- किसी को भी अपना नेता चुनने की मजबूरी हुई खत्म

- पब्लिक को मिल चुका है नोटा का हथियार

- आज शुरू होगा हथियार का इस्तेमाल, तो कल कारगर होगा प्रयास

- राइट टू रिजेक्ट को स्टूडेंट्स ने बताया बेहतर

ALLAHABAD: दागदारों की वजह से लोकतंत्र पर खतरा है, सभी पार्टियां ऐसे किसी न किसी प्रत्याशी को मैदान में उतार रही हैं, जो दागी हैं। लेकिन अब नोटा आ गया है, गेंद पब्लिक के पाले में है, जिसे चुनना चाहें चुनें, नहीं तो सभी को रिजेक्ट करें। फ्राइडे को इलाहाबाद यूनिवर्सिटी के स्टूडेंट्स के बीच हुई बातचीत और चुनावी चर्चा के बीच से यही बातें निकल कर सामने आई। फुरसत के पलों में यूनिवर्सिटी के आर्ट फैकल्टी के मैदान में बैठे स्टूडेंटस के बीच लोकसभा चुनाव और 'नोटा' को लेकर ही डिबेट हुई।

प्रशांत मिश्रा- आज नोटा आया है, इसके पहले ख्00भ् में आरटीआई आया। राइट टू रिजेक्ट आया। सवाल उठता है आखिर ऐसा क्यों। जरूरत क्यों पड़ी।

गणेश शुक्ल - व‌र्ल्ड की टॉप क्00 यूनिवर्सिटी में इंडिया का कोई भी यूनिवर्सिटी नहीं आया। राइट टू एजुकेशन लागू हुआ, लेकिन इसका फायदा भी ज्यादा मिलता हुआ नहीं दिख रहा है।

अमिरत्न- मेरी समझ से नोटा, एक ऐसा हथियार है, जिसके माध्यम से हम राजनीतिक दलों को बदलाव के लिए चेता सकते हैं। उन्हें मजबूर कर सकते हैं कि वे अच्छे ईमानदार प्रत्याशी को ही मैदान में उतारें।

प्रिया जोहरी- मेरा मानना है कि पांच प्रतिशत ही यह कानून व्यवहार में आ पाएगा। क्योंकि लोगों को जानकारी ही नहीं है। म्0 प्रतिशत आबादी गांव में रहती है, जिसे नोटा की जानकारी नहीं है।

शिवेंद्र उपाध्याय- देखो, लोगों में अभी तक राजनैतिक जागरुकता काफी कम है। लोगों को यह जानकारी ही नहीं है कि कौन सही है और कौन गलत। राजनीतिक असमंजस की स्थिति बनी हुई है। राइट टू रिजेक्ट ऑप्शन क्या ठीक है?

शिवकुमार- चुनाव से पहले बातें तो बहुत होती हैं, लेकिन आज भी लोग मोदी, मुलायम, सोनिया के नाम पर ही वोट करते हैं।

प्रिया- देखो, चुनाव मैदान में कोई ईमानदार व कर्मठ प्रत्याशी आना ही नहीं चाहता है, क्योंकि संघर्ष वाले प्रत्याशी को जनता वोट नहीं करती है।

पंकज मिश्रा- प्रत्याशियों को रिजेक्ट करने का अधिकार तो पहले से हैं, लेकिन उसका प्रॉसेस लंबा था। फार्म भरना पड़ता था।

रश्मि गुप्ता- सही कहा, नोटा लागू होने के बाद कोई टिटिम्मा नहीं, बस मतदान केंद्र पर जाओ, बटन दबाओ और हो गया प्रत्याशी रिजेक्ट।

विनय मिश्रा- परिवर्तन ही संसार और विकास का नियम है। नोटा परिवर्तन के लिए ही लागू किया गया है, अब पब्लिक के पाले में गेंद है, वह किस तरह से इसका इस्तेमाल करती है।

अवनीश तिवारी- विकास के मुद्दे पर मतदान करने वालों की संख्या कम ही दिखती है। कुछ लोगों में जातीयता की भावना भरी रहती है। वे प्रत्याशी नहीं जाति देखते हैं।

प्रिया- नोटा से अब बाहुबली, अपराधी किस्म के नेता, संसद तक नहीं पहुंच पाएंगे।

विनय मिश्रा-पहले हम किंकर्तव्यविमूढ़ थे, अब हमारे पास रास्ता है।

प्रशांत- जिस तरह रास्ता विहीन गांव में किसी तरह एक पगडंडी बनाई जाती है, फिर धीरे-धीरे आवागमन शुरू होता है। अब नोटा की पगडंडी बनने के बाद लोगों को रास्ता और फिर हाईवे बनाना है।

रोशन यादव- हमें ऐसे सांसद नहीं चाहिए, जो संसद में मिर्च फेंके और गाली-गलौज करें।

विनय - कोई नृप होए, हमें बिना सोचे समझे किसी को भी वोट नहीं करना चाहिए।

अखिलेश- आज इस देश के नेता तो गजब हो गए हैं, पहले आंखें छीनते हैं, फिर चश्मा देते हैं। क्योंकि वे यह बताना चाहते हैं कि अहम ब्रह्मा, जो हम चाहते हैं वही करते हैं।

अनूप कुमार- मैं चाहता हूं कि चुनाव में जो भी प्रत्याशी आए और चुन कर संसद तक पहुंचे वह साफ सुथरा हो।

निशांत- साफ सुथरा प्रत्याशी क्या आसमान से लाओगे। जब राजनीतिक दल ऐसे प्रत्याशी को टिकट नहीं देंगे तो क्या करोगे।

रॉबिन कुमार- मजबूर करेंगे कि वे ऐसे प्रत्याशी को लाएं। नोटा, नेताओं को मजबूर करेगा। आज नहीं तो कल राजनीतिक दलों को मजबूर होकर ऐसा करना पड़ेगा।

उत्कर्ष- आज नहीं तो कल बदलाव आएगा। जैसे-जैसे समय बीतेगा जागरुकता बढ़ेगी। कुछ किए बगैर जय-जय कार नहीं होती, कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती।

उत्तम त्रिपाठी- पिछले दस सालों में कई कानून बने हैं, उसकी जानकारी पब्लिक को नहीं है। नोटा की जानकारी कैसे होगी।

सूर्य कुमार- लोकसभा चुनाव में नोटा से पहल तो हो रही है, लेकिन सरकार को ग्राम प्रधानी, जिला पंचायत और नगर निकाय के चुनाव में भी नोटा लागू करना चाहिए। ताकि सभी को इस कानून की जानकारी हो सके।

प्रशांत- देखो शुरुआत कहीं से भी की जा सकती है। और ये शुरुआत बेहतर है।

प्रिया- अब सिक्का जनता के पाले में है। सुप्रीम कोर्ट अपराधियों को रोकना चाहती है। लेकिन पार्टियां नहीं चाहतीं कि बाहुबली नेता चुनाव से बाहर रहें। अब पब्लिक को फैसला लेना है, कि क्या करना है।

Posted By: Inextlive