पर पानी है और ना ही यहां कोई मैनेजमेंट दिखता है। जो दिखता है, उसे शब्दों में बयां करना थोड़ा कठिन है। कुछ बातें बताने लायक हैं। मसलन, गंगा के घाटों पर अब पानी नहीं दिखता है। यहां दिखती है सिर्फ गंदगी और गंदगी। सड़ांध मारती गंदगी। गलती से अगर उस पर पैर पड़ गया तो दो दिनों तक पूरे बदन में सिहरन-सी होती रहेगी। कुछ घाट तो लुप्तप्राय हो चुके हैं। जो रह गए हैं, उनमें दुर्गापूजा में विसर्जित की गई मूर्तियों के अवशेष हैं। गंगा का पानी उतर गया है, पर अवशेष किनारे पर ही रह गए। नहीं रह गए पूजा के लायकघाटों के किनारे पॉलीथिन में बंद पूजा के अवशेष के पैकेट भी थोक भाव में है। लाख मना करने के बाद भी यहां के भक्त घरों में की गई पूजा के अवशेष पॉलीथिन में बंद कर पावन सलिला गंगा की गोद में फेंक देते हैं। वो भी किनारे आ लगे हैं। वो सड़ भी गए हैं। इसके अलावा दलदल, दुनिया भर का कूड़ा और ना जाने क्या-क्या। फिर बनारस की तरह पटना में 80 घाट नहीं हैं। गिने-चुने घाट हैं। उनकी हालत कुछ ऐसी है कि यहां पूजा करना मानो पूजा के साथ खिलवाड़ करना होगा। गौरतलब है कि छठ लोक आस्था का महापर्व है। सो, इसमें साफ-सफाई का विशेष महत्व है। लेकिन वर्तमान में घाटों की जो स्थिति है, उनमें मैक्सिमम घाट पूजा के लायक नहीं रह गए हैं। जो बचे हैं, वो काफी खतरनाक स्थिति में हैं।

Posted By: Inextlive