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एक बात क्लियर है कि गवर्नमेंट सेक्टर में जॉब्स नहीं हैं. दूसरी बात यह है कि इस सेक्टर में भर्तियां निकाली जाती हैं तो उसमें कितना समय लगेगा, इसकी गारंटी नहीं. युवाओं की यह पीड़ा मंगलवार को सामाजिक एकता परिषद के मुख्यालय में दैनिक जागरण-आई नेक्स्ट के मिलेनियल्स स्पीक के दौरान उठीं. रोजगार से संबंधित बातें करते हुए युवाओं ने दो टूक कहा कि संघ लोक सेवा आयोग की तर्ज पर ही एसएससी, बैंक पीओ व रेलवे सहित अन्य भर्ती परीक्षाओं का विज्ञापन निकालने के समय ही उसके पूरे होने का भी टाइम टेबुल जारी कर दिया जाए.

तीन महीने में पूरा करने का बनाएं कानून

डिस्कशन के दौरान वन डे एग्जाम की तैयारी कर रही युवाओं ने खुलकर अपनी बात रखी. उन्होंने बताया कि गवर्नमेंट सेक्टर में जो थोड़ी बहुत भर्तियां निकाली जाती है उसमें पारदर्शिता नहीं होती है. ऐसा काकस काम करता है कि धन की उगाही के लिए युवाओं के सपनों के साथ खिलवाड़ करता है. नकल उद्योग का दायरा बढ़ने की वजह से एकेडमिक मेरिट का स्तर बेकार हो जाता है. सरकार को ऐसा कानून बनाना चाहिए कि केन्द्र हो या राज्य सरकारों की नौकरी की प्रक्रिया को दो से तीन महीने में पूरा करा लिया जाए. आईएएस और पीसीएस परीक्षा के पैटर्न के आधार पर चपरासी तक की भर्ती में लिखित परीक्षा व साक्षात्कार की व्यवस्था की जानी चाहिए.

कड़क मुद्दा

एक भी सरकारी विभाग ऐसा नहीं है जहां पर भ्रष्टाचार की बू नहीं आती है. महिला सुरक्षा हो या क्वॉलिटी एजूकेशन या बेहतर स्वास्थ की बातें हों. हर जगह योजनाओं के प्रचार-प्रसार पर ही करोड़ों रुपया खर्च किया जाता है. छात्राओं ने बताया कि हमेशा सुनती रहते हैं कि देश की आधे से अधिक आबादी गांवों में रहती है? क्या कभी किसी सरकार ने योजनाओं के प्रचार-प्रसार की मॉनीटरिंग के लिए गांवों का रुख किया है. कितने लोगों को योजनाओं का लाभ मिला इसका रिकार्ड बनाया जाता है?

मेरी बात

इस सरकार से बहुत सी उम्मीदें थी कि काला धन वापस आएगा, भ्रष्टाचार पर प्रहार होगा और रोजगार के असीमित अवसर उपलब्ध कराए जाएंगे. इसी को ध्यान में रखते हुए जनता ने पूरा साथ दिया था. आज देख रहा हूं कि देश आतंकवाद की प्रयोगशाला बन गया है. देश का धन लूटकर लोग विदेश भाग गए हैं. डिजिटल इंडिया की बातें की जाती हैं लेकिन उसके लिए पकौड़ा को रोजगार का साधन बताया जाता है.

-अजितेश पांडेय

सतमोला खाओ, कुछ भी पचाओ

आतंकवाद के खिलाफ जब भी कोई जांबाज शहीद होता है तो वह किसी किसान का बेटा ही होता है. क्या कभी किसी बिजनेसमैन या जनप्रतिनिधियों के बेटे के शहीद होने की खबर सुनाई पड़ती है? ऐसे ही प्रतिनिधि जो अलग-अलग पार्टियों में हैं, जहर फैलाने का काम कर रहे हैं. उनकी सोच इंडियन आर्मी के विपरीत दिखाई देती है.

कॉलिंग

एकेडमिक मेरिट से ऐसे युवाओं को निराशा हाथ लगती है जो मेहनत के दम पर भविष्य बनाने का सोचते हैं. इसका सबसे बड़ा उदाहरण संघ लोक सेवा आयोग है. यहां प्रतिभाएं अपने मेहनत से सफलता हासिल करती हैं. सभी चरण समयबद्ध तरीके से पूरा किया जाता है और कभी भी परीक्षाओं में धांधली की शिकायत नहीं सुनने को मिलती है. क्या इस तरह की व्यवस्थाएं स्टेट लेवल की परीक्षाओं में नहीं की जा सकती है.

ओपी शुक्ला

देश में महिला सशक्तिकरण की बातें बहुत होती हैं. उनकी सुरक्षा के लिए योजनाएं चलाई जाती हैं. क्या इसका गांवों में असर दिखाई देता है. इसके बाद भी समाचारों में अक्सर फलां जगह पर छेड़छाड़ और अत्याचार की खबरें दिखाई देती हैं. बड़े शहरों में घटना होती है तो उस पर अभियान चलाया जाता है. आजादी की बातें होती हैं लेकिन सोशल मीडिया महिलाओं या लड़कियों की सुरक्षा व आजादी के मुद्दे पर सिर्फ गलत चीजें परोसता है.

अनीता भीम

ऐन चुनाव के वक्त एयर स्ट्राइक हुई है तो प्रत्येक राजनैतिक दल अपने-अपने हिसाब से उसे कैश कराने में जुटे हुए हैं. एक बार भी किसी दल ने यह नहीं सोचा कि अपने देश में आतंकवादी घटनाओं को कैसे समाप्त किया जाए. एक-दूसरे को नीचा दिखाने के चक्कर में सभी दल देश की सुरक्षा के साथ खिलवाड़ कर रहे है. जबकि देश की जनता इंडियन आर्मी के साथ एकजुट होकर खड़ी है. चाहे सर्जिकल स्ट्राइक के समय या कश्मीर में हो रहे आतंकी हमले के समय.

संजय यादव

गवर्नमेंट सेक्टर में जॉब नहीं है लेकिन बातें स्वरोजगार की होती हैं. स्वरोजगार के लिए लोने लेने के चक्कर में बैंक पब्लिक को इधर-उधर टहलाते हैं. क्या किसी सांसद ने कभी अपने क्षेत्र में इंडस्ट्री लगाने का काम किया है. अगर ऐसा किया गया होता तो प्राइवेट सेक्टर में जिसकी जैसी योग्यता उसको वैसा काम मिल जाता. दुर्भाग्य है कि ऐसी स्थिति नहीं बन पाती है बस पब्लिक को धर्म, जाति के तराजू से तौलने का काम होता है.

तारुतोष साहू

जब तक देश की राजनैतिक पार्टियों में रुपए लेकर टिकट देने की परंपरा चलती रहेगी तब तक विकास की बात करना बेमानी साबित होगी. चुनाव जीतने के बाद जो मंत्री या जनप्रतिनिधि बन जाता है वह सबसे पहले अपने आपको मजबूत करता है. यह सिलसिला किसी एक पार्टी में नहीं बल्कि सभी में दिखाई देता है. वर्तमान स्थिति में इस पर अंकुश लगना भी संभव नहीं हो पाएगा.

शशांक ओझा

शिक्षा विभाग में सबसे ज्यादा भ्रष्टाचार है. अक्सर यह देखा जाता है कि जिनके भरोसे क्वॉलिटी एजुकेशन का दम भरा जाता है वह शिक्षक राजनीति करने लगता है या दूसरे कार्यो में व्यस्त हो जाता है. इसकी मॉनीटरिंग किसी भी लेवल पर इसलिए संभव नहीं हो सकती है क्योंकि इनका पूरा काकस एकजुट होकर काम करता है.

इंद्रपाल सिंह

गवर्नमेंट सेक्टर की जॉब में पारदर्शिता घटती जा रही है. इसकी वजह से युवाओं का भरोसा टूट रहा है. सही समय से परीक्षाएं नहीं होती हैं और अगर हो गई तो मामला कोर्ट में चला जाता है. सिर्फ दावे बड़े-बड़े किए जाते हैं. जबकि देश में बेरोजगारों की फौज बढ़ती जा रही है उसमें भी आधे से अधिक युवा हैं. जिनकी उम्र निकल जाती है लेकिन नौकरी नहीं मिल पाती है.

सरिता चौरसिया

आतंकवादियों को मुंहतोड़ जवाब देने के लिए एयर स्ट्राइक बहुत जरूरी थी. लेकिन इस स्ट्राइक की जद में ऐसे-ऐसे मुद्दे जमीन में दब गए जिनका सीधा संबंध युवाओं, गांवों के किसानों की समस्याओं से जुड़ा हुआ है. एक भी राजनैतिक दल ऐसा नहीं है जो समस्याओं का समाधान करे हर पार्टी का लक्ष्य सिर्फ सत्ता हासिल करना रह गया है.

रफीक अहमद

राजनैतिक दलों का सबसे बड़ा हथियार सोशल मीडिया हो गया है. आसानी से अपनी अच्छी और दूसरी पार्टियों की गलत नीतियों को सेकेंडों में पहुंचाया जाता है और उसे खूब वायरल किया जाता है. इस पर अंकुश लगाने के बजाए पार्टियां जाति, धर्म और क्षेत्र के हिसाब से अपनी-अपनी गोटियां सेट करने में लगी रहती हैं.

रमजान अली खां

देश में राजनीति का स्तर घटिया हो गया है. पार्टियां अपने घोषणापत्र में कुछ कहती हैं और काम कुछ और ही करती हैं. यह सिलसिला वर्षो से चलता आ रहा है. जनता को सिर्फ वोट लेने का साधन बनाकर रख दिया गया है. आम आदमी के हित में देश में कार्य किया गया होता तो आज गरीबी समाप्त हो गई होती लेकिन ऐसा आगे भी संभव नहीं है.

नीरज सरोज

Posted By: Vijay Pandey