Gorakhpur : आज जरा फ्लैश बैक में जाते हैं. 12 दिन पहले. नवरात्र का पहला दिन यानी प्रथमा. सिटी में जगह-जगह नवरात्र की धूम होती है. पंडाल सजते हैं. मां के आगमन के लिए जयकारे लगते हैं और 6 दिन बाद आती है षष्ठी. जगत जननी दुर्गा मां अपने निर्माण स्थल से उठकर पंडालों में विराजती है. सुबह शाम आरती में हजारों लोगों की भीड़ होती है. मां को हर दिन अलग-अलग वस्त्रों से सजाया जाता है. यूं मानो पूरे सिटी में आस्था की गंगा बह निकलती है. जहां भी खड़े हो कानों में मां के जयकारों के अलावा कुछ भी सुनने को नहीं मिलता. फिर आती है विजयदशमी. मां को फिर सजाया जाता है. ट्रैक्टर ट्राली ट्रक से राजघाट पुल लाया जाता है. इसके बाद वह होता है जो संस्कृति के नाम पर शायद कलंक है. मां को पुल से नीचे ऐसे फेंका जाता है कि मानो 9 दिन के वह जयकारे झूठे थे वह श्रद्घा फरेब थी या यह कहे कि मां भक्तों पर बोझ थी. यह कोई कहानी नहीं हकीकत है. हर साल की तरह इस साल भी यह कहानी गोरखपुर में मंडे और ट्यूजडे को दोहरायी गई. मां की मूर्तियों को पुल के नीचे भक्तों ने कुछ इसी अंदाज में फेंका.


शास्त्रों में विसर्जनशास्त्रीय विधि के अनुसार, मूर्ति पंच महाभूतों से बनी हुई होती हैं। इसलिए पंच महाभूतों में विलीन कर देना ही मूर्ति विसर्जन कहलाता है। शास्त्रों में मूर्ति के विसर्जन की एक प्रक्रिया है। फिर मूर्ति चाहे दुर्गा मां की हो या गणेश भगवान की। भक्तगण मूर्ति को जल में लेकर उतरते हैं और उसे धीरे-धीरे जल में अर्पित कर देते हैं। विसर्जन के दौरान इस बात का विशेष ध्यान रखा जाता है कि मूर्ति खंडित न हो।यहां होते हैं विसर्जन- स्थल        मूर्तियांराजघाट पुल     1800महेसरा पुल      200 डोमिनगढ़      100 दुर्गा प्रतिमा समिति की बैठक से मिले आंकडें़ के मुताबिकसिटी में नहीं है विसर्जन का इंतजाम


आई नेक्स्ट ने जब पुल से मूर्तियों के फेंकने के पीछे की कहानी जानी तो मामला चौंकाने वाला निकला। मां के हजारों श्रद्घालुओं ने बताया कि पुल से फेंकना उनकी मजबूरी है। चूंकि सिटी में एक भी विसर्जन स्थल नहीं है। राजघाट पुल के नीचे जाकर नदी में उतरकर विसर्जन करना जोखिम भरा होता है। यही कारण है पुल से ही मूर्ति फेंकर विसर्जन प्रक्रिया पूरी हो जाती है। जमकर होती है लूटपाट

राजघाट पुल पर मां के अपमान के साथ-साथ लूटपाट भी होती है। आपको यह सुनकर हैरत हो रही होगी लेकिन, गोरखपुर में यह हर साल होता है। इस साल भी मंडे-ट्यूजडे को पुल के नीचे कुछ नाव वाले घूम रहे थे। जब हमने इन नाववालों को देखा तो लगा शायद ये पुल से नीचे गिरने वालों को बचाने के लिए है। लेकिन, मामला कुछ और ही था। इन्हें लोगों का नहीं मूर्ति के गिरने का इंतजार था। जैसे ही मूर्ति नीचे आती थी, तो मूर्ति के शरीर पर लगे आभूषण और अन्य सामानों को यह लूटकर अपने नाव में रख लेते। यही नहीं हजारों श्रद्घालु मां के इस घोर अपमान को भी तामशाचीन बने देख रहे थे। 60 के दशक में मूर्ति विर्सजन राजघाट पुल के नीचे जाकर किया जाता था, लेकिन उसके बाद से यह प्रथा समाप्त हो गई। हम लोगों ने यह प्रस्ताव रखा था कि प्रशासन नाव की व्यवस्था कर दे तथा अपने आदमी रखकर विसर्जन कराए, लेकिन कोई सहयोग न मिला। पुल से सीधे मूर्ति फेंकना मां का अपमान है। ऐसा नहीं करना चाहिए। एक तो नौ दिन धूमधाम से मां की पूजा करते हैं लेकिन जिस प्रकार से विर्सजन किया जाता है वह निंदनीय है। एम के चटर्जी, अध्यक्ष, बंगाली समिति दुर्गाबाड़ी

विसर्जन का मतलब जल समाधि देना, जल में स्थान देना। मां की विदाई में श्रद्धा से दुखी होकर जल में प्रवाह करना। लेकिन यहां तो मूर्तियों की फेंका-फेंकी होती है। ऐसा लगता है कि प्रतिमाओं को विसर्जित करने के लिए कॉम्पटीशन चल रहा है। यहां पर मूर्तियों का अनादर नाचने गाने से शुरू हो जाता है। लोग खुशी मनाते हुए विसर्जन करने जाते हैं जबकि मां की प्राण प्रतिष्ठा में खुशी का माहौल होता है। विसर्जन तो दुख की घड़ी है। ऐसे में भी लोग नाचते- गाते, डीजे बजाते पहुंच जाते हैं। - पंडित नरेंद्र उपाध्याय, ज्योतिषाचार्य नदियों में फेंकना कहां तक उचित है मूर्तियों को पुल से नीचे फेंकना बिलकुल गलत है। नदियों में मूर्तियों को फेंकना अशास्त्रीय है। मूर्तियों को जलाशय में प्रवाहित किया जाना चाहिए या फिर भूमि समाधि दे देनी चाहिए। इससे पर्यावरण को भी लाभ मिलेगा और आस्था पर कुठारघात हमला नहीं होगा। -आचार्य पंडित शरद चंद्र मिश्र  हमने इसके बारे में विचार किया है। मूर्ति विसर्जन के लिए इंतजाम होते ही पुल पर जाली भी लगाई जा सकेगी। इसके लिए मैं पूरी कोशिश कर रहा हूं। अगले साल यह नौबत नहीं आएगी। रवि कुमार एनजी, डीएम report by : ashwani.pandey@inext.co.in

Posted By: Inextlive