Gorakhpur : अगर डीडीयू में कुछ साल पहले बनना शुरू हुआ सिंडर ट्रैक एथलीट्स की प्रैक्टिस के लिए बनाया जाने वाला एक खास तरह का ट्रैक अधूरा नहीं छोड़ा जाता तो शायद आज सिटी से भी पीटी ऊषा और सुधा सिंह जैसे ओलम्पियन निकलते. लेकिन यूनिवर्सिटी में अधिकारियों के फेरबदल में सिंडर ट्रैक ने बीच राह में दम तोड़ दिया. आज कंडीशन यह है कि यह ट्रैक मैदान की मिट्टी में खो गया है पता ही नहीं चलता कि यह है कहां? डीडीयू में हुई इस लापरवाही में न सिर्फ लाखों रुपए वेस्ट हुआ बल्कि बहुत से एथलीट्स का सपना भी टूट गया.

पहले फेज के लास्ट स्टेप में रुका ट्रैक
एथलेटिक एसोसिएशन से पूर्व में जुड़े कुछ टीचर्स से मिली जानकारी के अनुसार यूनिवर्सिटी में 2008-09 के दौरान सिंडर ट्रैक का काम शुरु हुआ था। यह ट्रैक एथलीट्स के प्रैक्टिस करने के लिए था। उस समय केमेस्ट्री डिपार्टमेंट के प्रो। एके जैन डीडीयू एथलेटिक एसोसिएशन के प्रेसिडेंट थे। ट्रैक के लिए यूजीसी से मिली मर्ज्ड ग्रांट में लगभग 40 लाख रुपए शामिल थे। तत्कालीन वीसी प्रो। गजभिए ने ट्रैक बनवाने के लिए पहली इंस्टॉलमेंट लगभग 7 लाख, 35 हजार रुपए दी। यह ट्रैक 400 मीटर का बनाया जाना था जिसमें से फर्स्ट फेज में 110 मीटर का कॉन्सट्रक्शन शामिल था। इस 110 मीटर के ट्रैक को बनाने के लिए टोटल 5 लेयर पड़नी थी। इनमें से 4 लेयर बनवाने के बाद लास्ट लेयर में जब सिंडर, जीरो नंबर की गिट्टी और 3 इंच मड की लेयर का यूज होना था तब इसका काम रुक गया। उस समय यह बताया गया कि सिंडर अवलेबल नहीं है।
चेयर पर्सन चेंज होने में फंसा ट्रैक
कुछ ही समय के बाद प्रो। गजभिए की जगह तत्कालीन आईएएस ऑफिसर पाीके महांति को यूनिवर्सिटी के वीसी का चार्ज मिला। दूसरी तरफ एथलेटिक एसोसिएशन के प्रेसिडेंट का चार्ज भी प्रो। एके जैन से लेकर प्रो। सुग्रीव नाथ तिवारी को दे दिया गया। एथलेटिक्स एसोसिएशन से पूर्व में जुड़े अधिकारियों ने बताया कि चेयर पर्सन्स के इस चेंज ने ही ट्रैक को हमेशा के लिए रोक दिया। न तो कभी इसके बाद सिंडर की अवेलबिलिटी देखी गई और न ही ट्रैक को बनवाने की दूसरी इंस्टॉलमेंट लगभग 6 लाख रुपए ही दी गई।
पीटी ऊषा के कोच ने दिया था सजेशन
इस ट्रैक को बनवाने का सजेशन अपनी एक विजिट के दौरान अर्जुन अवार्ड विनर फेमस एथलीट पीटी ऊषा के कोच जेएस भाटिया ने दिया था। जेएस भाटिया उस समय डीडीयू में हुए खिलाड़ियों के एक सम्मान समारोह में शिरकत करने आए थे। उन्होंने कहा था कि वैसे तो प्रैक्टिस के लिए सिंथेटिक ट्रैक होना चाहिए लेकिन क्योंकि उसकी कॉस्ट और मेन्टेनेन्स अधिक है इसलिए सिंडर ट्रैक बनवाया जा सकता है। अगर यह ट्रैक बन जाएगा तो एथलीट्स को प्रैक्टिस में आसानी होगी। उन्हीं के सजेशन को ध्यान में रखते हुए ट्रैक को बनवाने का प्रोजेक्ट बनाया गया।
मिट्टी में मिल गया सिंडर ट्रैक
लाखों रुपए की लागत से बनना शुरू हुआ यह ट्रैक डीडीयू की लॉ फैकल्टी के सामने स्थित मैदान में बनाया जा रहा था। इसके लिए लगभग 2 फिट गहरा गढ्ढा खोदा गया था। लेकिन आज यह हालत है कि ढूंढने से भी इस ट्रैक का नामोनिशान नहीं मिलता। मिली जानकारी के अनुसार यूपी साइंस कांग्रेस की जब तैयारियां चल रही थीं उस समय इस ट्रैक को भी मिट्टी से पाट दिया गया और पूरा मैदान पहले की तरह समतल हो गया।
सिंडर ट्रैक से सिंथेटिक ट्रैक बनाना आसान
सिंडर ट्रैक बनाने के लिए 2008-09 में एक टेक्निकल टीम भी बनाई गई थी। इस टीम में शामिल एक मेम्बर ने बताया कि सिंडर ट्रैक का एक फायदा यह भी था कि इसकी ऊपर की लेयर को चेंज करके सिंथेटिक ट्रैक में कनवर्ट करने में आसानी रहती है। अगर यह ट्रैक बना होता तो फ्यूचर में इसे सिंथेटिक ट्रैक में भी कनवर्ट करना आसान होता। वर्तमान में एथलेटिक एसोसिएशन से जुड़े अधिकारियों से जब सिंडर ट्रैक के बारे में पूछा गया तो उन्होंने बस इतना ही कहा कि यह ट्रैक जब बनना शुरू हुआ उसके बाद से अब तक चेयर पर कई लोग चेंज हो चुके हैं। इसलिए वह इस बारे में कुछ नहीं कह सकते।
सिंथेटिक ट्रैक मेडल के लिए जरूरी है। लेकिन अगर सिंडर ट्रैक हो तो भी 50 परसेंट तक मेडल के चांस बढ़ जाते हैं। सिटी में कहीं भी सिंथेटिक और सिंडर ट्रैक नहीं है इसलिए एथलीट्स को प्रैक्टिस में प्रॉब्लम होती है।
मो। अख्तर, कोच, रीजनल स्टेडियम, एथलेटिक्स

 

report by : shailesh.arora@inext.co.in

Posted By: Inextlive