Ranchi : गुमला से अपने परिजन का इलाज कराने रिम्स आए रघुनाथ एक्का को पता ही नहीं कि उनके पेशेंट के लिए डॉक्टर ने जो प्रिस्क्रिप्शन लिखा उसमें क्या लिखा है. डॉक्टर का दिया प्रिस्क्रिप्शन लेकर वह बरियातू स्थित नटराज मेडिकल हॉल पहुंचे और वहां बैठे दुकानदार ने उन्हें पढ़कर बताया कि जो दवाई लिखी गई है वह 'फोलवाइटÓ है. हालांकि डॉक्टर द्वारा लिखे गए दवा के नाम पढऩे में दुकान में बैठे सोनू को भी दिक्कत हो रही थी. इस परेशानी की कहानी अकेले किसी दवा दुकान वाले की नहीं है. यह वह साझा कहानी है जिससे लगभग हर दवा दुकान वाला रू-ब-रू होता है. इसी प्रॉŽलम को दूर करने के लिए एमसीआई ने अपनी तरफ से उस प्रपोजल को हरी झंडी दिखा दी है जिसमें यह व्यवस्था की गई है कि डॉक्टर्स प्रिस्क्रिप्शन में दवाओं के नाम इंग्लिश के कैपिटल लेटर्स में लिखेंगे ताकि उन दवाओं के नाम केमिस्ट आसानी से पढ़ सकें और पेशेंट को सही दवा मिल सके. हालांकि अभी इस प्रपोजल को हेल्थ मिनिस्ट्री से मंजूरी मिलना बाकी है. ऐसे में आई नेक्स्ट ने सिटी के डॉक्टर्स व मेडिकल प्रोफेशन से जुड़े अन्य लोगों से जानना चाहा कि एमसीआई का यह प्रपोजल कितना यूजफुल प्रैक्टिकल और किस हद तक केमिस्ट्स व पेशेंट्स के इंट्रेस्ट में है. ज्यादातर ने इसे यूजफुल बताया वहीं किसी ने इसे 'वेस्ट ऑफ डॉक्टर्स टाइम' बताया.

कईयों की लिखावट समझ में नहीं आती है

झारखंड केमिस्ट एंड ड्रगिस्ट एसोसिएशन के जेनरल सेक्रेटरी अमर सिन्हा कहते हैं कि दवा दुकानदार कस्टमर को दवा देते वक्त जिस सबसे बड़ी प्रॉŽलम को फेस करते हैं, वह है कई डॉक्टर्स के प्रिसिक्रिप्शन की लिखावट का समझ में न आना। हालांकि, कई डॉक्टर्स ऐसे भी हैं जो प्रिस्क्रिप्शन पर दवाओं के नाम कैपिटल लेटर में लिखते हैं या उनके प्रिस्क्रिप्शन कंप्यूटराइज्ड होते हैं। ऐसे प्रिस्क्रिप्शन पर लिखे दवाओं के नाम पढऩे में दवा दुकानदारों को कोई प्रॉŽलम नहीं होती और पेशेंट को भी सही दवा मिलती है। लेकिन, सभी डॉक्टर्स साफ लिखावट में नहीं लिखते। इससे कई बार दवा दुकानदारों के सामने कन्फ्यूजन की सिचुएशन क्रिएट हो जाती है। ऐसी सिचुएशन न आए, इसके लिए डॉक्टर्स को या तो कैपिटल लेटर में या कंप्यूटराइज्ड पर्ची में दवाएं लिखनी चाहिए।

Confusion में जा सकती है जान

अमर सिन्हा कहते हैं कि पेशेंट्स के ट्रीटमेंट के लिए लिखी जानेवालीं कई दवाएं ऐसी होती हैं, जिनके नाम लगभग सेम अल्फाबेट्स एंड वे में लिखे जाते हैं। फॉर एग्जाम्पल- डायजीन, डायमोल और डाउनिल। अगर इन्हें घसीटी हुई हैंडराइटिंग में लिखा जाए, तो दवा दुकानदार के लिए डायमोल और डाउनिल में अंतर करना मुश्किल होगा। ऐसे में कन्फ्यूजन क्रिएट होगा और इसी कन्फ्यूजन में दवा दुकानदार गैस के पेशेंट को डायबिटीज की दवा डाउनिल दे देगा और अगर पेशेंट उसे खा ले, तो ट्रीटमेंट न होने की हालत में उसका मरना लगभग तय होगा। इसलिए, पेशेंट्स और दवा दुकानदारों के इंट्रेस्ट में डॉक्टर्स को कैपिटल लेटर्स में दवाएं लिखनी चाहिए।

Problem दूर हो जाएगी

रिम्स में पैथोलॉजी के प्रोफेसर डॉ आरके श्रीवास्तव ने बताया कि चाहे हेल्थ मिनिस्ट्री हो या एमसीआई का मसौदा, उनकी कैपिटल लेटर्स में प्रिसक्रिप्शन लिखने के पीछे की भावना यही है कि डॉक्टर्स जो कुछ भी लिखें, साफ-साफ लेटर्स में लिखें। ऐसा इसलिए सोचा जा रहा है, क्योंकि मार्केट में आजकल मिलते-जुलते ब्रांड नेम की कई दवाएं हैं। अगर दवाओं के नाम क्लियर न हों, तो दवा दुकान में बैठे केमिस्ट्स के लिए प्रिस्क्रिप्शन पढ़कर सही दवा देना मुश्किल हो जाएगा। सारी कोशिश इसी प्रॉŽलम को दूर करने की है। अगर हेल्थ मिनिस्ट्री का कैपिटल लेटर्स में दवाओं के नाम लिखने का निर्देश आता है, तो पेशेंट्स की बेहतरी के लिए डॉक्टर्स को इसका स्वागत करना चाहिए।

ऐसा जरूर होना चाहिए

रिम्स के कार्डियोलॉजिस्ट डॉ हेमंत नारायण राय ने बताया कि यह सही है कि अगर डॉक्टर कैपिटल लेटर्स में दवाओं के नाम लिखते हैं, तो उन्हें थोड़ा ज्यादा वक्त लगेगा, लेकिन पेशेंट्स के इंट्रेस्ट में डॉक्टर्स को ऐसा जरूर करना चाहिए। इससे फायदा यह होगा कि पेशेंट्स के साथ-साथ केमिस्ट के लिए भी दवा का नाम पढऩा आसान होगा। वैसे भी यह इस्टैŽिलश्ड फैक्ट है कि एक एक्सपर्ट डॉक्टर को पेशेंट को देखने के लिए कम से कम 15 मिनट का समय देना चाहिए। ऐसे में अगर दो मिनट डॉक्टर को दवाएं लिखने में लगता हो, तो यह वर्दी है।

Capital letters में लिखने होंगे दवाओं के नाम

हेल्थ मिनिस्ट्री ने एक प्रपोजल को मंजूरी दे दी, तो डॉक्टर्स को प्रिस्क्रिप्शन में दवाओं के नाम कैपिटल लेटर्स में लिखने होंगे। एमसीआई ने उस नोटिफिकेशन के ड्राफ्ट को मंजूरी दे दी है, जिसमें डॉक्टर्स के लिए उनके प्रिस्क्रिप्शन को कैपिटल लेटर्स में लिखना कम्पल्सरी कर दिया गया है। हालांकि, यह ड्राफ्ट हेल्थ मिनिस्ट्री से मंजूरी के बाद ही इफेक्ट में आएगा। एमसीआई ने यह कदम इसलिए उठाया है, क्योंकि अक्सर ये कम्प्लेंट्स आती थीं कि डॉक्टर्स की लिखावट को केमिस्ट्स पढ़ नहीं पाते हैं और दवाओं के मिलते-जुलते नाम के कारण गलत दवाएं दे देते हैं। डॉक्टर्स की लिखावट को पढऩे का मुद्दा बरसों से विवादों में रहा है।

Time waste होगा

कांके रोड स्थित रेडियम कैंसर हॉस्पिटल के कैंसर स्पेशलिस्ट डॉ धीरज सिन्हा ने बताया कि कैपिटल लेटर्स में प्रिस्क्रिप्शन लिखने में नॉर्मल तरीके से लिखने में थोड़ा समय ज्यादा लगेगा। अभी नॉर्मल फ्लो में एक पेशेंट के लिए प्रिस्क्रिप्शन लिखने में अगर एक मिनट लगता है, तो कैपिटल लेटर्स में लिखने में शायद तीन मिनट लगेंगे। पर, इससे कोई खास असर नहीं पड़ेगा, क्योंकि जो डॉक्टर साफ-साफ लेटर्स में लिखते हैं, उनकी राइटिंग चाहे वह कैपिटल में हो या स्मॉल में, केमिस्ट्स आराम से पढ़ लेंगे।


Posted By: Inextlive