300 से ज्यादा डिलीवरी होती है जिला अस्पताल में हर महीने

230 से 300 नवजात पैदा होते हैं सालभर में सामान्य और ऑपरेशन से

4 से 5 बच्चे भी नहीं आ रहे हैं कंगारू मदर केयर यूनिट में

2 लाख 50 हजार रूपये का बजट शासन ने सेटअप के लिए किया था जारी

4 महीने बाद भी जागरूकता के अभाव में मरीज नहीं ले रहे लाभ

Meerut. जिला महिला अस्पताल में शुरू हुई कंगारू मदर केयर थेरेपी परवान नहीं चढ़ पा रही है. कंगारू यूनिट की स्थिति देखें तो अब तक यहां सिर्फ गिनती के बच्चों को ही रखा गया है. इसे लापरवाही कहें या जागरुकता का अभाव कि सेटअप लगे चार महीने बीत चुके हैं, लेकिन मरीजों को इसका लाभ मिल नहीं पा रहा है.

यह है स्थिति

जिला महिला अस्पताल में हर महीने 300 से ज्यादा डिलीवरी होती है. जिसमें सामान्य और अॅापरेशन से प्रसव होते हैं. जिनमें सालभर में 250 से 300 ऐसे नवजात पैदा होते हैं, जिन्हें कंगारू मदर केयर थेरेपी की जरूरत होती हैं. जबकि यूनिट का आंकड़ा देखें तो यहां महीने में चार से पांच बच्चे भी नहीं आ रहे हैं. अमूमन यूनिट खाली ही पड़ी रहती है.

2.5 लाख का सेटअप

महिला अस्पताल के नए विंग में तैयार वार्ड में ही कंगारू मदर केयर थेरेपी यूनिट का सेटअप लगाया गया है. शासन ने सेटअप के लिए ढाई लाख रूपये का बजट भी अस्पताल को जारी किया था. प्रदेश भर के सभी जिलों में एक ही रंग-रूप में इन्हें तैयार किया गया था. यूनिट को अलग बनाने के लिए इसमें थीम बेस्ड डिजाइन और पेंट कराया गया था. 6 स्पेशल बेड, चार स्पेशल कुर्सियां भी लगाई गई हैं. इसके अलावा इक्यूविलेटर आदि की भी व्यवस्था की गई है.

ऐसे मिलता है फायदा

कंगारू मदर केयर थेरेपी यूनिट प्री-मेच्योर और कुपोषित नवजातों को मौत के मुंह से बचाने के लिए वरदान साबित होता है. नौ महीने से पहले जन्मे नवजातों में इम्यूनिटी पावर बेहद कम होती है. वजन 1.80 से दो किलो तक होता है. साथ ही आक्सोपॉक्सिया व हाइपोथर्मिया की संभावना काफी बढ़ जाती है. देखभाल न हो तो 40 दिन के भीतर नवजात की मौत तक हो सकती है. ऐसे नवजातों को अगर मां की त्वचा का स्पर्श लगातार मिलता है तब उनके रिकवर होने के चांसेज कई गुना बढ़ जाते हैं. इस थेरेपी में मां कंगारू की तरह नवजात को हर वक्त खुद से चिपका कर रखती है. एक दिन में 6 से 8 घंटे मां अपने नवजात को कंगारू थेरेपी दे सकती हैं.

प्रसूताएं नवजात को पूरा समय नहीं दे पाती हैं. जिसकी वजह से कुछ देर के लिए ही बच्चों को यहां रखा जा रहा है. हालांकि हम लगातार महिलाओं को इसके बारे में जागरूक कर रहे हैं.

डॉ. मनीषा वर्मा, एसआईसी, जिला महिला अस्पताल

Posted By: Lekhchand Singh