Patna: पटना देश और दुनिया के उन शहरों में शामिल है जहां आमतौर पर लोगों को ड्रिकिंग वाटर की कमी का सामना नहीं करना पड़ता. लेकिन सवाल सिर्फ पानी की अवेलेबिलिटी का नहीं है बल्कि इसकी क्वालिटी का भी है.


TDS का बढ़ता लेवल इसमें सबसे इंपॉर्टेंट सवाल है कि जो पानी पटनाइट्स पी रहे हैं, वो कितना प्योर है। रिसर्च बताते हैं कि पटनाइट्स पानी के बदले 'जहर' पी रहे हैं डब्लूएचओ के अनुसार ड्रिकिंग वाटर में टोटल डिजॉल्व्ड सॉलिड्स (टीडीएस) का लेवल 10 मिलीग्राम प्रति लीटर होना चाहिए। लेकिन ग्राउंड वाटर के इंडिपेंडेंट आरओ टेस्ट में यह बात सामने आती है किपटना के किसी भी इलाके में पानी में टीडीएस का लेवल 200 से कम नहीं है। पटना सिटी और दानापुर के कुछ इलाकों में तो यह लेवल एक हजार एमजी प्रति लीटर को भी क्रॉस कर जाता है। Purify नहीं होता पानी


म्यूनिसिपल कॉरपोरेशन पटनाइट्स को जो ड्रिकिंग वाटर सप्लाई करता है वो कॉन्टैमिनेटेड होता है। पीएमसी अपने डिफरेंट बोरिंग हाउसेज से डीप बोरिंग के जरिए पानी वाटर सप्लाई लाइन में डाल देता है। पंप के जरिए निकाले गए पानी को पीएमसी किसी भी लेवल पर फिल्टर या फ्यूरिफाई नहीं करता। लगभग पांच साल से वाटर ट्रीटमेंट बंद है जबकि पहले पानी का क्लोराइजेशन कर उसे फिल्टर किया जाता था।साफ पानी का इंतजार लंबा

पटनाइट्स को पीएमसी से फ्यूरिफाइड वाटर पीने मिलने में अभी एक साल से अधिक इंतजार करना होगा। सप्लाई किए जा रहे ड्रिकिंग वाटर को कॉन्टैमिनेटेड होने से इंकार करते हुए न्यू कैपिटल एरिया के एग्जीक्यूटिव इंजीनियर शशांक शेखर सिन्हा बताते हैं कि जेनरूम के तहत 600 करोड़ के वाटर ट्रीटमेंट प्रोजेक्ट पर काम चल रहा है। इस प्रोजेक्ट का लाभ पटनाइट्स को नेक्स्ट फाइनेंशियल इयर से मिलेगा। दीघा के इस प्लांट की खासियत है कि इसमें ग्राउंड वाटर की जगह सरफेस वाटर का यूज किया जाएगा। Reasons for contaminated water ग्राउंड वाटर के कॉन्टैमिनेटेड होने की तीन बड़े रीजन हैं। First reason : शहर के सॉलिड वेस्ट को ट्रीटमेंट किये बगैर इन्हें या तो ओपन फील्ड में डंप कर दिया जाता है या फिर सीधे नदियों में डाल दिया जाता है। Second reason: ग्राउंड वाटर का एक्सेसिव  यूज भी वाटर पॉल्यूट कर रहा है। Third reason: केमिकल फर्टिलाइजर का बेतहाशा बढ़ता यूज भी बड़े पैमाने पर वाटर पॉल्यूट कर रहा है। Fertilizers हैं बड़ा खतरा ग्रीनपीस की एक हालिया रिपोर्ट बताती है कि नाइट्रोजनयुक्त केमिकल फर्टीलाइजर के बढ़ते यूज से भी ग्राउंड वाटर कॉन्टैमिनेटेड हो रहा है। ऐसे फर्टीलाइजर्स का बड़ा हिस्सा रेन वाटर के जरिए नदियों तक पहुंच रहा है और नदियों के पानी के साथकिनारे बसे पटना जैसे शहर के ग्राउंड वाटर को पॉल्यूट कर रहा है।

Posted By: Inextlive