Meerut : घर में कोई छोटी-मोटी पार्टी हो शादी हो या फिर हो कोई जलसा. एक चीज जो हर जगह पर मौजूद होती है वो है खाने-पीने के लिए डिस्पोजेबल आइटम्स का यूज.


बर्तन धोने के बजाए डिस्पोजेबल आइटम्स से काम चलाया जा रहा है। इस्तेमाल के बाद इन्हें बाहर कचरे में फेंक दिया जाता है। ये न तो गलेगा और न ही नाले में बह पाएगा। लोगों को पता है कि इससे सेहत के साथ नेचर को भी नुकसान हो रहा है, इसे यूज किया जा रहा है। पूरे शहर में दुकानें


मेरठ की बता की जाए तो परतापुर इंडस्ट्रीयल एरिया में कुछ कारखानों में डिस्पोजेबल ग्लास, प्लेट जैसे आइटम्स बनाई जाती है। इसके अलावा गली मोहल्लों में इसके कितने कारखाने है इसकी जानकारी किसी को नहीं है, क्योंकि इसे लगाने के लिए कोई लाइसेंस नहीं बनवाना पड़ता। वहीं मार्केट की बात की जाए तो, इसके चार बड़े डीलर शहर दाल मंडी में और एक बड़ा डीलर सदर दाल मंडी में है। इनके अलावा रिटेल की तो अनगिनत दुकाने हैं। आज की डेट में ये सामान हर दुकान पर मिलता है। कुछ लोग साइकिल और स्कूटर पर भी इसे बेचते हैं।लाखों का कारोबार

शहर में रोज 25 लाख रुपए की डिस्पोजेबल आइटम्स बिकती हैं। वहीं ये आंकड़ा शादी के सीजन में एक करोड़ रुपए तक पहुंच जाती है। शहर में रोज पांच लाख के दोने और दस लाख के ग्लास बिकते हैं। बाकी सेल प्लेट्स, चम्मच वगैरह की है। इनमें से 80 परसेंट माल इंडियन बिकता है। बाकी 20 परसेंट माल चाइना का होता है।Very dangerousडिस्पोजेबल चाय और पानी के ग्लास वगैरह का यूज करने से बीमारी होती है। ये जानते हुए भी पब्लिक इन्हें यूज कर रही है। इससे डाइजेशन सिस्टम बिगड़ता है। पेट में पथरी की शिकायत बढ़ती है। वहीं जो मजदूर इन कारखानों में काम करते हैं उनको कैंसर जैसी गंभीर बीमारी भी होती है। पानी के ग्लास जो पैकिंग में आती हैं वो सिंथेटिक पॉलीमर होता है। पानी या कोल्ड ड्रिंक की बोतल ‘पैट’ से बनी होती है। पैट मैटिरियल की बॉटल फिर एक बार से ज्यादा यूज करने पर आपकी सेहत बिगाड़ सकती है। इन बॉटल पर भी लिखा होता है कि यूज करने के बाद इन्हें क्रश करके फेंक दें। हाइड्रोलाइसेस होने पर बॉटल की प्लास्टिक का कुछ केमिकल पानी में घुलने लगता है। वहीं इसे डिस्पोज भी नहीं किया जा सकता। होता है toxic

डिस्पोजेबल दो तरह के होते हैं। एक तो चाय वाले ग्लास और दूसरे कॉफी वाले ग्लास। इन दोनों में ही पालीस्टाइरीन होता है। इनकी प्रोसेसिंग के दौरान इनमें कुछ टॉक्सिक केमिकल केल्शियम कार्बोनेट, प्लास्टीसाइजर, फिलर डाले जाते हैं। जिनसे इनको ब्लो किया जा सके और इनकी कॉस्ट कम की जा सके। इसे ब्लोइंग एजेंट कहते हैं। इनमें से कार्बन डाय आक्साइड और अमोनिया गैस रिलीज होती है। इस दौरान जो मजदूर वहां पर काम करते हैं उन्हें कैंसर समेत कई गंभीर बीमारी होती हैं। क्या है नुकसान-बिगड़ता है ड्रेनेज सिस्टम-जमीन में दबाने से फर्टीलिटी खत्म होती है।-जलाने से पॉल्यूशन बढ़ता है।-पेट संबंधी बीमारी होना।-पथरी बनना।"कुछ डिस्पोजेबल ग्लासेज पेपर से बनाए जाते हैं। ये पेड़ों से बनते हैं। इससे हम एक तो पेड़ों के कटान को बढ़ावा मिलता है, जिससे कार्बन डाय आक्साइड तो बढ़ती ही है। साथ ही इन ग्लासेज पर जो पेंटिंग होती है। उसके कारण ये रिसाइकल भी नहीं हो पाते हैं। इनकी जगह पर सेरामिक और मिट्टी के ग्लास, कप वगैरह यूज होने चाहिए."प्रियंका  शर्मा, सीनियर लेक्चरर, एनवायरमेंटल साइंस, राधा गोविंद इंजीनियरिंग कॉलेज"ये बहुत खतरनाक होते हैं इनको यूज नहीं करना चाहिए। ब्लोइंग एजेंट टॉक्सिक होते हैं। प्लास्टिक की बॉटल को भी कभी दूबारा यूज नहीं करना चाहिए। वहीं जो मजदूर इन कारखानों में काम करते हैं उनको कैंसर हो जाता है."डॉ। कृष्ण दत्त, एसिस्टेंट प्रोफेसर, डिपार्टमेंट ऑफ पॉलीमर साइंस भास्कराचार्य कॉलेज ऑफ एप्लाइड साइंसsandeep.tomar@inext.co.in

Posted By: Inextlive