- संविधान ने दिए आम आदमी को कई अधिकारी

- हर रोज नागरिक कर्तव्य का करते है हम उल्लघंन

LUCKNOW: आज गणतंत्र दिवस है। आज ही के दिन म्भ् साल पहले हमारे संविधान की स्थापना हुई थी। जिसमें, हमें समानता का अधिकार, अभिव्यक्ति का अधिकार समेत कई अधिकार मिले हैं लेकिन हम आज तक अपने कर्तव्यों से विमुख हैं। हम अपने-अपने अधिकारों की बात करते और स्वतंत्रता की दुहाई देते हैं। फंडामेंटल राइट का हवाला देते हैं लेकिन यह कितना सही है। क्योंकि, जिन अधिकारों की दुहाई देकर हम स्वतंत्रता से जीते हैं। क्या वह दूसरे के अधिकारों का हनन करना नहीं है। प्राइवेसी की बात आती है तो हम मानवाधिकार का डंका पीटते हैं और दूसरे की प्राइवेसी में झांकने से नहीं चूकते। क्या ऐसे ही तंत्र के गण है? लखनऊ में कई ऐसे पॉश इलाके में जहां दूसरों की प्राइवेसी को भूल कर हम अपने नैतिक अधिकार की दुहाई देकर वह काम करते हैं जिसे देखकर आम आदमी भी मुंह फेर लेता है।

नैतिक अधिकार का उठाते गलत फायदा

एक तंत्र के गण तो हजरतगंज चौराहे पर ही रोड किनारे अस्थाई यूरिनल सेंटर पर खड़े हो गए। उन्हें यह तक नहीं नजर आया कि उनके ठीक ऊपर सीएम अखिलेश यादव की होर्डिग लगी थी और मेन रोड पर ट्रैफिक चल रहा था। ये तंत्र के ण यहीं बेकाबू नहीं होते बल्कि कुछ दूर नरही मार्केट के पास बने लेडीज बाथरूम के बगल में ही एक सज्जन अपने नैतिक अधिकार को जताते हुए खड़े हो गए। उन्हें इस बात का भी अहसास नहीं था कि जहां वह यूरीन कर रहे है वह लेडीज बाथरूम है। उनकी वजह से वहां आने-जाने वालों की न केवल प्राइवेसी इफेक्ट हो रही थी बल्कि उनके कृत्य से हमारी सोसाइटी भी शार्मिदा होती हैं। ये ऐसे तंत्र के गण है जो हर रोज किसी भी गली मोहल्ले या मेन रोड पर अपने नैतिक अधिकार का हवाला देकर दूसरों के अधिकारों का हनन करते नजर आ जाते है।

कितना करते हैं कर्तव्य का पालन?

संविधान ने अधिकार तो दिया लेकिन क्या हम नागारिक कर्तव्य पर खरे उतरते हैं। इस सवाल का जवाब किसी के पास नहीं है क्योंकि हम केवल एक दूसरे पर कटाक्ष और टिप्पणी कर अपनी जिम्मेदारी पूरी कर लेते हैं। सिटी के कई ऐसे चौराहे है जहां नो पार्किग और नो स्टॉपिंग का नोटिस बोर्ड लगा है लेकिन उसके बावजूद हम वहीं पार्किग करते है। दुहाई देते हैं कि यह हमारा नैतिक अधिकार है। अगर यह नैतिक अधिकार है तो नागरिक कर्तव्य क्या है?

Posted By: Inextlive