-चाइनीज लाइटों झालरों के आगे फीका पड़ा कुम्भकारी कला

-अलोपीबाग, कीडगंज, अल्लापुर व बलुआघाट जैसी कुम्हार बस्ती में खुद को तपाकर दूसरों के लिए कुम्हारों ने बनाया दिया और कुल्हड़

ALLAHABAD: मिट्टी को तराश कर उसमें जान फूंकने की कला में इन्हें महारत हासिल है। अपनी मेहनत और हुनर से गीली मिट्टी को वे गणेश, लक्ष्मी, भगवान शिव जैसे तमाम देवी देवताओं की मूर्ति बना कर पूजने योग्य बना देते हैं। इतना कुछ करने के बावजूद न जाने क्यों, लक्ष्मी इनसे रूठी-रूठी सी हैं। जी हां, हम बात कर रहे हैं कुम्भकारों की।

करते हैं कड़ी मेहनत

शहर के अलोपीबाग, अल्लापुर व बलुआघाट की बस्तियों में कुम्हारों की संख्या अधिक है। रोज 17 से 18 घंटे कड़ी मेहनत के बावजूद वे इस काम से बमुश्किल दो जून की रोटी जुटा पाते हैं। आज चाइनीज झालरों और कैंडल मार्केट की शान बन गई है। मिट्टी के दीये की जगह अब लोग इन्हीं विद्युत चालित झालरों और दीये को पसंद करने लगे हैं। जिससे उनका कारोबार और कला दोनों ही चरमरा सी गई है।

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मिट्टी के कारीगरों पर रेट भारी

अलोपीबाग की कुम्हार बस्ती के लोग यह काम तीन पीढ़ी से करते आ रहे हैं। कहते हैं कि मार्च में मिट्टी की कीमत एक हजार रुपए प्रति ट्रैक्टर बढ़ गई है। पहले जो मिट्टी तीन रुपए ट्रैक्टर मिलती थी, आज वह चार हजार रुपए में है। ऐसी स्थिति में उन्हें मिट्टी के लिए भी इस बार काफी भटकना पड़ा। सावित्री देवी प्रजापति ने कहा कि मिट्टी की कीमत बढ़ने से मिट्टी के बर्तनों दीया व मूर्तियों के दाम को भी बढ़ाना मजबूरी बन गई। उनके अनुमान हैं कि दाम बढ़ने से भी इस बार मार्केट पर काफी असर पड़ेगा।

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नई पीढ़ी को नहीं जम रहा पुस्तैनी काम

शहर की कुम्हार बस्तियों में वर्तमान समय में एक हजार के आसपास परिवार पुस्तैनी काम से जुड़े हैं। अनिल व संजय प्रजापति ने बताया कि दो वर्ष पहले बिरादरी के तीन हजार लोग इस पुस्तैनी काम से जुड़े थे। मेहनत व लागत अधिक और कमाई कम देखते हुए ज्यादातर नई पीढ़ी के युवाओं का मन इस काम से हटने लगा है। वे गैर जनपद व प्रांत जा कर कंपनियों नौकरी करना इससे इससे बेहतर समझ रहे हैं।

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उम्मीद पर फिर गया पानी

कीडगंज के राजेश प्रजापति ने कहा कि माघ मेले के समय प्लास्टिक व पॉलीथिन पर रोक लगी तो पुस्तैनी कारोबार के बढ़ने की उम्मीद लगी थी। लेकिन चंद ही दिनों में थर्माकोल ने मार्केट पर कब्जा कर लिया। धीरे-धीरे फिर वही पॉलीथिन व प्लास्टिक के ग्लास व अन्य चीजें प्रयोग में आने लगीं।

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-अलोपीबाग, अल्लापुर, कीडगंज, बलुआघाट व रसूलाबाद की बस्तियों में करीब एक हजार लोग करते हैं पुस्तैनी कारोबार

-दीया और कुल्हड़ बनाने के लिए कुम्हार चायल के भगवतपुर और पडि़ला महादेव के पास से टै्रक्टर मिट्टी मंगाते हैं।

-2015 तक इसका कारोबार एक करोड़ के आसपास होता था। लेकिन पिछले वर्ष यह घटकर 50 लाख रुपए तक पहुंच गया।

-मिट्टी की कीमत बढ़ने की वजह से कुम्हारों ने प्रति सैकड़ा दिया 40 रुपए और प्रति सैकड़ा कुल्हड़ 50 रुपए कर दिया है।

Posted By: Inextlive